आशु भटनागर । दिल्ली में आम आदमी पार्टी के बुरी तरीके से चुनाव हारने के बाद प्रसिद्ध दलित चिंतक और भारत सरकार में सलाहकार दिलीप मंडल ने एक पोस्ट करते हुए कहा कि विदेश वित्त-पोषित एनजीओ सेक्टर का भारत का हेडक्वार्टर आज टूट गया। अर्बन नक्सल पर दिल्ली की जनता ने सर्जिकल स्ट्राइक कर दी है। अमेरिका की नई सरकार ने भी एनजीओ का सारा डॉलर रोक दिया है। पर्यावरण-आतंकवाद एनजीओ का भी बुरा दौर आ गया है।

कहने को एक महज एक राजनैतिक पोस्ट मात्र है और इसे विरोधी राजनीतिक दल के ऊपर किसी की त्वरित प्रतिक्रिया कहा जा सकता है, किंतु यह गंभीर तथ्यात्मक पोस्ट भी है और इसका संबंध अमेरिका में ट्रंप की जीत के साथ यूएस एड (USAID) नामक संस्था द्वारा कई देशों में दिए जा रहे फंड को बंद करने से भी जुड़ा है ।
काफी समय से अर्बन नक्सल (Urban Naxal) और बड़े शहरों में एनजीओ और बुद्धिजीवियों की गतिविधियों को लेकर चर्चाएं होती रही है। एनसीआर खबर पर हम आपको गौतम बुद्ध नगर में इसकी आहट पर पहले भी बता चुके हैं कि किस तरीके से इसे किसानों और फ्लैट बायर्स की समस्याओं की आड़ में स्टेट के खिलाफ एक्टिवेट करने की कोशिश की जाती रही है ।
यह एनजीओ विभिन्न तरीकों से सरकार के खिलाफ माहौल बनाने और उसके जरिए भारत को नुकसान पहुंचाने की प्रक्रिया में लगे रहते हैं आमतौर पर यह एनजीओ आपको कई रूपों में मिल जाएंगे किंतु इनका मूल उद्देश्य किसी भी तरीके से सरकारों को अस्थिर करना रहता है। भारत में विभिन्न सरकारी योजनाओं को पूर्ण करने में लगे अधिकारियों को दबाव बनाकर उन्हें प्रभावित करने में रहता है ।
कहा जाता है 2010-11 में दिल्ली में सरकार के खिलाफ एनजीओ का सबसे बड़ा आंदोलन हुआ और उसके परिणाम स्वरुप बाद में अरविंद केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री बने । और इन्हीं अरविंद केजरीवाल की हार को दिल्ली में दलित चिंतक दिलीप मंडल ने विदेश वित्त पोषित एनजीओ की हार कहा है किंतु इसके साथ ही उन्होंने लिखा कि पर्यावरण आतंकवाद एनजीओ का बुरा दौर आ गया है । ऐसे में अर्बन नक्सल के बाद अब यह समझना बेहद जरूरी है कि आखिर यह पर्यावरण आतंकवाद एनजीओ क्या है ?
क्या है पर्यावरण आतंकवाद एनजीओ?
पर्यावरण आतंकवाद एनजीओ को समझने से पहले आपको मेघा पाटेकर जैसे कुछ नाम को याद करने की आवश्यकता है । एक दौर में मेघा पाटेकर गुजरात में “नर्मदा बचाओ अभियान” के जरिए गुजरात सरकार के खिलाफ वहां विकास योजनाओं का विरोध करती नजर आती थी । उन्होंने इस आंदोलन में नर्मदा नदी को बचाने के लिए उसे पर बनाए जा रहे सरदार सरोवर बांध का विरोध किया । इसमें स्थानीय जनजातीय, पर्यावरणविदो और मानव अधिकार कार्यकर्ताओं को खूब शामिल किया गया ।
कहने को ये एक सामाजिक आंदोलन था और पर्यावरण की रक्षा और नर्मदा नदी को बचाने की बड़ी मुहिम थे किंतु इसके पीछे का असली उद्देश्य गुजरात में नर्मदा नदी पर बना रहे बांधों को रोक कर वहां की व्यवस्था परिवर्तन को रोकना था । कहा जाता है कि मेघा पाटेकर को इसके लिए विदेश से फंड मिलता था और वह उसके जरिए मानवअधिकार और तथा कथित पर्यावरणविदों को लेकर तमाम आंदोलन करती रहती थी । रोचक तथ्य यह भी है कि सरदार सरोवर बांध के निर्माण के साथ ही सभी लोग वहां से गायब हो गए ।

