पहले नेताओं के बारे में समाचार छपने से पहले पत्रकार पूरी जानकारियां जुटाया करते थे फिर प्रकाशित करते थे किंतु सोशल मीडिया और पीआर एजेंसी से चुनाव लड़ने के दौर में पत्रकारिता प्रेस विज्ञप्ति तक रह गई है I ऐसे में इसका परिणाम और दुष्परिणाम इस कदर रोचक हो जाते हैं कि प्रचार की आड़ में वो सच छुप जाता है। जिसके बलबूते कोई नेता अपनी पहचान बनाता है या फिर चुनाव जीतता है ।
जिले में चल रही चर्चाओं की माने तो उत्तर प्रदेश भाजपा के कई नेताओं ने टिकट होने के लोकसभा चुनावों के लिए दिल्ली, नॉएडा और गुरुग्राम बेस्ड पी आर एजेंसियों के साथ अनुबंध किया है I इन अनुबंधों में 5 करोड़ रुपयों तक का खेल बताया जा रहा है I
ऐसा ही प्रकरण गौतम बुध नगर में पीआर एजेंसियों की प्रेस विज्ञप्तियों के बलबूते राजनीतिक समाचार छापने वाले पत्रकारों ने कर दिया है । रविवार को अचानक सोशल मीडिया पर तमाम ऐसे समाचार आए जिसमें नगीना सीट से भाजपा प्रत्याशी के टिकट को नोएडा के लाल की उपलब्धि के तौर पर बताया गया। यह समाचारों में पीआर एजेंसियों के विज्ञापन के तौर पर इस्तेमाल किए जाने वाली प्रेस विज्ञप्तियों का एक सफल या असफल उदाहरण कहा जा सकता है या नहीं उससे पहले ये समझते हैं कि क्या सच में नगीना से भारतीय जनता पार्टी के लोकसभा प्रत्याशी बने ओम कुमार नोएडा के लाल हैं या फिर नोएडा के व्यापारी के लाल हैं या फिर इसका सच कुछ और है ?
एनसीआर खबर ने प्रेस विज्ञप्ति के आधार पर सोशल मीडिया पर छापे गये समाचारों को इन्वेस्टिगेट किया तो पाया कि ओम कुमार नोएडा में रहते जरूर हैं, किंतु वह नोएडा के निवासी नहीं है ओम कुमार का जन्म बिजनौर जिले के माहेश्वरी जट में हुआ है और उन्होंने वहीं से 12वीं तक की शिक्षा प्राप्त की है । जाटव समुदाय से आने वाले ओम कुमार पुत्र कल्लू सिंह ने सेना में नौकरी की है और बिजनौर से नोएडा तक एक्सपोर्ट्स और सिक्योरिटी सर्विसेज जैसे व्यवसाय में अपने हाथ आजमाएं I इसके बाद उनका बसपा से राजनीति का आरंभ 2012 में बसपा के टिकट से नहटौर विधानसभा सीट से विधायक बनकर हुआ। 2017 के चुनाव से पहले उन्होंने बसपा का साथ छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया था और विधायक बन गए थे। 2022 के चुनाव में भी उन्होंने भाजपा के टिकट पर जीत दर्ज की, इसके बाद 2017 में भाजपा से नहटोर विधानसभा से टिकट लेकर विधायक बने और अब उनको नगीना लोकसभा क्षेत्र से टिकट दिया गया है ।
सूत्रों के अनुसार नगीना लोकसभा सीट से भाजपा के टिकट की दौड़ में पूर्व विधायक सुरेश राठौर, सेवानिवृत उपश्रम आयुक्त रोशन लाल, रचना पाल, पूर्व सांसद डॉक्टर यशवंत सिंह, सचिन पाल वाल्मीकि, भाजपा के क्षेत्रीय मंत्री अनूप वाल्मीकि, पूर्व विधायक लवकुश कुमार, साध्वी प्राची, राज्यसभा सांसद कांता कर्दम आदि का नाम प्रमुखता से चल रहा था। मगर, इस दौड़ में विधायक ओम कुमार ने बाजी मार ली। स्मरण रहे कि नगीना लोकसभा सीट पर लड़ने की उनकी इच्छा काफी दिन से दिखाई दे रही थी। वह पहले अपनी पत्नी शोभा रानी के लिए टिकट मांग रहे थे। मगर, बाद में उन्होंने अपनी भी दावेदारी ठोक दी थी।
इस पूरे परिदृश्य में उनके टिकट पर नोएडा का संबंध इतना है कि पूरे उत्तर प्रदेश के सफल लोगों की तरह ओम कुमार ने भी व्यवसाय में तरक्की करने और उसके बाद उत्तर प्रदेश के व्यापारिक विंडो या आर्थिक राजधानी कहे जाने वाले नोएडा में अपना एक घर बनाया और अपने व्यवसाय और राजनीती को यहां से नए आयाम दिए।
ऐसे में ओम कुमार को टिकट मिलने पर पर एजेंसियों द्वारा उसको नोएडा के लाल की उपलब्धि बता देना उनके जन्म स्थल का अपमान ही कहा जा सकता है और यह प्रश्न सोशल मीडिया पर छापे समाचारों से ज्यादा ओम कुमार और उनकी पर एजेंसी पर भी खड़ा होता है कि कैसे वह अपने ही क्षेत्र के लोगों के भरोसे राजनीति करने के बजाय नोएडा के समाचार पत्रों में खुद को नोएडा का लाल बताने पर लग गए है ।
2009 में नगीना लोकसभा सीट के अस्तित्व में आने के बाद हुए चुनाव में पहले सपा के टिकट पर यशवीर सिंह धोबी, 2014 में हुए चुनाव में भाजपा के डॉक्टर यशवंत सिंह व 2019 के हुए चुनाव में बसपा के गिरीश चंद्र सांसद बनने में कामयाब हुए थे। समाजवादी पार्टी से टिकट के लिए स्थानीय विधायक मनोज पारस और उनकी पत्नी नीलम पारस पूरी जोर आजमाइश में लगे हैं। इस सीट पर आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद भी लड़ने का पूरा मन बना चुके हैं। ऐसे में भाजपा प्रत्याशी बने ओम कुमार के लिए इस सीट पर कड़ी चुनौती मिलने की संभावना है।
श्री रामचरितमानस में भगवान श्री राम अपने अनुज लक्ष्मण से कहते हैं कि जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी अर्थात जननी और जन्म भूमि से बढ़कर स्वर्ग भी नहीं है किंतु इस बदलते दौर में भले ही भाजपा संस्कारों की बात करती हो किंतु उसके नेता खुद को और अपनी जन्म भूमि को बदलाव की आंधी के दौर में भूलने को तैयार हैं । या फिर उनकी जानकारी के बिना उनके पर कैंपेन को संभाल रही पीआर एजेंसी उनका जीवन चरित्र बदलने को तैयार है ।
पीआर एजेंसियों के सहारे चुनाव लड़ रहे इन नेताओं को क्या वाकई जमीन से कोई जुड़ाव रह गया है या फिर सोशल मीडिया की चकाचौंध के दौर में चुनाव अब ऐसे ही लड़े जाएंगे इसका उत्तर ओम कुमार के नगीना लोकसभा चुनाव के बाद आने वाले हर और जीत के परिणामों तय करेंगे