फोनरवा चुनाव में बस दो दिन रह गए है । ऐसे में दोनों पैनल्स द्वारा एक ही दिन एक ही समय संकल्प पत्र घोषणा करने के नाम पर की गई पार्टी में घोषणा पत्र, स्थानीय समस्याएं और मुद्दे काफी पीछे छूट गए हैं। दोनो ही पैनल प्रत्याशियों में शराब पिलाने की होड़ लगी है। शराब पिलाने के लिए दी गई पार्टी की बातों पर और घोषणा पत्र पर हम बाद में बात करेंगे, पहले यह समझते हैं कि भारत में किसी किसी वोटर को वोट देने के लिए शराब या समस्या में क्या महत्वपूर्ण है।
भारत में एक वोटर को किसी उम्मीदवार के पक्ष में वोट करने के लिए कौन-कौन सी चीज़ें प्रभावित करती हैं? आमतौर पर उम्मीदवार की पहचान, उसकी विचारधारा, जाति-धर्म या उनके काम वोटरों को प्रभावित करते हैं। वोटर गरीब होता है तो उसे पर या आरोप लगाए जाते हैं कि वह पैसे या शराब के बदले अपना वोट दे देता है किंतु ऐसे आरोप कभी साबित नहीं हो पाते है क्योंकि कई बार कई चुनावो में गरीब वोटर शराब और पैसे लेने के बावजूद वोट कहीं और दे देता है।
किंतु गरीबों को शराब और पैसे के नाम पर वोट देने पर भला बुरा कहने वाले अमीर लोग जब आरडब्ल्यूए के महासंघ का चुनाव करते हैं तो उसके लिए बाकायदा लाइसेंस लेकर पांच सितारा बैंक्विट हॉल में नॉनवेज और शराब शराब जाती है तो इसको पिलाना मतदाताओं को रिश्वत भी नहीं माना जाता है । क्योंकि इसमें पहुंचने वाले आरडब्ल्यूए के संभ्रांत पदाधिकारी मतदाता शराब पीने ही पहुंचते हैं और संभवत उसी के आधार पर अपने-अपने वोट का निर्णय करते है ।
अब fonrwa के चुनाव में दी गई दोनों पार्टियों पर आते हैं तो दोनों ही पैनल की पार्टियों में 400 लोगों के खाने और पीने के इंतजाम किए गए योगेंद्र शर्मा और केके जैन पैनल ने जहां वेज खाने के साथ शराब का इंतजाम किया वहीं राजीव गर्ग और सुखदेव शर्मा पैनल ने नॉनवेज खाने के साथ शराब का इंतजाम किया ।
दोनों ही जगह प्रत्याशियों के कुछ समर्थकों के साथ शहर के संभ्रांत व्यक्तियों को भी निमंत्रण दिया गया था और सब ने नोएडा में विधायक के चुनाव के बाद लोकतंत्र के तथाकथित इस महाउत्सव के तिलक में प्रसन्नता से भाग लिया। साथ ही शराब और कबाब के आधार पर अपने-अपने प्रत्याशियों के लिए वोट देने का मन भी बना लिया है। दोनों ही कार्यक्रमों में मौजूद रहे एक शहर के राजनीतिक विश्लेषक में शराब पीने वालों की संख्या के आधार पर योगेंद्र शर्मा पैनल और राजीव गर्ग पैनल में 55 और 45 प्रतिशत की संभावना तय कर दी है ।
ऐसे में बड़ा प्रश्न यह है कि क्या जिला अधिकारी और चुनाव अधिकारी शैलेंद्र बहादुर सिंह चुनाव में घोषणा पत्र के नाम पर परोसी जा रही शराब के ऊपर कोई एक्शन लेंगे या फिर इसे अमीर लोगों की संस्था के शौक मानकर, लाइसेंस लेकर की गई अय्याशी के नाम पर छोड़ दिया जाएगा ।
प्रश्न 227 मतदाताओं वाले इस संस्था के मतदाताओं पर भी है कि क्या महज शराब पिलाने वाले प्रत्याशियों के पक्ष में वोट डालने जाकर यह मतदाता भी इस पाप में शामिल होंगे या फिर ऐसे चुनाव का बहिष्कार कर यह संदेश देने की कोशिश करेंगे कि यह परंपरा अगले चुनाव में न दोहराई जा सके ।