आशु भटनागर । क्या गौतम बुध नगर में नोएडा पुलिस की कार्यशैली के साथ-साथ यहां के स्थानीय नेताओं की कोई भूमिका जनता के दुख के प्रति नही दिखाई देती है ? प्रश्न अजीब है तो इसी प्रश्न को दूसरे तरीके से सोचते है तो नेताओं की उदासीनता के चलते पुलिस की मुस्तैदी दिखाई नहीं देती है। आप कहेंगे कि पुलिस की निष्क्रियता का विपक्ष के नेताओं का क्या संबंध ? तो आइए कुछ बातो पर गौर करते है ।
सामान्यता जब आम आदमी अगर पुलिस से न्याय नहीं पाता है तो उसकी उम्मीद सत्ता या विपक्ष के नेताओं से होती है । अक्सर किसी भी जगह ऐसी बातों के बाद स्थानीय नेता सरकार के खिलाफ पुलिस प्रशासन पर पीड़ित के पक्ष में दबाव बनाते हैं किंतु यहां मौजूद किसी भी हत्याकांड के बाद ऐसा दिखाई नहीं देता है । गौतम बुध नगर में अक्सर हत्या अपहरण जैसे कांड होने के बाद विपक्ष के नेता चुप्पी मार कर बैठ जाते हैं। ऐसे प्रकरण में यहां के निवासी या पीड़ित अपने बलबूते जो थोड़ा बहुत प्रदर्शन कर पाते हैं उसे पुलिस पर कोई दबाव बन नही पाता है और अंततः अपहरण किए गए लोगों की परिणीति मृत्यु के बाद होती है ।
जिले में फिलहाल भारतीय जनता पार्टी सत्तारूढ़ दल का प्रतिनिधित्व करती है तो मुख्य विपक्ष के तौर पर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के नेताओं के दावे रहते हैं। बहुजन समाज पार्टी का संगठन यहां नाम मात्र के लिए मौजूद है। ऐसे में किसी भी घटनाक्रम के बाद भाजपा के बाद समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के नेताओं की विपक्ष की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है । किंतु यहां समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष सुधीर भाटी, नोएडा महानगर अध्यक्ष आश्रय गुप्ता और दो राष्ट्रीय प्रवक्ता राजकुमार भाटी और प्रदीप भाटी के होने के बावजूद अक्सर स्थानीय मुद्दों पर यह सभी नेता मुंह चुराते नजर आते हैं ।
गौतम बुध नगर में बीते 5 साल के अपहरण और हत्या के कांड याद करें तो आपको इसकी बानगी दिखाई देगी। ग्रेटर नोएडा वेस्ट की गौर सिटी में हुए गौरव चंदेल हत्याकांड के समय जन आंदोलन चरम पर था किंतु राजकुमार भाटी और उनकी समाजवादी पार्टी जन समर्थन में बाहर नहीं आई । सत्ता रूढ़ दल के सांसद डॉक्टर महेश शर्मा दो दिन बाद यह कहते हुए पीड़ित के परिवार के पास पहुंचे कि वह क्षेत्र से बाहर थे इसलिए देर हुई किंतु विपक्ष फिर भी गायब था ।
उसके बाद दादरी के शिव नादर स्कूल यूनिवर्सिटी में हुए एक लड़की के मर्डर में भी विपक्ष के नेता ऐसे ही सोए रहे बाद में लड़की के पिता की शिकायत पर मामला सुर्खियों में आने पर सॉल्व किया गया और उसमें भी लड़के द्वारा आत्महत्या करने के बाद मामला समाप्त हो गया।
