वशीकरण इक मन्त्र है तजि दे बचन कठोर।
तुलसी मीठे बचन से सुख उपजे चहुँ ओर।।
आशु भटनागर I सांझ की बेला में सलाहकार संपादक राजेश बैरागी जी के ये तुलसी वचन सुन कर हम साधू साधू कहने को उठे ही थे कि बैरागी जी के मीठे बोल अचानक कर्कश हो गए । हमने कहा आप इतना सुंदर छंद बोल रहे हो और स्वर में मीठापन नही है । बोले अगर तुमने गौतम बुद्ध नगर जिले के तथाकथित स्वयंभू समाजसेवियों के नोएडा की पुलिस कमिश्नर लक्ष्मी सिंह को गुलदस्ता देकर शुभकामना देते हुए फोटो देख लिए होते तो तुम भी यही कहते । मीठे वचनों की मह्हता कब चाटुकारिता हो जायेगी ये तुलसी बाबा भी ने ना सोचा होगा I
तीन दिन के पारिवारिक विवाह फंक्शन से आज दोपहर बाद ऑफिस लौटे हमारे लिए यह एक अचरज भरा समाचार था हमने बैरागी जी से धीरे से पूछा प्रभु समाजसेवियों द्वारा पुलिस कमिश्नर या जिलाधिकारी को गुलदस्ता देकर शुभकामनाएं देना गुनाह है क्या ? गुलाम अली की गजल के शेर को मौके पर चौका समझ के मारते हुए हमने बोल दिया शुभकामनाएं तो दी हैं , डाका तो नहीं डाला, चोरी तो नहीं की है।
शेर सुनते ही बैरागी जी तमतमाते हुए बोले तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है पहले घटना को जान लो फिर हमारे इस गुस्से का कारण समझना हमने तुरंत संपादकीय टीम को आदेश दिया कि 3 दिन की घटनाओं को क्रम से बताया जाए । बैरागी जी ने कहा इतना लंबा मत जाओ हमसे सीधा सुनो जिस कुणाल शर्मा हत्याकांड में पुलिस ने मई मास के नवें दिवस को 8 दिन बाद हत्यारों का खुलासा किया, उसके लिए इन समाजसेवियों द्वारा पुलिस कमिश्नर का आभार प्रकट करना तो समझ आता था किंतु वहां पर ठहाके लगाते हुए गुलदस्ता देकर शुभकामनाएं देना कौन सी समाजसेवा है यह समझ से परे है। पुलिस ने अपने कर्तव्य का पालन किया था और उस कर्तव्य पालन में भी आठ दिवस की देरी थी अगर पुलिस प्रथम दिवस से आरोपी पर सख्त होती तो शायद बच्चे की जान बच जाती ।
बाद गंभीर थी इसलिए हमने समय की गंभीरता को समझते हुए तुरंत मोबाइल खंगाला और देखा तो वाकई नोएडा ग्रेटर नोएडा के समाजसेवियों ने चापलूसी में बेशर्मी की सारी सीमाएं लांघ दी थी। दुखद ये भी थी कि जो समाज सेवी कुणाल शर्मा के पिता के दर्द को बांटने तक नहीं पहुंच सके वह मौका समझकर पुलिस कमिश्नर के साथ अपनी करीबी जताने पहुंचने से नहीं चुके । इन नेताओं में ब्राह्मण, वैश्य, गुर्जर, क्षत्रिय, कायस्थ और दलित सभी समुदाय के लोग थे इनमें व्यापारी समाज के भी लोग थे तो सत्ता पक्ष के भी तमाम लोग थे ऐसा लग रहा था जैसे सभी लोग पुलिस कमिश्नर के साथ मिलकर इस बहाने अपनी करीबी जताना चाहते थे ।
हमने बैरागी जी को शांत करते हुए कहा की बैरागी जी यही दुनिया की रीत है कुछ दिन पहले यही व्यापारी बिलासपुर में वैभव सिंघल हत्याकांड में अलग तरीके का व्यवहार करते नजर आ रहे थे। किंतु तब भी इन्होंने इस तरीके की हरकत नहीं की थी।
