आशु भटनागर । रविवार को अखिलेश यादव नोएडा में एक पारिवारिक समारोह में आए इसके साथ ही उन्होंने कुछ कार्यकर्ताओं से बातें की और कोरोना काल में जान गवाने वाले पत्रकारों को श्रद्धांजलि भी दी। किंतु इस सबके बीच प्रश्न यह भी उठे कि क्या अखिलेश यादव वाकई नोएडा को लेकर गंभीर है ? इस प्रश्न से पहले उनकी राजनीति समझते हैं।
2022 में विधानसभा चुनावों में हार के बाद 2024 के लोकसभा चुनाव के बीच समाजवादी पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव पूरे उत्तर प्रदेश में लगातार पार्टी की राजनीति को मजबूत करने के लिए काम कर रहे हैं । लखनऊ से लेकर बनारस और बनारस से लेकर प्रयागराज तक वह राजनीतिक गणित के गुणा भाग में लगे रहते हैं कई बार सफल होते हैं कई बार असफल होते हैं किंतु पश्चिमी उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के कमजोर जनाधार को मजबूत करने की कोशिश में अखिलेश यादव गंभीर नहीं दिखाई देते हैं और शायद यही कारण है कि गौतम बुद्ध नगर को लेकर उनकी रणनीति हमेशा धूमिल रही है ।
शनिवार को जब उनके आने की सूचना नोएडा आने की सूचना मीडिया में आई तो मेरे मन में यही प्रश्न उठा की क्या अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी के संगठन के किसी कार्यक्रम में आ रहे हैं या फिर हमेशा की तरह अपने किसी पारिवारिक मित्र के व्यक्तिगत फंक्शन में आ रहे हैं और संयोग देखिए कि अखिलेश यादव फिर से अपने किसी पारिवारिक कार्यकर्ता के माता-पिता की मूर्ति के उद्घाटन के समझ में आ रहे थे इससे पहले भी अखिलेश यादव जब आए थे तो उन्होंने नोएडा में मूर्तियों का अनावरण ही किया था।
ऐसे में बड़ा प्रश्न यह है कि मुख्यमंत्री रहते हुए अपने अंधविश्वास के डर से नोएडा ना आने वाले अखिलेश यादव आज अगर नोएडा आ भी रहे हैं तो भी वह मूर्तियों के अनावरण से आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं ।
पश्चिम को लेकर उनका यह कमजोर रवैया क्या समाजवादी पार्टी को पश्चिम में और ज्यादा कमजोर कर रहा है या फिर अखिलेश यादव इंडी गठबंधन के भरोसे यह मानकर चल रहे हैं कि पश्चिम की अधिकांश सीट जिनमे नोएडा भी शामिल है वह समाजवादी पार्टी के खाते में नहीं आएंगे ऐसे में संगठन के किसी चुनावी दावेदार को मजबूत करना या उसके प्रभाव को बढ़ाने की कोशिश अखिलेश यादव की राजनीति में दिखाई नहीं दे रही है ।
उत्तरप्रदेश की आर्थिक राजधानी छोड़ कैसे सत्ता में टिक पाएंगे अखिलेश ?
किसी भी क्षेत्रीय दल के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह उसे क्षेत्र की राजधानी के अतिरिक्त आर्थिक,सांस्कृतिक राजधानी क्षेत्र को अपने गढ़ में परिवर्तित करें। समाजवादी पार्टी की प्रारंभिक रणनीति में यह हमेशा स्पष्ट रहा भी है अखिलेश यादव के पिता स्व: मुलायम सिंह यादव ने इन पहलुओं पर हमेशा ध्यान दिया है किंतु उनके निधन के बाद अखिलेश यादव लगातार राजनीतिक तौर तरीकों को बदल रहे हैं और इसी में यह प्रश्न उठ रहा है कि लखनऊ के साथ-साथ उनका ध्यान उत्तर प्रदेश की आर्थिक राजधानी कही जाने वाले गौतम बुद्ध नगर पर क्यों नहीं है आखिर क्यों पार्टी यहां पर सिर्फ ग्रामीण सजातीय कार्यकर्ताओं के भरोसे है । गौतम बुद्ध नगर की स्थिति यह है कि जब विधानसभा चुनाव भी होने होते हैं तो भी बीते कई चुनाव से नोएडा और दादरी विधानसभा में उन्हें चेहरों को पुनः कमान दे दी जाती है और उसके बाद समाजवादी पार्टी यहां हार जाती है ।

2014 के चुनाव मे समाजवादी पार्टी को 26 प्रतिशत वोट मिले थे जबकि 2019 मे पार्टी मे ये सीट बसपा के लिए छोड़ दी थी ओर महागठबंधन मे दोनों को मिलकर 35% वोट मिले थे I 2009 मे समाजवादी पार्टी को 16 प्रतिशत वोट मिले थे जबकि बसपा से सुरेन्द्र नागर 33 प्रतिशत के साथ विजयी हुए थेI स्पष्ट है कि लोकसभा बनने के बाद से पार्टी का वोटबंक बढ़ रहा था, किन्तु नोएडा ना आने के अंधविश्वास ने पार्टी को यहाँ 2019 मे कमजोर कर दिया I संयोग देखिये 2009 मे जीतने वाले सुरेन्द्र नागर ओर 2014 मे दूसरे स्थान पर रहने वाले नरेंद्र भाटी आज भाजपा मे है ओर पार्टी क्षेत्र मे बड़े चेहरे को स्थापित करने के लिए तरस रही है
अखिलेश यादव की उदासीनता का असर गौतम बुद्ध नगर के समाजवादी पार्टी के संगठन में भी स्पष्ट दिखता है बीते 25 सालों में समाजवादी पार्टी यहां के ग्रामीण परिवेश से बाहर निकालकर कभी बहुसंख्यक शहरी मतदाताओं के बीच पैंठ तो छोड़िए पहचान बनाने के लिए नाकाम रही है ।
आज भी जिले और महानगर में समाजवादी पार्टी के संगठन में ग्रामीण चेहरों के अलावा शहरी विशेष तौर पर यहां की हाईराइज़ सोसाइटियों और शहरी सेक्टर के लोगों का प्रतिशत बहुत कम है ऐसा नहीं है कि लोग समाजवादी पार्टी से जुड़ना नहीं चाहते हैं किंतु समस्या यह है कि उन लोगों तक पार्टी के ग्रामीण नेता पहुंचे नहीं पाते हैं । कमोबेश गौतम बुध नगर के ग्रामीण बनाम शहरी (स्थानीय बनाम बाहरी) के विभेद में समाजवादी पार्टी शहरी या फिर बाहरी लोगों तक पहुंच नहीं पाती है । और गौतम बुध नगर में बीते 10 वर्षों में यह स्पष्ट हो चुका है कि यहां की राजनीति को प्रवासी लोगों के सहारे ही चलाया जा सकता है जिसमें फिलहाल अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी दोनों नाकाम है ।
ऐसे में मूल प्रश्न वही है कि क्या अखिलेश यादव का अगला नोएडा दौरा पार्टी को मजबूत करने के लिए होगा या फिर से वह भाजपा को वाकोवर देने के लिए किसी मूर्ति के अनावरण के लिए यहां पर आएंगे ।