राष्ट्रीयसामाजिक

भारत समेत श्रीलंका व पाकिस्तान और अति समृद्ध अमेरिका में जानिए – महंगा क्यो? सस्ता क्यो?

निरजंन धुलेकर । आप देखेंगे कि दिवालिया श्रीलंका व पाकिस्तान और अति समृद्ध अमेरिका , तीनो देशों में ही भारत की तुलना में चीजें बेहद महेंगी मिलती हैं ! श्रीलंका व पाकिस्तान में सीधा सा कारण है कि वस्तुएं माँग के सापेक्ष उपलब्ध न होने से जमाखोरी व मुनाफाखोरी हावी हो चुकी है , संसाधनों की तुलना में अत्यधिक जनसँख्या , अल्प उपलब्धता के कारण भ्र्ष्टाचार चरम पर और इसीलिए साधारण वस्तुओं की कीमत भारत की तुलना में बेहद अधिक हो चुकी है ।

पाकिस्तान में महंगाई दर है 26 प्रतिशत तो हमारे यहां 6 प्रतिशत और अमेरिका में 8 प्रतिशत है I श्रीलंक व पाकिस्तान में यद्यपि लेबर बेहद सस्ती है पर उसे काम नही मिल रहा क्यूंकि उद्योग धंधे प्रचूर मात्रा में है ही नही । वहाँ चाहे जिस क्वालिटी की चीज हो माँग से बेहद कम उपलब्ध होने से कीमतें आसमान छू रही हैं । दूसरी ओर अमेरिका , विश्व का सबसे समृद्ध देश माना जाता है पर वहाँ भी हर चीज भारत के मुकाबले बेहद महंगी है ! है न विरोधाभास !

अमेरिका में चीजें महंगी होने के अनेक कारण हैं उन्हें जानने से पहले हमें वहाँ की सामाजिक सोच को समझना होगा I पहला कारण है संसाधनों की तुलना में जनसंख्या कम होना , दूसरा आम जनता का स्वभावतः मेहनती होना , तीसरा हर कार्य का सम्मान करना , चौथा दक्षता व क्वालिटी के साथ कोई कम्प्रोमाइज नही , पांचवा जनता का सरकारी नौकरियों के प्रति लालच नही , छठा भ्र्ष्टाचार बेहद कम है क्यूंकि कार्यों में पारदर्शिता बेहद सशक्त है , भ्र्ष्टाचार जाती पाती साफ सफाई व शुद्धता के साथ कोई समझौता नही , अमरीकी लोग रंगभेद जाती व धर्म भेद के प्रति बेहद संवेदन शील होते हैं टॉलरेट नहीं करते यह सब बकवास ! इसी के साथ ही कमर्चारी के परफॉर्मेंस के साथ कोई समझौता नही करते अतः वहाँ कोई भी नौकरी एकदम पक्की नही होती !

आप पाएंगे कि भारत मे इसकी ठीक उल्टी सामाजिक सोच व व्यवस्थाएं सदियों से जारी हैं । अमेरिका में महंगाई के अनेक कारण हैं ! इसमें सबसे प्रमुख कारण है महंगी लेबर ! वहां मजदूर मिस्त्री कारीगर बेलदार महरी आदि घँटे के हिसाब से चार्ज करते हैं न कि दिन के हिसाब से !

इसका संयुक्त प्रभाव यह होता है कि रॉ मैटीरियल से लेकर प्रोसेसिंग पैकेजिंग व ट्रांसपोर्टेशन से लेकर ग्राहक को वस्तु की उपलब्धता तक , लागत बहुत अधिक हो जाती है । एक और कारण यह है कि बेहद सख्त क्वालिटी कण्ट्रोल मानकों के पालन की वजह से भी लागत बढ़ जाती है ।

अमरीकी सोच बेहद सीधी है ! बढ़िया रोये एक बार सस्ता रोये बार बार ! जब हर चीज पर यह नियम लागू होगा तो सभी चीजें उच्च कोटि की होने के चलते दाम भी ऊँचे ही होंगे ! उनकी दूसरी सोच यह है कि जितनी बढ़िया चीज चाहिए तो उतना ही अधिक पैसा देना होगा । तीसरी सोच यह कि अधिक आराम दायक सुविधा के लिए अधिक खर्चा करना पड़ेगा ।

चौथी सोच यह कि खाने पीने की हर चीज स्वास्थ वर्धक व अतिशुद्ध व कड़े मानकों पर खरी ही होगी इसलिए दाम भी अधिक ही होंगे । इसे पूंजीवाद या अमीरों की सोच कहा जाता है ! जबकि सोशलिस्ट या कम्युनिस्टिक सोच में सस्ती परंतु सभी को उपलब्ध होने की बात की जाती है तो जाहिर है कि माल की क्वालिटी भी साधारण ही होगी तो माल सस्ता भी होगा !

कम्युनिस्टिक प्रथा में बाबू मजदूर क्लर्क बाबू बनाने व उनके कल्याण की बात की जाती है तो पूंजीवाद हर व्यक्ति को स्वरोजगार के ज़रिए मालिक बनाने पर ज़ोर देता है । कम्युनिस्ट्स बचत पर अधिक जोर देंगे तो पूंजीवादी खर्चा करवाने पर बल देते हैं ! आप अधिक खर्च करेंगे तो उद्योगों में अधिक उत्पादन होगा , बचत करेंगे तो खरीद ही न होने से उद्योग बैठ जाएंगे ।

कम्युनिस्ट प्रथा में लेबर की सुविधाएं व नौकरी की सुरक्षा पर बहुत ज़्यादा ज़ोर दिया जाता है वहीं दूसरे देशों में एम्प्लोयी की कार्य दक्षता व रिजल्ट्स पर ज़ोर दिया जाता है । इसीलिए चीन और रूस में रोजमर्रा की चीजें घटिया होंगी पर सस्ती मिलेंगी ! चीनी माल के बारे में कहा जाता है कि चले तो चाँद तक वरना शाम तक यानी कोई भरोसा नहीं । चीन की पॉलिसी चीजों की मरम्मत करने के बजाय नई चीज लेने पर है ताकि उद्योग नया उत्पादन करते रहें ।

वहीं अमेरिका समेत सभी पश्चिमी विकसित देशों में शुद्धता उच्च क्वालिटी व अधिक दिनों तक निर्बाध चलने के कारण जेब ज़रा ज़्यादा ढीली करवाएगा । इसका सिम्पल उदाहरण ये है कि अन्य राज्यों में मिठाई आपको बेहतरिन सुंदर सजीले डिब्बे में कायदे से सजा व बन्द करके दी जाएगी पर बंगाल में वही मिठाई दुकानदार आपको पुराने अखबार में लपेट कर पकड़ा देगा । इसी के चलते अन्य राज्यो में मिठाई होगी मंहंगी और दीदी वाली होगी सस्ती या ठेले रेहड़ी पर समोसा मिलेगा दस का एक पर उँचे ए सी सोफे बैरे वाले होटल में वही समोसा हो सकता है मिले सौ का एक ! चॉइस आपकी है क्या चाहिए ? सस्ता या महँगा ?

आप अनुभव कर रहे होंगे कि गत कुछ वर्षों से भारत का आर्थिक झुकाव अमेरिकी तर्ज़ पर अधिक चलता महसूस हो रहा है यानी मजे करने हो तो पैसा खर्चा निकालो । आज़ादी के बाद भारत की अर्थ व्यवस्था कम्युनिस्टिक प्रभाव में अधिक रही यानी सस्ता हो पर सबको मिले ।

वो भी एक दौर था ये भी एक दौर है ।

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