सामाजिक

तू ये देख, मोबाइल भूल जाएगा! : निरजंन धुलेकर

निरजंन धुलेकर। सुनने में थोड़ा अटपटा लगता है की क्या वाकई कोई ऐसी चीज आज भी है जिसे दिखा कर मोबाइल से उस को दूर रखा जा सकता है ? आजकल के बच्चो तो क्या बड़ो को भी मोबाइल से दूर रखना लगभग असंभव ही जान पड़ता है ।

यह मुश्किल तो है पर असम्भव नहीं । इस मुश्किल को आसान करने का एक दमदार सुझाव मेरे मन मे आया है ।

हमारे बचपन मे मोबाइल नहीं था टीवी नही था और सिनेमा हॉल में हमारी एंट्री भी बेहद गिनी चुनी साफ सुथरी पिक्चरों के लिए यानी कभी कभार दिखाई जाने वाली बाल फिल्मो तक ही सीमित थी ।

उस समय हमारे हाथ में हर महीने एक ऐसा खजाना आता था जो आज के बच्चों के नसीब में नहीं । इस खजाने का छोटे तो क्या बड़े बूढ़े भी बड़ी बेसब्री से इंतज़ार करते दिखते थे ।

जी हाँ , चन्दामामा , चंपक , पराग , नंदन , मोटू पतलू , चाचा चौधरी की कहानियों के अलावा हमारे नन्हें दिलों पर राज करते थे हमारे सुपर हीरो फैंटम व उसके जंगल के साथी और जादूगर मेंड्रेक और लोथार !

दिल पर हाथ रख कर कहिए कि क्या इन कॉमिक बुक्स को आप आज भी मिस नहीं करते और क्या इच्छा नहीं होती कि वही सीरीज की बुक्स हमारे हाथ मे एक बार फिर से आ जायें और हम मोबाइल टीवी कार्टून छोड़ उसी में डूब जायें ।

कभी कभी यह विचार मन मे आता ज़रूर है कि ऐसा क्या हुआ जो ये प्यारी मनभावन लुभाने वाली किस्से कहानियों से भरी कॉमिक सीरीज मार्किट से ही गायब हो गईं , वो भी हमसे बिना पूछे या बताए ।

अक्सर हम सुनते हैं कि टीवी या मोबाइल के आने के कारण ये कॉमिक्स गायब हुए पर मेरा मन यह मानने को तैयार नही होता । सच बात तो यही है कि हमने इन्हें खरिदना इसलिए बन्द किया क्यूंकि ये कॉमिक्स बाजारों में बिकने तो क्या दिखने ही बन्द हो गए थे ।

मेरा मानना है कि यदि यह सारी की सारी किताबें चौराहे नुक्कड़ की दुकानों और अखबार वाले के ज़रिए हर सात , पंद्रह दिनों या महीने के अंतराल में मिलने लगे तो सच मानिए बच्चे बूढ़े उसी का इंतज़ार करने लगेंगे ।

आप कभी किसी से जिक्र करिए तो वो यही कहता मिलेगा की जो मजा इन कॉमिक्स में आता था वो टीवी कार्टून्स में कहाँ , काश वो कॉमिक्स फिर से मिलने लगे तो हम तो एक भी न छोड़ें ।

तू ये देख , मोबाइल भूल जाएगा !

यदि आपको कोई गाना गुनगुनाने को कहे तो आपके मुंह से हमेशा पुराने सुरीले गाने ही क्यों निकलते हैं जबकि आपका मोबाइल नए आधुनिक गीतों से भरा पड़ा है ।

इन सदाबहार गीतों को सुनने के लिए आप मोबाइल हाथ में लेते हैं क्या ? आपको अपना पुराना ट्रंसिस्टर या रेडियो याद नही आता क्या ?

ठीक ऐसा ही आपके साथ तब होगा जब आपके हाथों में चन्दामामा , चंपक चीकू , नन्दन , चाचा चौधरी साबू , फैंटम हीरा मोती डायना , या मेंड्रेक लोथार की सचित्र कहानियों वाली कॉमिक्स आ जाएंगी ।

क्यूंकि इन किताबों में भी वही रसीला रोमांचक संगीत छुपा हुआ था जिसे हम आज भी बेहद मिस करते हैं ढूंढते हैं पर हमें दुकानों पर मिलता ही नही और हम मायूस हो जाते हैं ।

पर यदि वही कॉमिक्स बहुतायत में और सिर्फ़ दुकानों पर मिलने लग जाएं , घरों में बंदी लगा कर आने लगे तो क्या हम उसका स्वागत नहीं करेंगे ?

