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रागबैरागी :जिलाधिकारी मनीष कुमार वर्मा ने रचा इतिहास

राजेश बैरागी । 2004 से 2014 का समय मनमोहन सिंह के होते हुए भी देश के लिए प्रधानमंत्री न होने जैसा था, वैसे ही 2020 से 2023 का कालखंड जनपद गौतमबुद्धनगर के लिए जिलाधिकारी विहीन माना जाना चाहिए।2020 में ही लखनऊ के साथ गौतमबुद्धनगर में कमिश्नरेट पुलिस की व्यवस्था लागू की गई थी। जनपद के प्रथम पुलिस कमिश्नर आलोक सिंह पूरी क्षमता के साथ आए थे। कमिश्नरेट पुलिस व्यवस्था में जिला प्रशासन के कुछ अधिकार हस्तांतरित हो जाते हैं। अधिकारों को लेकर तत्कालीन जिलाधिकारी बी एन सिंह और पुलिस आयुक्त में शीतयुद्ध प्रारंभ हो गया। इस युद्ध में पुलिस आयुक्त विजयी हुए और बी एन सिंह निलंबित होते-होते बचे।

उनके बाद आए सुहास एल वाई पैरा बैडमिंटन के तो बेहतरीन खिलाड़ी थे परंतु जिलाधिकारी के तौर पर उनका होना न होना बराबर था। हालांकि 20-21 में घोर कोरोना काल पुलिस और प्रशासन के लिए परीक्षा से कम नहीं था और सुहास एल वाई ने अपने कर्तव्यों का बखूबी पालन किया परंतु उसके बाद उनके कर्तव्यों पर उनका खेल भारी रहा।

दरअसल इस पोस्ट को लिखने का उद्देश्य जनपद गौतमबुद्धनगर के वर्तमान जिलाधिकारी मनीष कुमार वर्मा के छः महीने के कार्यकाल की समीक्षा करना है।इस वर्ष मार्च माह में कार्यभार संभालने के पश्चात मेरी निजी जानकारी में उनका एक दिन का भी अवकाश नहीं है। आते ही उन्होंने हजारों फ्लैट खरीदारों का पैसा दबाए बैठे बड़े बड़े बिल्डरों पर सीधे चाबुक चला दिया।सुहास एल वाई के समय में बिल्डरों के विरुद्ध जारी वसूली प्रमाण पत्रों को वापस लौटाया जा रहा था।

उन्होंने अनेक ऐसी पत्रावलियों को निस्तारित किया जो पिछले कई वर्षों से धूल फांक रही थीं। उन्होंने एक प्रकार से गौतमबुद्धनगर के जिलाधिकारी पद को पुनर्जीवित किया।वर्तमान जिलाधिकारी प्रतिदिन दो तीन घंटे तक जनता दर्शन से अलग दो से चार महत्वपूर्ण बैठक करते हैं। रोजाना किसी न किसी विभाग से संबंधित कार्यस्थलों का दौरा करते हैं। मसलन आज शुक्रवार को उन्होंने कुछ सरकारी विद्यालयों का दौरा किया और वहां छात्रों को दिया जाने वाला मध्यान्ह भोजन स्वयं चखकर भी देखा।इसके अलावा राज्य और केंद्र सरकारों द्वारा घोषित कार्यक्रमों का संचालन व उनमें उपस्थिति दर्ज कराते हैं। मुझे लगता है कि पद पर पहुंचने के बाद आपके समक्ष दो विकल्प हमेशा होते हैं।आप उस पद पर अपनी सार्थकता सिद्ध कर सकते हैं या फिर उस पद पर बोझ बन सकते हैं। एक निम्न मध्यवर्गीय परिवार से आईएएस अधिकारी बनकर मनीष कुमार वर्मा संभवतः अपनी सार्थकता ही साबित कर रहे हैं।

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