आशु भटनागर । उत्तर प्रदेश में दो लड़कों की जोड़ी का सियासी गणित अब छिन्न भिन्न हो चुका है ताजा जानकारी के अनुसार दोनों ही अब इंडी गठबंधन से दूर होने की कोशिश कर रहे हैं अखिलेश यादव जहां कांग्रेस को 17 सीटों से ज्यादा देने को तैयार नहीं है वहीं कांग्रेस 21 सीटों से कम पर राजी नहीं है।
समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस पर प्रहार करते हुए कहा कि अखिलेश यादव ने बड़े दिल से गठबंधन को चाहा, किंतु कांग्रेस के अहंकार ने इसे चलने नहीं दिया है । समाजवादी पार्टी अकेले चुनाव लड़ने में सक्षम है इस बयान के बाद अब यह माना जा रहा है कि कांग्रेस और समाजवादी का इंडी गठबंधन लगभग अब टूट चुका है।
सोशल मीडिया पर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के समर्थक एक दूसरे के नेता को इस गठबंधन के टूटने का कारण कई दिनों से व्यक्त कर रहे हैं बस अब औपचारिक तौर पर इसकी घोषणा होने बाकी है
सीट शेयरिंग बना कारण, पर क्या है असल कहानी ?
कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच उत्तर प्रदेश में हिंदी गठबंधन का टूटना प्रारंभ से ही तय माना जा रहा था कदाचित अखिलेश यादव जिस तरीके से लगातार उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को दोयम दर्जे पर रखना चाह रहे थे उस प्रदेश कांग्रेस के संगठन की नाराजगी के संकेत लगातार शीर्ष नेतृत्व को दे रहे थे। कांग्रेस अपनी भारत जोड़ो न्याय यात्रा के चलते इस पर चुप थी और इस कोशिश में थी कि अगर समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को समुचित सम्मान दें तो ही इस गठबंधन को आगे किया जाए । और यात्रा के उत्तर प्रदेश में पहुंचने के बाद जिस तरीके से अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी ने इस यात्रा से किनारा किया उसके बाद इस गठबंधन का अंत स्पष्ट नजर आने लगा । किंतु लोगों का कहना है कि यह सब बातें पर्दे के आगे दिखने वाली फिल्म है असली कहानी उत्तर प्रदेश में मुसलमान वोटो पर अधिकार को लेकर है ।
कदाचित लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस दोनों का ही मुख्य निशाना उत्तर प्रदेश के मुस्लिम वोटो को अपने पक्ष में रखने का है राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पहले भारत जोड़ो यात्रा और फिर भारत जोड़ो न्याय यात्रा के जरिए राहुल गांधी और कांग्रेस पर मुसलमान का विश्वास बड़ा है मुसलमान के एक बड़े वर्ग का मानना है कि भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी की सियासत को कांग्रेस के साथ रहकर ही हराया जा सकता है और इस विश्लेषण से ही अखिलेश यादव लगातार घबराए हुए हैं समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में मुस्लिम और यादव यानी माय समीकरण के जरिए ही जीतते रहे हैं ।
अखिलेश यादव ने इस समीकरण की कार्ड के लिए पीडीए (PDA) यानी पिछड़ा दलित और अल्पसंख्यक को साधने की कोशिश की किंतु चुनाव आते-आते अखिलेश यादव की स्थिति माया मिली ना राम वाली हो गई है ऐसे में अखिलेश यादव लगातार मुस्लिम वोट को अपने साथ रखने की कोशिश कर रहे थे और इसके साथ ही उनका यह भी डर था कि अगर कांग्रेस को ज्यादा सीटें दी तो मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में कांग्रेस का कैडर एक बार फिर से खड़ा हो जाएगा।
इसके उलट कांग्रेस के वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने अपने संगठन को यही संकेत दिया कि अगर कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ती है तो मुस्लिम वोट उनके पक्ष में आ जाएंगे 2024 का चुनाव जीतना महत्वपूर्ण नहीं है किंतु कांग्रेस के 2024 के बहाने मजबूत हुए कैडर के जरिए 2027 में कांग्रेस उत्तर प्रदेश में बाद विपक्ष बन सकती है।
ऐसे में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस की दोस्ती परवान चढ़ाने से पहले ही टूटने जा रही है और अभी माना जा रहा है कि दोनों की राहें अलग अलग हो चुकी हैं। समस्या दोनों ही दलों के साथ गठबंधन को तोड़ने का ठीकरा एक दूसरे पर फोड़ने से है जिससे मुस्लिम समुदाय को यह संकेत दिया जा सके कि भाजपा को हराने के लिए उन्होंने तो कोशिश की थी पर दूसरे दल ने अपने अहंकार में गठबंधन तोड़ दिया।
समाजवादी पार्टी द्वारा अधिकृत तौर पर कांग्रेस के अहंकार की बातें करते बयानो से इसकी पुष्टि भी हो जाती है और अब समाजवादी पार्टी पूरे उत्तर प्रदेश में सभी सीटों पर अन्य छोटे दलों के साथ चुनाव लड़ने की तैयारी में लग गई है। पार्टी की इसी रणनीति पर कार्य करते हुए प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम जनतांत्रिक पार्टी के नेता राजा भैया से मिलने पहुंचे और उसके बाद ही संभावना जताई जा रही है कि राजा भैया समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में आ सकते हैं।