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संपादकीय : गर्मी में ब्लास्ट होते एसी और आपदा में अवसर की राजनीति बन रही समाज के नैतिक पतन की पराकाष्ठा

वर्षों से हमने एक कहावत सुनी है नेकी कर दरिया में डाल किंतु समय बदला और लोगो ने कहा नेकी कर या मत कर पर उसको सोशल मीडिया पर जरूर डाल । सोशल मीडिया या मीडिया पर प्रसिद्ध होने की चाहत के दुष्परिणाम पर हम बाद में बात करेंगे पर इससे पहले ये समझे कि गौतम बुद्ध नगर में राजनीति क्या है ?

उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े नगर और आर्थिक राजधानी का तमगा लिए गौतम बुद्ध नगर छोटे-छोटे क्लस्टरों का एक महानगर है । सेक्टर और हाई राइज सोसाइटियों के बनने के बाद यहां हर सोसाइटी या सेक्टर अपने आप में एक शहर है और उसकी अपनी एक राजनीति है। जिले के सांसद विधायक की तरह यहां भी अध्यक्ष सेक्रेटरी और कोषाध्यक्ष और उनके विरोधी नेता बिल्कुल वैसी ही या फिर कमोबेश उससे ज्यादा असंवेदनशील राजनीति करते हैं।

ऐसे में इन सोसाइटियों की राजनीति ही यहां के आधे विवादों की जड़ है । 2 दिन पहले एक नोएडा की एक हाई राइज सोसाइटी में ए सी फटने के कारण आग लग गई। विशेषज्ञों के अनुसार इन दिनों गर्मी ज्यादा हो रही है और ए सी का प्रयोग 24 घंटे हो रहा है।  ऐसे में अगर उसकी सर्विस नहीं हुई है तो ऐसे ही जगह ऐसी के कंप्रेशर फटने की घटनाए भी बहुतायत में आ रही है । एसी के कंप्रेशर फटने के परिणाम स्वरूप आग लगना लाजमी है और आग लग भी रही है। अब वापस घटना पर आते हैं जहां आग लगते ही सोसाइटी में लगे स्प्रिंकलर चालू हो गए।  गार्ड की मदद से आग लगने की घटना को रोक लिया गया ।

किसी भी नगर या सोसाइटी में बनाए गए सिस्टम सही काम करें तो  यह घटनाक्रम एक आम घटनाक्रम होना चाहिए । किंतु सोसाइटी के अध्यक्ष और सदस्यों ने इसको आपदा में अवसर की तरह लिया और इसको बाकायदा एक इवेंट बनाकर मीडिया को प्रेस विज्ञप्ति के रूप में भेज दिया गया प्रेस विज्ञप्ति को पढ़ने के बाद मेरे लिए यह स्वीकार करना मुश्किल था, कि क्या वाकई ऐसी घटनाओं के बाद पीठ थपथपाना जरूरी है? क्या आजकल हम कुछ भी कर और मीडिया में छपवा वाली दौड़ में आ गए हैं।

आखिर क्यों इस बड़े शहर के छोटे-छोटे क्लस्टर यानी सोसाइटियों में लोग अपने कर्तव्यों को भी बढ़ा चढ़ा कर खबरों के रूप में प्रकाशित करना चाहते हैं ? यह छपास का यह रोग हम सबको नैतिकता के पतन की पराकाष्ठा की ओर नहीं ले जा रहा है। ?

क्या पत्रकारों और समाचार कंपनियों पर इस तरीके के समाचारों के प्रकाशित करने के दबाव को आप सही मानते हैं। समाचार और विज्ञापन के बीच का ही अंतर आखिर मिटता क्यों जा रहा है । किसी भी घटना के  समाचार को प्रकाशित करने के लिए समाचार कंपनियां/ मीडिया पोर्टल उसके पत्रकार स्वयं वहां तक सबसे पहले पहुंचने का प्रयास करते हैं उसे सबसे पहले लोगों को देने का भी प्रयास करते हैं। किंतु दुखद घटनाओं पर महिमामंदन की प्रेस विज्ञप्ति यानी विज्ञापन ऐसी घटनाओं पर कहां तक सही है ? ये प्रश्न विचारणीय है ।

किसी के घर में आग लगती है और उसके बाद पीड़ित से ज्यादा महिमामंडन अगर उस कर्तव्य को करने वाले का किया जाए ये कैसी कर्तव्यनिष्ठा है । दुखद समाचार को विज्ञापन में बदल देने की यह आदत के चलते आने वाले दिनों में हम कहां तक गिरेंगे इसकी कल्पना भयावह है । ये कल्पना कितनी भयावह हो सकती है इसका फैसला आप पर छोड़ते है ।

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