अमेरिका की यूएस ऐड नामक संस्था पर आरोप है कि वह इसी तरीके से भारत में तमाम पर्यावरण विद् और एजीओ को फंड करके जगह-जगह विरोध करवाने का काम करती रहती है । अक्सर आपको दिल्ली एनसीआर में भी एनजीटी की आड़ में पर्यावरण में सरकारों और सरकारी विभागों के खिलाफ आरटीआई और मुकदमे डालते हुए दिख जाते हैं इन पर्यावरणविदों के मुख्य कार्य विकास को बाधित करने के साथ-साथ सिस्टम को ब्लैकमेल करने जैसी तमाम गतिविधियों को जारी रखना होता है ।अक्सर उनके सामाजिक दबावों के चलते अधिकारी विकास के कई कार्यो को रोक देते हैं क्योंकि अपने एनजीओ आतंकवाद के चलते यह लोगों के दिलों में पर्यावरण के नाम पर खूब शोर मचाते हैं। गौतम बुद्ध नगर में नोएडा और ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी भी इसकी शिकार है ।
कहा जाता है कि भारत में एनजीटी (National Green Tribunal) की स्थापना को ओजोन परत में छेद के बाद अमेरिका द्वारा विकासशील और तीसरी दुनिया के देशों में पर्यावरण को संरक्षित करने के नाम पर करवाई गई । किंतु असल में इनका उद्देश्य विकासशील देशों को विकसित देशों में परिवर्तित होने से रोकने का है भारत समय तमाम देशों में इस तरह की संस्थाएं पर्यावरण के नाम पर तमाम कार्यों को रोकने का कार्य करती है । जबकि सच यह है कि विकसित देश के पर्यावरण दोहन के चलते ओजोन की परत में छेद हुआ इससे भारत जैसे विकासशील देशों में हो रही विकास की प्रक्रिया से कोई फर्क नहीं पड़ता । किंतु 80 के दशक में वर्ल्ड बैंक के दबाव में तमाम बातों के साथ तत्कालीन भारत सरकार को इसे भी मानना पड़ा । आज एनजीटी इन तथाकथित पर्यावरण विद् और एनजीओ के लिए अपनी मनमानी करने का सबसे बड़ा हथियार है । और इसके नाम पर तमाम कार्यों को रोकना इन पर्यावरणविदों और एनजीओ का प्रमुख कार्य बन गया है ।
हालात यहां तक हुए है कि कई भ्रष्ट और चतुर लोगों ने पर्यावरणविद् बन कर यमुना की तलहटी में तालाब बना दिए और उसके लिए बाकायदा संस्था बनाकर तमाम कंपनियों से उनके CSR के जरिए डोनेशन ले ली गई । तो ग्रेटर नोएडा में तो भाजपा नेता से जुड़ी 1 एनजीओ के लिए ऐसी जगह तालाब बना दिया जहां पानी एकत्र करने का कोई साधन ही नहीं था। चर्चा है कि इन एनजीओ का कार्य सरकार और सरकारी विभागों को पर्यावरण का डर दिखाकर उनके जरिए संपत्तियां हासिल करना और विकास के कार्यों को रोके रखना है ।
अक्सर आपको दिल्ली एनसीआर में वनों की स्थिति को लेकर बड़े-बड़े भाषण देते हुए लोग भी मिल जाते हैं । अक्सर आपको वनों के काम होने की सूचनाओं प्रकाशित करते उनके लिए आरटीआई लगाने वाले सड़कों के किनारे धूल उड़ाने पर अधिकारियों को ब्लैकमेल करने वाले ऐसे लोग मिल जाते है उनको ही दिलीप मंडल पर्यावरण आतंकवाद एनजीओ कह रहे है । और कहां जा रहा है कि जैसे-जैसे यूएस एड से लाभान्वित लोगों की लिस्ट सामने आई जाएगी वैसे-वैसे उनके चेहरे से नकाब उतरता जाएगा ।
हाल ही में सोशल मीडिया आई जानकारी के अनुसार प्रसिद्ध अभिनेत्री सोनम कपूर और उनके पति के द्वारा भी इस संस्था से बीते कई वर्षों में फंड लिया गया है। सोनम पर लगातार भारत के त्योहारों के समय पर्यावरण को लेकर त्योहारों के विरोध करने के आरोप लगाते रहे है और भारत में सोनम ही नहीं तमाम फिल्मी सितारे इस तरीके के अभियानों में शामिल रहे है । इनमें स्वरा भास्कर, दीपिका पादुकोण, प्रियंका चोपड़ा, आमिर खान का नाम भी कहा जाता है ।
ऐसे में अगर दिलीप मंडल भारत सरकार के सलाहकार के रूप में नियुक्त प्रसिद्ध दलित चिंतक दिलीप मंडल खुलकर मानव अधिकार और पर्यावरणविदों के खिलाफ लिखने पर आ गए हैं तो इसका मतलब यह है कि सरकार भी अब इनके खिलाफ सख्त रुख अपनाना को तैयार हो चुकी है और इस तथाकथित पर्यावरण आतंकवाद के खातमें के दिन आ चुके हैं ।