आशु भटनागर । 2007 में टी 20 ओर 2011 में विश्व कप में भारत की शानदार जीत के बाद मेरा क्रिकेट में रुझान कम हुआ या फिर उम्र के अगले पड़ाव के आरंभ होते दौर में मैंने पत्रकारिता और राजनीति पर अपना ध्यान केंद्रित कर दिया । ऐसे में 12 साल बाद 2023 में जब भारत फिर से विश्व कप सेमीफाइनल में पहुंचा तो उसे देखने की चाह या फिर सामाजिक/ व्यवसायिक मजबूरी मेरे सामने आ गई । खैर अपेक्षाओं के अनुरूप भारत दबाव में वैसा प्रदर्शन नहीं कर सका और ऑस्ट्रेलिया विश्व विजेता बन गया । किंतु भारतीय टीम की और कमियों पर चर्चा करने की जगह इस मैच के बहाने राजनीतिक उठा पटक पर चर्चा करना ज्यादा बेहतर है।
बीसीसीआई के अध्यक्ष जय शाह की असफलता बनी मोदी की समस्या
इन दिनों बीसीसीआई के सर्वे सर्वा गृहमंत्री अमित शाह के पुत्र जय शाह है । ऐसे में विश्व कप के दौरान हुए सभी विवादों के लिए सीधे-सीधे विपक्ष सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर आक्रमण कर रहा है जहां एक और उनके मैदान में रहने और पूरे विश्व कप अलग-अलग तरीके निर्णय के लिए आलोचना हो रही है वहीं हार जाने के बाद प्रधानमंत्री मोदी के मौजूद होने को भी विपक्ष खास तौर पर कांग्रेस द्वारा बड़ा कारण कर पेश किया जा रहा है। राजनीतिक चर्चाओं में भाजपा के लोगों का भी कहना है कि गृह मंत्री अमित के सुपुत्र जय शाह को बीसीसीआई अध्यक्ष बनाए रखने की मजबूरी मोदी की समस्या बन गई है
विश्व कप में सबसे पहले भारत-पाकिस्तान के युद्ध के मैच के दौरान स्वागत में पाकिस्तानी खिलाड़ियों के गुजराती कलाकारों द्वारा किए विशेष सम्मान पर आलोचना की गई। लगातार विश्व कप में कई ऐसे इवेंट किए गए जिनको अव्यवहारिक बताया गया किंतु भारत की जीत की आड़ में यह सभी इग्नोर किए जाते रहे ।
फाइनल में प्रधानमंत्री के वहां मौजूद होकर रहने का फैसला भी ऐसे ही विवादित फैसला बना हम सभी जानते हैं भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड भारत की आधिकारिक संस्था नहीं है ना ही यह ओलंपिक की तरह भारत के लिए आधिकारिक आयोजन है ।
यह विशुद्ध रूप से व्यावसायिक और निजी संस्था द्वारा किया गया आयोजन है । ऐसे में इसमें प्रधानमंत्री का जाना या सरकार का सीधा हस्तक्षेप गलत था खास तौर पर फाइनल के दिन जिस तरीके से विमानो ने करतब दिखाएं और उसको लेकर भारतीय मीडिया ने लगातार भारत की जीत को प्रधानमंत्री के दावे में बदल देने की नाकाम कोशिश की उसकी आलोचना होनी जरूरी है ।
भारतीय मीडिया द्वारा चलाए गए ऐसे कैंपेन जिसमें यह लिखा गया कि “प्रधानमंत्री मोदी दिलाएंगे भारत को वर्ल्ड कप” ने भी विपक्ष को मौका दे दिया कि वह जीत ना पाने पर प्रधानमंत्री के उपस्थित होने की आलोचना करें और सोशल मीडिया पर उनको लेकर तमाम तरीके के कैंपेन चलाएं ।यह सब दब भी जाता अगर वाकई भारत वर्ल्ड कप जीत जाता किंतु भारतीय टीम के तमाम कोशिशें के बाद यह हो नहीं सका और अब लगातार नए-नए विवाद सामने आ रहे हैं।

सोशल मीडिया पर ही एक ऐसा वीडियो भी वायरल हो रहा है जिसमें ऑस्ट्रेलिया के कप्तान को कप देने के बाद प्रधानमंत्री सीधे वापस मुड़कर चले जाते हैं इसको एक होस्ट देश के प्रधानमंत्री की बेरुखी माना जा रहा है और विपक्ष लगातार इसको लेकर मुद्दा बना रहा है । यद्धपि ये कहना जल्दबाजी है कि प्रधानमंत्री ने ऐसा भारत की हार से क्षुब्ध होकर किया या फिर ये एक सामान्य प्रक्रिया भर थी ।
