मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने एक तरफ हिंदू पक्ष की याचिका को स्वीकार किया है तो वहीं दूसरी तरफ शाही ईदगाह परिसर के सर्वे करने के विचार पर मंजूरी दी है। बता दें पीठ कुल 18 सिविल वादों की सुनवाई कर रही है।
हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने कहा, “इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हमारे आवेदन को स्वीकार कर लिया है जहां हमने एडवोकेट कमिश्नर द्वारा (शाही ईदगाह मस्जिद के) सर्वेक्षण की मांग की थी। 18 दिसंबर को रूपरेखा तय होगी। कोर्ट ने शाही ईदगाह मस्जिद की दलीलें खारिज कर दी हैं… यह कोर्ट का एक ऐतिहासिक फैसला है।”
क्या है प्रकरण ?
शाही ईदगाह मस्जिद मथुरा शहर में श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर परिसर से सटी हुई है। 12 अक्तूबर 1968 को श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान ने शाही मस्जिद ईदगाह ट्रस्ट के साथ एक समझौता किया। समझौते में 13.37 एकड़ जमीन पर मंदिर और मस्जिद दोनों के बने रहने की बात है।
पूरा विवाद इसी 13.37 एकड़ जमीन को लेकर है। इस जमीन में से 10.9 एकड़ जमीन श्रीकृष्ण जन्मस्थान और 2.5 एकड़ जमीन शाही ईदगाह मस्जिद के पास है। इस समझौते में मुस्लिम पक्ष ने मंदिर के लिए अपने कब्जे की कुछ जगह छोड़ी और मुस्लिम पक्ष को बदले में पास में ही कुछ जगह दी गई थी। अब हिन्दू पक्ष पूरी 13.37 एकड़ जमीन पर कब्जे की मांग कर रहा है।
विवाद की शुरुआत लगभग 350 साल पहले हुई थी, जब दिल्ली की गद्दी पर औरंगजेब का शासन हुआ करता था। 1670 में औरंगजेब ने मथुरा की श्रीकृष्ण जन्म स्थान को तोड़ने का आदेश जारी किया था। इसके एक साल पहले ही काशी के मंदिर को तोड़ा गया था. बादशाह के आदेश पर अमल हुआ और मंदिर को धराशायी कर दिया गया। इसके बाद इसी जमीन पर शाही ईदगाह मस्जिद बनाई गई।
औरंगजेब के आदेश पर मंदिर तोड़े जाने की पुष्टि इतालवी यात्री निकोलस मनूची के लेख से भी होती है। मनूची मुगल दरबार में आया था. यात्रा के बारे में उसने अपनी किताब में जानकारी दी है। मुगलों के इतिहास का जिक्र करते हुए उसने यह भी बताया कि रमजान के महीने में श्रीकृष्ण जन्मस्थान को नष्ट किया गया।