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इंटरनेशनल किडनी कांड में सवालों के घेरे में अब दिल्ली पुलिस : सीएमओ और दोनो अस्पताल को क्लीन चिट तो फिर दोषी कौन ?

Story Highlights
  • बड़ी प्लानिंग से चल रहा था फर्जीवाड़ा
  • अब तक करीब 500 लोगों की बदली गई किडनी
  • अस्पतालों को क्लीन चिट तो दोषी कौन ?
  • क्या एक डाक्टर बिना सिस्टम से मिले अकेले 500 आपरेशन को अंजाम दे सकती है ?

इंटरनेशनल किडनी रैकेट कांड में दिल्ली पुलिस ने आश्चर्यजनक तौर पर जांच के घेरे में आए अपोलो और यथार्थ अस्पताल के साथ साथ नोएडा के सीएमओ डॉक्टर सुनील कुमार को भी क्लीन चिट दे दी है । दिल्ली पुलिस की तरफ से इन सभी से जवाब मांगा गया था और अंग प्रत्यारोपण से संबंधित कागजात तलब किए गए थे। सभी कागजात की जांच करने के बाद फिलहाल दिल्ली पुलिस ने इन्हें शक के दायरे से अलग कर दिया है। लेकिन इस मामले में जांच अभी जारी है।

दिल्ली पुलिस के अपराध शाखा के उपायुक्त अमित गोयल के अनुसार नोएडा सीएमओ और दोनों अस्पताल शक के घेरे में नहीं आए हैं। सीएमओ डॉक्टर सुनील कुमार और दोनों अस्पतालों को नोटिस देकर जवाब मांगा गया था । सभी से जवाब मिल गया है, सभी ने कहा है कागज ठीक है। जरूरत पड़ेगी तो सलाह एक्सपर्ट की सलाह ली जाएगी। कागजों की जांच की जा रही है।

दिल्ली पुलिस के अनुसार बांग्लादेश दूतावास से दिल्ली पुलिस को बुधवार शाम तक कोई जवाब नहीं मिला है । सीएमओ डॉक्टर सुनील कुमार ने बताया कि वह एक्सटर्नल कमेटी के सदस्य थे। किडनी डोनर और प्राप्तकर्ता की फाइल पर आखिरी हस्ताक्षर वही करते हैं वही पूछताछ कर कागज देखते हैं । दाता व प्राप्तकर्ता की वीडियो बनाई जाती है दोनों के संबंधों और किडनी प्रत्यारोपण के लिए हानि भी ली जाती है वही अस्पतालों ने अपने जवाब में कहा कि कमेटी जब ओके करती थी तभी वह किडनी प्रत्यारोपण करते थे उन्हें दूतावास से मंजूरी भी मिलती थी जिसके बाद दिल्ली पुलिस ने इन्हें क्लीन चिट दे दी ।

पुलिस अधिकारियों के अनुसार डॉक्टर डी विजया कुमारी निजी सचिव और दलालों की भूमिका अहम पाई जा रही है यह दाता किडनी प्राप्त करता के ऐसे कागज तैयार करवाते थे कि कोई पकड़ ना पाए बांग्लादेश दूतावास का कर्मचारी पैसे लेकर सभी फाइलों को ओके कर देता था आरोपी 500 लोगों की किडनी बदलवा चुके थे ।

दिल्ली पुलिस की इस कामयाबी(?) के बाद लोगों ने कहा कि इस देश में हाई प्रोफाइल कांड में जांच के बाद ऐसे ही क्लीन चिट दे दी जाती है जेसिका मर्डर केस में किसी ने जैसीका को नहीं मारा था वह खुद मर गई थी। आरुषि हत्याकांड के बाद भी पुलिस से लेकर सीबीआई तक किसी को कोई अपराध नहीं मिला था यहां तक की निठारी कांड में भी मुख्य आरोपियों को फैंसी तो छोड़िए सजा दिलाना भी पुलिस के लिए मुश्किल हो रहा है । और अब इंटरनेशनल किडनी रैकेट कांड में दलालों तक ही मामले को निपटा दिया जा रहा है।

दिल्ली पुलिस के अनुसार गैर कानूनी रूप से किडनी बदलने का कारोबार भारत से ज्यादा बांग्लादेश में बड़े बनाने पर फैला हुआ था। गिरोह के सदस्य तीन से चार लोगों की जान भी ले चुके हैं किडनी बदलने के बाद इन लोगों की मौत हो गई थी। ज्यादातर किडनी प्रत्यारोपण नोएडा के यथार्थ और 16 अस्पताल में हुए थे बांग्लादेश के गरीब लोगों को भारत में नौकरी दिलाने के बहाने लाया जाता था इसके बाद उन लोगों का पासपोर्ट जप्त कर पैसे का लालच देकर किडनी देने के लिए मजबूर किया जाता था इस मामले पर पुलिस ने विदेश मंत्रालय के जरिए बांग्लादेश से पूछा है कि दाता और किडनी प्राप्तकर्ता के कागज सही होते थे या नहीं फाइलों को किस आधार पर दूतावास की ओर से स्वीकृत किया जाता था ?

दिल्ली पुलिस की क्लीन चिट के बाद रिपोर्ट पर ही उठे सवाल

दिल्ली पुलिस ने भले ही यथार्थ अस्पताल और नोएडा के सीएमओ को क्लीन चिट दे दी है किंतु लोगो के मन में प्रश्न अब यह उठ रहा है की क्या एक अकेली डॉक्टर विजया ही दलालों के साथ मिलकर 500 से ज्यादा ऑपरेशन इन अस्पतालों में करवा सकती है? दिल्ली पुलिस ने मीडिया में दी जानकारी के अनुसार दलाल अपोलो ओर यथार्थ अस्पताल के कागज बांग्लादेश में ही तैयार कर लेते थे, तो क्या वह अस्पतालों की मिलीभगत के बिना संभव था और क्या दिल्ली पुलिस किडनी रैकेट कांड में एक डॉक्टर की बलि देकर पूरे प्रकरण से ध्यान हटाना चाह रही है ?

प्रश्न यह भी है कि अगर नोएडा के सीएमओ ने जांच के बाद ही इन 500 केस में हामी भरी थी तो फिर किडनी रैकेट कांड में गलत कहां हुआ है ? क्या दिल्ली पुलिस ने जल्दबाजी में गलत जानकारियां देकर मीडिया और समाज को भ्रमित किया है और अब जांच में क्लीन चिट के नाम पर अपनी नाकामयाबियों को छुपाया जा रहा है।

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NCR Khabar Internet Desk

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