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राग बैरागी : चुनाव में भाजपा की अधूरी हार के कितने कारण ?

राजेश बैरागी । इस चुनाव में भाजपा की अधूरी हार के कितने कारण हो सकते हैं? भाजपा स्वयं उन कारणों की खोजबीन कर रही है।उन कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों को खोजा जा रहा है जिन्होंने अपेक्षा के अनुसार परिश्रम नहीं किया। ऐसे पार्टी जनों को हाशिए पर धकेलने से लेकर गुडबाय करने की तैयारी चल रही है। क्या पार्टी केवल हारी हुई लोकसभा सीटों से संबंधित कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों पर कार्रवाई करेगी या सभी सीटों पर?

उदाहरण के लिए गौतमबुद्धनगर लोकसभा सीट पर भाजपा प्रत्याशी डॉ महेश शर्मा ने तीसरी बार भारी अंतर से जीत दर्ज की है। समूचे उत्तर प्रदेश में भाजपा ही नहीं विपक्ष के भी किसी नेता ने इतने बड़े अंतर से अपने प्रतिद्वंद्वी को नहीं हराया है। क्या यहां पार्टी संगठन ने प्रत्याशी के पक्ष में कठिन परिश्रम किया? मैं जिस सोसायटी में रहता हूं, यहां कोई भाजपा कार्यकर्ता वोट के लिए आग्रह करने नहीं आया।2022 के विधानसभा चुनाव में तो लोग आए थे और घर घर पार्टी के स्टीकर आदि लगाकर गये थे। दिलचस्प बात यह है कि इसी सोसायटी में भाजपा का जिला कार्यालय भी है जिस पर आए दिन बड़े छोटे भाजपा नेता आते जाते हैं। क्या यह चिराग तले अंधेरा होने का प्रमाण है?या दो वर्षों में पार्टी कार्यकर्ताओं में उत्साह समाप्त हो गया है?

जिले में नियुक्त एक अधिकारी के कक्ष में चुनाव परिणाम पर चर्चा के दौरान कुछ महत्वपूर्ण सुनने को मिला। मालूम हुआ कि प्रशासन को भाजपा की इस खराब स्थिति का पूर्वानुमान था परंतु सच बताना संभव नहीं था। सच जानने की किसी को फुर्सत भी नहीं थी। अधिकारी संभावित परिणाम के दृष्टिगत अपनी तैयारी भी कर रहे थे। एक अधिकारी ने कहा कि जब कोई सत्तारूढ़ पार्टी अपने कार्यकर्ताओं को सम्मान और आमदनी से वंचित कर देती है तो उसका यही हश्र होता है। पार्टी उनसे जरखरीद गुलाम की भांति काम लेती है परंतु मजाल है कि कोई भाजपा कार्यकर्ता या पदाधिकारी किसी थाना प्रभारी से भी ऊंची आवाज में बात कर सके।

कार्यकर्ताओं, पदाधिकारियों की सांसद विधायक भी नहीं सुनते। सारी शक्ति छीनकर सबकुछ शीर्ष स्तर पर केंद्रित करने से पार्टियां कैसे चल सकती हैं। अपने लोगों को राहत दिलाने में अक्षम कार्यकर्ता किस प्रकार वोट मांगने जा सकता है। फिर भी यदि भाजपा 240 सीटें जीत सकती है तो यह या तो केवल मोदी योगी के नाम का कमाल हो सकता है या प्रत्याशी की अपनी छवि और मेहनत का परिणाम हो सकता है। सत्तारूढ़ पार्टी के कार्यकर्ता का जुनून मर जाने से पार्टी के जिंदाबाद होने की आशा कैसे की जा सकती है?

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