पूर्व विश्व कप विजेता कप्तान कपिल देव और एमएस धोनी क्यूं नही दिखे
सोशल मीडिया पर ही जानकारी आ रही है कि इस बार फाइनल में बीसीसीआई द्वारा पूर्व विश्व कप विजेता कपिल देव (1983) और एमएस धोनी (2011) को भी आमंत्रित नही किया गया । एमएस धोनी ने भले ही इस पर अपने कोई बयान नहीं दिए हैं किंतु कपिल देव ने मीडिया में आकर बताया है कि उनको आमंत्रित नहीं किया गया उसके बाद एक बार फिर से बीसीसीआई के निजी एजेंडे और भारत में इस बोर्ड के भारतीयों के प्रतिनिधित्व न करने का मामला फिर से सामने आने लगा है।
कम ही लोगो को पता होगा कि बीसीसीआई द्वारा कपिल देव को जी ग्रुप के सुभाष चंद्रा द्वारा आईसीएल शुरू करने और उसको प्रमोट करने के नाम पर कपिल देव का अनैतिक निष्कासन किया गया था । शायद आप चौक जाएं किंतु सच यही कि आईपीएल के इस फॉर्मेट से पहले सुभाष चंद्रा आईसीएल यानी इंडियन क्रिकेट लीग लेकर आए थे और देश में स्थानीय प्रतिभाओं को मौका देने का कार्य शुरू किया था जिसमें कपिल देव को मुखिया बनाया गया था।
बीसीसीआई ने इसे अपनी अपमान माना और इसके बाद आईपीएल शुरू किया और तमाम खिलाड़ियों को आईपीएल में न जाने का निर्देश दिया और कपिल देव को बीसीसीआई ने निष्काशित कर दिया। किंतु आज 15 साल बाद भी अगर कपिल देव को सरकार बदल जाने के बावजूद इस तरीके से अपमानित किया गया है तो यह बीसीसीआई की काम मोदी सरकार की जिम्मेदारी ज्यादा बन जाती है।
वही कपिल देव के बाद 2011 में दूसरे विश्व कप विजेता एमएस धोनी को इस फाइनल मैच में ना बुलाए जाने का सोशल मीडिया में आए समाचार अगर सच है तो इसे वस्तुत ऐसे खिलाड़ियों के अपमान और खेल में राजनैतिक हस्तेक्षप का भी प्रश्न है । यद्धपि धोनी ने वहां ना होने या बुलाए ना जाने को लेकर कोई बयान नहीं दिया है ।
वस्तुत जय शाह का क्रिकेट से सीधा कोई संबंध नहीं है वह सिर्फ इस देश के सबसे ताकतवर व्यक्ति यानी गृहमंत्री अमित शाह के सुपुत्र हैं किंतु यदि इस पूरे विश्व कप के दौरान उनके नेतृत्व में तमाम ऐसी गलतियां हुई हैं तो इसके लिए गृहमंत्री अमित शाह के बेटे जय शाह को सामने आकर जवाब देना चाहिए या फिर देश से माफी मांगनी चाहिए। शायद इससे विवाद पर रोक लग सकती है ।
वहीं राजनैतिक चर्चाओं में भी अब ये माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अब ऐसे अफसर और चापलूस राजनेताओं से घिर गए हैं जो उनका देश की जनता का मूड बताने में नाकाम लग रहे हैं । और यह वर्ल्ड कप इस बात का जीता जागता उदाहरण है जहां प्रधानमंत्री को विश्व कप के दौरान हो रहे घटनाओं से अनजान रखा गया है यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि गृहमंत्री इस विश्व कप में अपने पुत्र के जरिए सीधे जुड़े हुए हैं और प्रधानमंत्री के खास भी है ।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर इस विश्व कप के बहाने विपक्ष जो निशाने साध रहा है उसे पर विपक्ष से ज्यादा प्रधानमंत्री को चिंतन करने की आवश्यकता है क्योंकि प्रधानमंत्री को 2024 के चुनाव ही नहीं आगामी बड़ी पारी खेलने के लिए भी अपने आसपास खड़े चापलूसों और अदूरदर्शी अधिकारियों और राजनेताओं को दुर करने का सही समय आ चुका है । यदि इस समय इसको नही किया गया तो 2024 भले ही किसी तरह से हाथ में आ जाए आगे इसको आगे अजेय बनाए रखना मुश्किल होगा ।