दिल्ली के एक अस्पताल में शनिवार की रात आग लगने से सात मासूम की मृत्यु हो गई। इस दुर्घटना के बाद दिल्ली एनसीआर के अस्पतालों में आग लगने से निपटने के इंतजामों को लेकर फिर से कई प्रश्न उठने लगे हैं। लोगों ने कहा है कि जिले में चल रहे सभी अस्पतालों को जमीन और उनकी चालू रखने की परमिशन देने वाले कागजों की पुनः जांच होनी चाहिए ताकि दिल्ली जैसी कोई दुर्घटना नोएडा ग्रेटर नोएडा या दादरी के अस्पतालों में ना हो सके ।
गौतम बुध नगर क्षेत्र में बने छोटे और बड़े लगभग 100 से ज्यादा अस्पतालों में भी प्रशासन हाथ बांधे बैठा दिखाई दे रहा है । लोगों का कहना है कि गौतम बुध नगर में दादरी, नोएडा और ग्रेटर नोएडा के कई बड़े अस्पतालों में सेफ्टी मानकों को ताक पर रखकर काम किया गया है । इन अस्पतालों में जहां फायर सेफ्टी और निकासी को लेकर कोई इंतजाम नहीं हैI वही इन पर प्रशासन की पहुंच ना के बराबर है अधिकांश अस्पताल मालिक राजनेताओं के संरक्षण में जिला प्रशासन को धता बताते रहते हैं ।
शहर में चल रहे सभी मल्टी स्पेशलिटी अस्पतालों में बेसमेंट में ओपीडी चल रही हैं जिस पर जिला प्रशासन हमेशा आंखें मूंदे रहता है । अस्पतालों ने पार्किंग के लिए बनाए गए बेसमेंट को ओपीडी में बदल दिया है और यहीं पर प्रतिदिन हजारों मरीजों को देखा जाता है ।
जानकारी के अनुसार किसी भी अस्पताल के बेसमेंट में ओपीडी नहीं चलाई जा सकती हैं क्योंकि किसी भी दशा में आग लगने या प्राकृतिक आपदा जैसी स्थिति होने के प्रकरण में बेसमेंट से लोगों का निकलना मुश्किल ही नहीं असंभव हो जाता है ऐसे में जिला प्रशासन यहां के अस्पतालों के मालिकों के सामने क्यों घुटने टेक बैठा है यह बड़ा प्रश्न है ?
प्रश्न यह भी है कि दुर्घटना के कारणों को जानने के बावजूद जिला प्रशासन और नोएडा, ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण क्यों शांत बैठा है अभी तक जिले में अस्पतालों को लेकर कोई भी योजना क्यों नहीं बनाई जा रही है ।