राजेश बैरागी I जमीयत उलेमा काउंसिल के नेता (मैं उन्हें धर्मगुरु कहना उचित नहीं मानता) महमूद मदनी ने प्रधानमंत्री से आगामी 22 जनवरी को अयोध्या में श्रीराम मंदिर के उद्घाटन समारोह में शिरकत करने से मना किया है।इसकी वजह उन्होंने यह बताई है कि वे सुप्रीम कोर्ट द्वारा उस स्थान पर राम मंदिर निर्माण करने के निर्णय को नहीं मानते। लोकतंत्र की इससे अधिक सुंदरता और क्या हो सकती है कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को ही खारिज कर दिया जाए।
सदियों पुराने राम मंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद को समाप्त करने के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को न मानने से वास्तविकता में तो कोई अंतर आना संभव नहीं है। हां इस बहाने से विवाद को जिंदा रखा जा सकता है। नेताओं को विवादों से ही प्राणवायु प्राप्त होती है। इसी से उनका अस्तित्व है और इसी से गुजर बसर।
महमूद मदनी अपने नेता धर्म का पालन कर रहे हैं। इससे उनकी कौम कुछ और वर्ष गफलत में रह सकती है। यधपि वे समूची कौम का नेतृत्व नहीं करते। उनको चुनौती देने वाले और उन्हें खारिज करने वाले उसी कौम में मौजूद हैं। बाबरी मस्जिद का निर्माण करा रही कमेटी के एक सदस्य ने प्रधानमंत्री से मस्जिद स्थल पर आने का आग्रह किया है। मदनी ने उसे भी लाल आंखें दिखाई हैं।