नवरात्रि के नौ दिनों और दशहरे के बाद दौरान लगातार गौतम बुध नगर जिले में हो रहे इस धार्मिक सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रेस विज्ञप्तियां आती रही इन सभी प्रेस विज्ञप्तियों में बड़ी आम सी बात थी कि भेजने वाले सभी लोगों ने धार्मिक कार्यक्रम या भगवानों की जगह खुद को केंद्रित ज्यादा रखा।
कदाचित यह सभी प्रेस विज्ञप्तियां और उनके फोटोग्राफ्स में लोगों की अपनी आत्म मुग्धता अपने नाम तस्वीरों को छपवाने ज्यादा प्रतीत हुई । ऐसे में एनसीआर खबर ने विनम्रता के साथ ऐसी सभी विज्ञाप्तियो को समाचार ना बनने का निर्णय लिया ।
किंतु दशहरे के बाद एक फोटोग्राफ पर मेरी नजर ठिठक गई । ग्रेटर नोएडा वेस्ट मे गौड़ सिटी की रामलीला के आखिरी दिन स्थानीय विधायक आयोजकों के बुलावे पर वहां पहुंचे और इस दौरान उन्होंने एक सामूहिक फोटोग्राफ भी खिंचवाया। पहली नजर में इस फोटो ग्राफ में कुछ नही गलत नही है । लोगों को अपने जनप्रतिनिधि या नेतृत्व करता या प्रेरणादायक व्यक्तित्व के साथ खड़े होने या उसकी स्मृति सहेजने में कोई गलत बात नहीं है
प्रधानमंत्री मोदी भी कल दिल्ली में द्वारका के रामलीला मैदान में पहुंचे थे और उन्होंने दशहरे में भगवान राम के तिलक से लेकर पूजा वंदन तक की सभी धार्मिक तौर तरीके से निभाएं और वहां मौजूद कलाकारी को भगवान स्वरूप सम्मान दिया । कार्यक्रम के दौरान भी प्रधानमंत्री के इस आचरण की चर्चा होती ।
किंतु इस तस्वीर में ऐसा क्या है जिसकी बात में करना चाहता हूं तो प्रकरण यह है कि अक्सर जनप्रतिनिधि जब भी किसी धार्मिक आयोजन में जाते हैं तो वहां मौजूद भगवान की मूर्ति या फिर रामलीलाओं में मौजूद धार्मिक चरित्र का निर्वहन कर रहे कलाकार हमारे लिए भगवान स्वरूप ही होते हैं ऐसे में आयोजिको समेत जनप्रतिनिधि द्वारा भगवान की प्रतिमाओं के रूप में स्थापित इन लोगों को बिल्कुल पीछे कर स्वयं फोटो खींचने की यह परंपरा अच्छी नहीं कहीं जा सकती ।

अपने 48 वर्ष के अनुभव में मैंने देश भर में हमेशा ऐसे नियमों का पालन होते हुए देखा है जिनमें दशहरे पर या उसके बाद हुए राजतिलक के कार्यक्रम में किसी भी जनप्रतिनिधि की हिम्मत इतनी नहीं होती कि वह भगवान राम के दरबार के आगे आकर खड़ा हो जाए। किंतु बदलते दौर में अगर आयोजन और व्यक्ति विशेष रामलीला करने वाले इन कलाकारों को मंच के दौरान वह सम्मान नहीं दे सकते थे तो उन्हें उसे समय वहां से हटाना उचित होता । किंतु इस तरीके से उन्हें पीछे करके उनके सामने खड़े होकर एक सामूहिक फोटोग्राफ को खिंचवाना भगवान के रूप में बैठे इन कलाकारों की जगह भगवान का अपमान समझा जाना चाहिए और इस बात का प्रतिरोध भी बराबर होना चाहिए जिससे आगे से यह गलती दोहराई ना जा सके।
इस प्रकरण पर आपकी राय आप हमारे X (एक्स ट्विटर ) अकाउंट पर दे सकते हैं एनसीआर खबर के लिए यह भी समझना जरूरी है क्या बदलते दौर में आपकी हमारी सबकी प्राथमिकताएं और मान्यताएं भी बदलता जा रही हैं या फिर हम अपने धर्म की रक्षा और भगवानों के सम्मान के लिए आज भी उतना ही अडिग है