जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात। रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात। 15 वी सदी के संत रविदास ने भारत में जाति व्यवस्था के दम पर कटाक्ष करते हुए यह लाइन लिखते हुए यह नहीं सोचा था कि भविष्य में उनकी इस लाइन को गाकर राजनीति करने वाले लोग खुद की जाति के नाम पर एक नया आडंबर खड़ा कर देंगे ।
जाति भारत में बनी व्यवस्था की एक सच्चाई है और इसमें सामान्यतः कोई बुराई नहीं है क्योंकि यह एक समुदाय को उसके कार्य विशेष या क्षेत्र विशेष के आधार पर निर्धारित करती हैं। समस्या जाति को लेकर हमेशा तभी खड़ी होती है जब जातियां एक दूसरे से श्रेष्ठ दिखने की होड में सामाजिक ताने बाने को बिगाड़ने लगती है और इसी जातीय दंभ के विरूद्ध संत रविदास ने यह लाइन लिखी ।
शनिवार को ग्रेटर नोएडा में कुछ ऐसा ही हुआ जिसके बाद इस लाइन की प्रासंगिकता और महत्व पर एक बार पुनः मेरा ध्यान गया । शनिवार को अखिल भारतीय किसान सभा (जो वामपंथी दल सीपीआई का एक किसान संगठन है) की अगुवाई में मध्य प्रदेश के गुर्जरों पर हुए अत्याचार के नाम पर डीएम को एक ज्ञापन देने का समाचार सामने आया । जिसमें बताया गया कि मध्य प्रदेश में सरकार द्वारा गुर्जरों पर हुए अत्याचार के विरोध में जबरदस्त प्रदर्शन करते हुए अखिल भारतीय किसान सभा ने प्रधानमंत्री के नाम पर ज्ञापन दिया और विरोध जताया। सामान्यत प्रेस विज्ञप्ति को बिना पढ़े छापने वाले सभी समाचार पत्रों ने ग्रेटर नोएडा के गुर्जरों का प्रतिरोध बात कर छापा ।
किंतु कोई भी समाचार पत्र या पत्रकार ने यह प्रश्न नहीं उठाया कि अखिल भारतीय किसान सभा किसी व्यक्ति के साथ हुए अन्याय पर आंदोलन करें तो कोई बात नहीं थी । कोई जातिवादी संस्था कहीं पर भी अपनी जाति के ऊपर अत्याचारों के ऊपर बात करें तो भी कोई बात नहीं थी। किंतु वामपंथ ही से निकली संस्था का अध्यक्ष, प्रवक्ता या उसके कार्यकारी सदस्य देश मे कहीं सिर्फ अपने समुदाय पर हुए तथाकथित अत्याचार के समाचार पर इस जिले में प्रदर्शन करने लगे इस पर प्रश्न उठना स्वाभाविक है । यह प्रश्न वामपंथी का चोला उड़े तथा कथित नेता के पैंट के अंदर दिखते खाकी निक्कर का भी प्रतीक दिखाई देता है या फिर यह बताता है कि भले ही आवरण वामपंथ का हो किंतु इसमें मौजूद लोग जातिवादी मानसिकता के हैं जिनका मूल आज भी वही है जिसका संत रविदास ने विरोध किया ।
गौतम बुध नगर के ग्रेटर नोएडा में यह कोई नई बात नहीं है जब मध्य प्रदेश या राजस्थान में हुए किसी आंदोलन पर पुलिस की सख्ती का विरोध यहां की जाती संस्थाओं के साथ-साथ संवैधानिक या सामाजिक संस्थाओं ने भी किया हो, क्योंकि उनमें एक समुदाय के लोगों की ज्यादा भागीदारी है आज से कुछ साल पहले बार संघ ने भी ऐसे ही वसुंधरा राजे के समय प्रदर्शन किया था और तब भी यह प्रश्न उठा था कि क्या बार काउंसिल किसी और जाति के आंदोलन में इस तरीके से प्रदर्शन पर पुलिस की कार्यवाही के खिलाफ बोलने का काम करती है या यह सिर्फ सारे संगठन एक जाति के ही हैं बस नाम उनके अलग-अलग है ।
ऐसे में यह प्रश्न अब बड़ा हो गया है कि क्या इस जिले में मौजूद किसान या अन्य संस्थाएं सिर्फ एक जाति के लोगों की संस्थाएं हैं और उन्हीं के लिए बातें करती हैं या फिर यह वाकई जाति से अलग सर्व समाज के पीड़ित लोगों की बातें करती है। प्रश्न यह भी है कि दिन रात जाति को गाली देने वाले समाज के लोग क्या वाकई खुद को देश में संत रविदास की उसे भावना को आगे बढ़ने का काम करेंगे या फिर राजनीति और नेतागिरी के फायदे के लिए ऐसे अनुचित लाभ लिए जाते रहेंगे