‘वीरू के लिए जरूरी है ब्रेक और चश्मे के साथ प्रैक्टिस’

बल्ले से जब रन नहीं निकलते हैं तो बड़े से बड़े खिलाड़ियों के प्रयोग भी धरे के धरे रह जाते हैं। वीरेंद्र सहवाग का चश्मा लगाकर खेलने का प्रयोग भी काम नहीं आया। फिर चाहें चश्मा लगाकर सारा जीवन क्रिकेट खेलने वाले पूर्व टेस्ट क्रिकेट ओपनर बल्लेबाज अंशुमन गायकवाड़ हों या फिर खुद वीरू के कोच एएन शर्मा यही कहते हैं शुरूआत में दिक्कत आनी थी।
लेकिन यह दिक्कत प्रैक्टिस के साथ दूर हो जाएगी। कोच ने जहां अपने सबसे प्रिय शिष्य को अगले वर्ल्ड कप की याद दिलाते हुए फिर से नेट पर जुट जाने को कहा है। वहीं अंशुमन को भरोसा है कि यह बड़ा खिलाड़ी जोरदार वापसी करेगा।
1974 में पहली बार टेस्ट क्रिकेट खेलने वाले अंशुमन अमर उजाला से खुलासा करते हैं कि उन्होंने अपना पहला रणजी ट्राफी मैच 1969 में खेला था। उस वक्त वह चश्मा नहीं लगाते थे। लेकिन डेढ़ साल बाद उन्हें चश्मा लगाना पड़ा।
उन्हें शुरूआत में काफी दिक्कत आई। रणजी मुकाबलों में चला भी नहीं। चश्मा पहनकर खेलने में थोड़ा समय लगा। लेकिन प्रैक्टिस के साथ सब ठीक हो गया। उन्हें लगता है कि सहवाग को भी थोड़ा फर्क पड़ा होगा। लेकिन वह चश्मे के साथ और अभ्यास करेंगे तो सब ठीक हो जाएगा।
वहीं उनके कोच एएन शर्मा का भी कहना है कि चश्मे के साथ उन्हें ज्यादा अभ्यास नहीं मिला था। अगर दिक्कत है तो अभ्यास के साथ ही जाएगी।
शर्मा कहते हैं कि 2006 में भी वह बाहर हुआ था। उस वक्त उसने दो माह तक कड़ी प्रैक्टिस कर जोरदार वापसी की। आज भी उनकी वीरू से बात हुई है। उन्होंने कोच होने के नाते उसका उत्साहवर्धन किया है।
वीरू ने उन्हें आश्वस्त किया है कि कोच साहब वापसी करके दिखाऊंगा। वह उनके पास आएंगे। वह उसके मुंह से खामियां सुनना चाहते हैं। इसके बाद प्रैक्टिस का दौर शुरू होगा। कोच मानते हैं कि आगे मैच नहीं हैं सिर्फ आईपीएल है। इस लिए नेट प्रैक्टिस के अलावा चारा नहीं बचता है।
वहीं गायकवाड़ मानते हैं कि वीरू को मैच खेलने चाहिए चाहें वह क्लब स्तर के हों या दोस्ताना। नेट प्रैक्टिस से उतना फायदा नहीं मिलेगा। अंशुमन को उनकी उम्र और फिटनेस को लेकर दिक्कत नहीं है। 34 की उम्र में विश्वनाथ, गावस्कर, तेंदुलकर ने अपने सुप्रीम टच में थे। वीरू इतने बड़े खिलाड़ी हैं कि जबरदस्त कमबैक करने में उन्हें दिक्कत नहीं होगी।