बचपन हमारे ज़माने का हो या आज का , नन्हे मुन्नों का मूल स्वभाव एक समान ही रहता है ।

इन कॉमिक्स के चित्र भी इतने आकर्षक व लुभावने होते थे कि हम मंत्रमुग्ध हो हर चरित्र को आत्मसात कर लेते थे ।

हर चरित्र से हमारी दोस्ती सी हो जाती थी वो चाहे फिर चीकू खरगोश हो या हीरा या मोती कुत्ता या घोड़ा ही हो । इन कॉमिक्स ने हमें पशुप्रेमी भी बनाया और उनसे मित्रता का महत्व भी समझाया ।

आपने महसूस किया होगा कि इन कॉमिक्स के पात्रों द्वारा किये गए एक्शंस अतिवादी न हो कर यथार्थवादी थे जिसकी वजह से हम उन चरित्रों में कहीं न कहीं खुद को जोड़ कर देखने लगते थे ।

कॉमिक्स ने अच्छे इंसान और बुरे व्यक्तियों की पहचान भी ख़ूब अच्छी तरह से करवाई और सबसे बड़ी बात यह कि हमें पुस्तको से जुड़े रहने की कला भी सिखाई ।

तो क्यों न वही प्रयोग हम सब मिल कर एक बार फिर से हमारी इस नवजात पीढ़ी पर भी कर के देखें ।

विडंबना यह है कि अपने बच्चो के मोबाइल से चिपके रहने की शिकायत करने वाली आज की नई पीढ़ी के माता पिता ही नही बल्कि पढ़ने के शौकीन बुजुर्ग भी यही पूछते हैं कि क्या यह नॉवेल या लेख या पुस्तक ऑन लाइन पढ़ने को मिल सकती है ?

ये बाल पत्रिकाएं व कॉमिक्स ऑन लाइन बिल्कुल भी उपलब्ध न हों इस बात का भी ध्यान रखना होगा ।

साथ ही इनकी प्रिंटेड कॉपियों की उपलब्धता का प्रचार व प्रसार करना भी आवश्यक होगा ताकि हम आप को पता चल सके कि हमारे प्रिय वेताल , मेंड्रेक , चाचा चौधरी , मोटू पतलू , चन्दामामा , चंपक , नन्दन और चीकू आदि अब हमें बाजार में मिल सकते हैं ।

मैं यह दावा तो नही करता कि इन कॉमिक्स के वापस आने पर बच्चे मोबाइल से पूरी तरह से दूरी बना लेंगे पर इतना ज़रूर होगा कि बच्चो का मोह प्रिंट मीडिया वाली ऐसी कॉमिक्स की ओर बढ़ने से इनकी माँग फिर से बढ़ेगी और फलस्वरूप इनकी छपाई भी ।

मुझे पूरा विश्वास है कि यदि यह सभी कॉमिक्स उसी रूप में व्रहत स्तर पर समाज में फिर से उतारे जाएं तो नई पीढ़ी के बच्चो में पुस्तक पठन पाठन का शौक थोड़ा तो बढ़ेगा जो कालांतर में मोबाइल की घटिया आभासी व अतिवादी कल्पनाओं की दुनिया से उन्हें दूर ले जाने में कुछ हद तक तो सफल अवश्य ही होगा ।

हमारी पीढ़ी जिसे इन बाल पत्रिकाओं कॉमिक्स से अत्यधिक प्रेम था और आज भी है , अपना मोबाइल छोड़ इन्हें फिर से अवश्य ही पढ़ना पसन्द करेंगी ।

नई पीढ़ी के स्क्रीन डिटॉक्स के लिए कहीं से तो शरुआत करनी ही पड़ेगी , छोटी सी ही सही ।

दिल्ली नोएडा, गाज़ियाबाद, ग्रेटर नोएडा समेत देश-दुनिया, राजनीति, खेल, मनोरंजन, धर्म, लाइफस्टाइल से जुड़ी हर खबर सबसे पहले पाने के लिए हमें फेसबुक पर लाइक करें या ट्विटर पर फॉलो करें या एनसीआरखबर वॉट्स्ऐप चैनल फॉलो करें।
Show More

Community Reporter

कम्यूनिटी रिपोर्टर आपके इवैंट प्रमोशन ओर सोसाइटी न्यूज़ को प्रकाशित करता है I अपने कॉर्पोरेट सोशल इवैंट की लाइव कवरेज के लिए हमे 9711744045/9654531723 पर व्हाट्सएप करें I हम आपके भरोसे ही स्वतंत्र ओर निर्भीक ओर दबाबमुक्त पत्रकारिता करते है I इसको जारी रखने के लिए हमे आपका सहयोग ज़रूरी है I एनसीआर खबर पर समाचार और विज्ञापन के लिए हमे संपर्क करे । हमारे लेख/समाचार ऐसे ही सीधे आपके व्हाट्सएप पर प्राप्त करने के लिए वार्षिक मूल्य(501) हमे 9654531723 पर PayTM/ GogglePay /PhonePe या फिर UPI : ashu.319@oksbi के जरिये देकर उसकी डिटेल हमे व्हाट्सएप अवश्य करे

Related Articles

Back to top button