राजेश बैरागी I 2007 से 2012 तक पूर्ण बहुमत की सरकार चलाने वाली बसपा प्रमुख मायावती बतौर मुख्यमंत्री नोएडा कितनी बार आयीं थीं? यह प्रश्न आज क्यों प्रासंगिक होना चाहिए? दरअसल एक साक्षात्कार में गौतमबुद्धनगर लोकसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी डॉ महेश शर्मा ने मायावती को उन मुख्यमंत्रियों में शुमार किया है जो कुर्सी जाने के भय से नोएडा नहीं आते थे।
उल्लेखनीय है कि नोएडा की स्थापना करने वाले तत्कालीन दो मुख्यमंत्रियों क्रमशः नारायण दत्त तिवारी और वीर बहादुर सिंह नोएडा आने के बाद कुछ ही दिनों में पदों से हटा दिए गए थे। इससे यह धारणा बनी कि नोएडा आने वाला मुख्यमंत्री बहुत देर तक कुर्सी पर नहीं रह पाता है अर्थात नोएडा मुख्यमंत्री के लिए मनहूस है। दरअसल यह वह दौर था जब उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार के मुखियाओं को केंद्रीय नेतृत्व मोहरों की भांति बदल रहा था। इसके बाद 1994 में एक निजी स्कूल का उद्घाटन करने आए तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की अगले दिन ही सरकार चली गई तो इस धारणा को और बल मिला। उनके बाद के मुख्यमंत्रियों ने नोएडा से धन तो खूब उलीचा परंतु नोएडा आने का साहस नहीं किया। डीएनडी फ्लाई-वे का उद्घाटन तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने दिल्ली छोर पर किया। मुख्यमंत्री गाजियाबाद, बुलंदशहर, हापुड़ आते रहे परंतु नोएडा की सीमा में पांव रखने के लिए तैयार नहीं हुए। हालांकि तब भी मुलायम सिंह, राजनाथ सिंह, कल्याण सिंह, रामप्रसाद गुप्त आदि मुख्यमंत्रियों ने कभी कार्यकाल पूरा नहीं किया।
मायावती के बाद मुख्यमंत्री बने अखिलेश यादव फिर नोएडा नहीं आए।वे भी पुनः सत्ता में नहीं लौटे तो नोएडा की मनहूसियत का अस्तित्व कहां बचा। योगी आदित्यनाथ पहली पारी में अनेक बार नोएडा आए और पूरी हनक से दूसरी पारी में भी मुख्यमंत्री बनकर बैठे हैं। परंतु यहां बात भाजपा प्रत्याशी डॉ महेश शर्मा द्वारा एक दिन पहले दिए गए साक्षात्कार की हो रही है। उसमें उन्होंने मायावती के बतौर मुख्यमंत्री रहते नोएडा आगमन को सिरे से नकार दिया। उन्होंने ऐसा क्यों कहा होगा? डॉ महेश शर्मा 41 वर्षों से नोएडा में हैं। उनकी स्मरण शक्ति जबरदस्त है। क्या उन्होंने जानबूझकर ऐसा कहा होगा? चुनाव और उसके बाद भी राजनेता अपने लाभ की दृष्टि से बयान देता है। साक्षात्कार में कही गई बात को इसी दृष्टि से देखा जाना चाहिए।