राजेश बैरागी I प्रेम के साम्राज्य को कौन ललकार सकता है? कुछ दशको तक मुहब्बत के स्मारक के तौर पर अतिथि कक्ष से लेकर शयनकक्ष तक शोभायमान होते रहे ताजमहल के स्थान पर अब अयोध्या का राम मंदिर विराजमान होने वाला है।
यह आस्था की सर्जिकल स्ट्राइक है। वैसे भी जब से ताजमहल को तेजोमहालय सिद्ध करने के अभियान ने जोर पकड़ा है, तबसे ताजमहल की प्रतिकृति को खरीदकर अपने घर ले जाने वालों में अभूतपूर्व गिरावट आई है। क्या उनके हृदयों में प्रेम भावना में भी गिरावट आई है? मेरा आज का विषय यह नहीं है।
समाचार माध्यमों में प्रकाशित सीएआईटी (कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स) के महासचिव प्रवीण खंडेलवाल के बयान को गंभीरता से लीजिए। उन्होंने कहा है कि राममंदिर का उत्साह पूरे देश में है और व्यापार जगत इसमें बड़े अवसर देख रहा है। खंडेलवाल के अनुसार देशभर के व्यापारी सीएआईटी के नेतृत्व में एक जनवरी से दुकान-दुकान बाजार-बाजार जाएंगे और श्रीराम की अलख जगाएंगे।’ यह कैसी अलख होगी?
क्या अब भारतीय व्यापारी अपने त्योहार और प्रतीकों को भुनाने में जुट गए हैं? यह प्रश्न बाद को छोड़ते हैं। फिलहाल सीएआईटी महासचिव प्रवीण खंडेलवाल की बात पर कान देते हैं।उनका अनुमान है कि अयोध्या में राममंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा से मंदिर से संबंधित उत्पादों की बिक्री से केवल जनवरी माह में 50 हजार करोड़ रुपए से अधिक का कारोबार हो सकता है। यह उत्पाद हैं-श्रीराम ध्वज, श्रीराम चित्र,माला, लॉकेट, चाबी के छल्ले,रामदरबार के चित्र,रामनामी कुर्ते, टी-शर्ट,पटका आदि। परंतु सबसे अधिक मांग श्री राममंदिर की प्रतिकृति की है।
मेरा अनुमान है कि आने वाले समय में अयोध्या के राममंदिर की प्रतिकृति भारत के प्रायः सभी हिन्दू घरों में अनिवार्य रूप से स्थापित हो जाएगी। यह सदियों से मुहब्बत के स्मारक ताजमहल को रिप्लेस कर देगी। आगामी 22 जनवरी को प्रेम पर आस्था की विजय का शुभ मुहूर्त तय है। व्यापारी उसमें अपना लाभ देख रहे हैं। चाहे वो प्रतिकृति के व्यापारी हों या राममंदिर के।