ऐसा लगता है कि जिले के स्क्रैप माफिया मामले में उस अलीबाबा के साथ आ रहे 40 चोरों नाम की चर्चा से शहर के कई पत्रकारों, समाजसेवी राजनेताओं और व्यापारियों में जिस तरह हड़कंप मचा है, ये उसका परिणाम भी हो सकता है । सबको यह डर है कि उन 40 नाम में कहीं उनका नाम भी ना हो और या फिर उनके करीबियों का नाम भी ना हो। या फिर पकडे जाने वाले लोगो के साथ पुलिस उनके कोई सम्बन्ध ना दिखा दें I
तभी संपादकीय टीम से एक रिसर्चर ने हम दोनों का ज्ञानवर्धन करते हुए बताया कि सर सूत्र बता रहे हैं कि स्क्रैप माफिया केस में नोएडा पुलिस बीते एक वर्ष में थाईलैंड गए नोएडा के सभी व्यापारी और समाजसेवियों के संपर्क खंगाल रही है जिससे यह पता लगे कि थाइलैंड में स्क्रैप माफिया के होटल के आनंद कौन-कौन उठा रहे थे, ये उसका भी परिणाम हो सकता है I
हमने उसके उड़ानछल्ले वाले सूत्रीय ज्ञान पर आंखे तरेरते हुए उसे विमर्श को भटकने से रोकते हुए कहा कि असल में कुणाल हत्याकांड तो एक बहाना थाI इसके पक्ष और विपक्ष में की जा रही लोगों के बहाने सब अपनी अपनी ताल ठोक रहे हैं ताकि शासन से आज्ञा मिलते ही बाहर आने वाले नाम में अपने और अपने चाहतों का नाम किसी तरीके से रोका जा सके। कोई कुणाल हत्याकांड के बहाने दबाब बना रहा था तो कोई शुभकामना दे रहा है पर सबका कारण एक ही है I
बैरागी जी दुखी मन से बोले और यही आज हमारे समर्थ और सम्रद्ध समाज की दरिद्रता है कि येन केन प्रक्ररेन पैसे से अमीर हुए यह लोग किसी की मृत्यु पर मुस्कुराते नजर आ रहे हैं इनके ठहाके मुझे राक्षसों के अट्टहास लग रहे हैं जिन्हें एक पिता का दर्द अपनी समाजसेवा की दुकान का माध्यम लगता हैI
मैंने कहा बैरागी जी आप भी अंधों के शहर में दर्पण बेच रहे हो, जहां ज्ञान से ज्यादा सम्मान आज पैसों को दिया जा रहा हो, वहां आपकी यह बातें कुछ लोगों को भले ही शर्मसार कर देंI किन्तु एक बच्चे की मृत्यु के सहारे अपनी राजनीति तलाशने वाले इन समाजसेवियों को कोई फर्क नहीं पड़ेगा। ऐसे में इस गुस्से को प्रवाह दें और भगवान से यह प्रार्थना करें कि भगवान किसी और के बेटे का अपहरण शहर में ना हो और अगर अपहरण हो तो कम से कम उसकी हत्या ना हो क्योंकि यहां समाजसेवी नही लाशों पर भोजन तलाशते गिद्ध बैठे हैं और उन्हें किसी के बेटे की मृत्यु से कोई सरोकार नहीं है I हाँ ध्यान तो जिले के जिला अधिकारी और पुलिस कमिश्नर के पद पर बैठे अधिकारियों को भी रखना पड़ेगा कि वह ऐसे स्वयंभू समाजसेवियों की महत्वाकांक्षाओं के समक्ष खुद को खिलौना न बनने दे क्योंकि दोनों ही पदों पर बैठे व्यक्तियों से आम जनता की बड़ी अपेक्षाएं हैं और ऐसे दृश्य आमजन के मन में अविश्वास पैदा करते हैं ।