बिलासपुर के वैभव सिंघल हत्याकांड में तो सत्ता पक्ष के विधायक धीरेंद्र सिंह अपने घर में शादी और फिर विधानसभा चलने का बहाना करके 10 दिन तक लोगों से भागते रहे और अंततः लड़के की हत्या होने के बाद बड़ी मुश्किल से उसके घर तक पहुंचे। हां चुनावी टिकट के दौड़ में आगे चल रहे भारत भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता गोपाल अग्रवाल और भाजपा सांसद डॉ महेश शर्मा जरूर वहां पहुंचे किंतु यहां भी विपक्ष गायब था । गौतम बुध नगर के प्रकरण पर भाजपा के ही लखनऊ के विधायकों ने इस मामले में मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर इस मामले में पुलिस पर दबाव बनाया ।
ऐसे ही अब ग्रेटर नोएडा के शिवा ढाबा के मालिक के नाबालिक बेटे के प्रकरण में भी पुलिस तो निष्क्रिय दिखाई दी किंतु पुलिस के निष्क्रिय होने पर ना तो सत्ता ही नही विपक्ष के किसी नेता ने इतने बड़े मामले पर जानकारी लेना मुनासिब समझा है। एनसीआर खबर ने भाजपा सांसद डॉ महेश शर्मा की टाइमलाइन चेक की तो उन्हें इस बारे में कुछ नहीं मिला ।
वहीं राजकुमार भाटी समेत सपा के नेताओं की टाइमलाइन पर भी इसके बारे में कोई जानकारी नहीं मिली। स्पष्ट है कि विपक्ष के नेताओं को अपनी जाति के लोगों के मामलों के अलावा कुछ नहीं दिखाई देता है या फिर उन मामलों पर यह लोग सड़कों पर उतरते हैं जिसमें उन्हें अपनी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को यह बताना पड़ता है कि उन्होंने कुछ किया इसीलिए अक्सर यह नेता यहां किसी बड़े आंदोलन की शुरुआत करते नहीं दिखाई देते है ।
वहीं भारतीय जनता पार्टी के हालात इससे भी बुरे हैं । सत्ता रूढ़ दल के नेता होने के कारण अक्सर पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ होने वाले झगडे भी दबा दिए जाते हैं । संगठन के नेताओं द्वारा पार्टी में पीड़ित को पुलिस के पास जाने से रोका जाता है ऐसे में उनके सांसद या विधायक से किसी प्रकरण पर किसी प्रकार की आवाज उठाने की अपेक्षा बेमानी है। स्थिति इस कदर दयनीय है कि बीते दिनों एक दलित महिला भाजपा कार्यकर्ता के उत्पीड़न की रिपोर्ट पर पुलिस अभी तक कोई कार्यवाही नहीं कर पाई है वही संगठन लगातार दोनों को भाजपा कार्यकर्ता कह कर दूर रहने की बात कर रहा था ।
किसी सोसाइटी में लड़ाई झगड़े पर जनप्रतिनिधि द्वारा आवाज उठाने और उसे पर पुलिस से सख्त कार्यवाही करने की घटना आखिरी बार अगस्त 2022 में देखी गई थी । जब श्रीकांत त्यागी प्रकरण में डॉक्टर महेश शर्मा ने सोसाइटी में पीड़ित महिला के पक्ष में पुलिस प्रशासन पर उंगली उठाई थी । पहली बार नोएडा के लोगों में डॉक्टर महेश शर्मा द्वारा एक आपराधिक प्रवृत्ति के नेता के खिलाफ आवाज उठाए जाने पर खुलेआम तारीफ की, किंतु एक समुदाय की आड़ में भाजपा के ही कुछ नेताओं और एक बड़े अधिकारी की शह पर बढ़ते विरोध के बाद डॉ महेश शर्मा सरेंडर करते दिखे ।
उस घटना के बाद फिर से सब सामान्य हो गया यद्यपि जिले में ऐसी घटनाएं घटती रही मगर राजनेताओं की उदासीनता उसके प्रति बनी रही और यही कारण है कि पुलिस इस मामले में बिल्कुल आराम से काम करती दिखाई देती है । ऐसे में बड़ा प्रश्न यह है कि सत्तारूढ़ दल के नेताओं की सरकार के खिलाफ ना बोल पाने की अपनी मजबूरी समझ आती है किंतु विपक्ष के नेता किस मजबूरी के तहत आम जनता के साथ हो रहे ऐसी घटनाओं पर चुप्पी मार कर बैठे रहते हैं ? ये बड़ा प्रश्न है ।