संस्मरण : पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर जो अपने से छोटों को भी सम्मान देने में संकोच नहीं करते थे

NCRKhabar LucknowDesk
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उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में जन्में देश के 9वें प्रधानमंत्री चंद्रशेखर का आज 8 जुलाई को पुण्यतिथि है। युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर देश के पहले ऐसे नेता थे जिन्होंने सांसद से सीधे प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी। चंद्रशेखर कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बने थे। चंद्रशेखर का बलिया से खास लगाव था जानते हैं उनको लेकर लिखे गये वरिष्ठ पत्रकार सुरेश बहादुर सिंह का सम्यक संस्मरण।

“फलक को जिद है जहां बिजलियां गिराने की इन्हें भी जिद है वहीं आशियां बनाने की”

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उत्तर प्रदेश प्रेस क्लब में आयोजित ‘प्रेस से मिलिए’ कार्यक्रम में अपने धन्यवाद प्रस्ताव में जब मैंने उनके सम्मान में यह दो लाइनें पढ़ी थी तो बरबस ही उनके मुंह से निकला वाह सुरेश! और उन्होंने मुझे गले से लगा लिया ऐसे थे पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय चंद्रशेखर जो अपने से छोटों को भी सम्मान देने में संकोच नहीं करते थे।

वैसे तो चंद्रशेखर जी को मैंने पहली बार 1977 में सुना था जब वो इलाहाबाद के चौक इलाके में एक सभा को संबोधित करने आए थे 19 महीने जेल में बिताने के बाद यह उनकी पहली सार्वजनिक सभा थी। उन्हें सुनने के लिए भारी भीड़ इकट्ठा हुई थी और उन्होंने उस भीड को निराश भी नहीं किया था। हालांकि उस सभा के दौरान मैं उन्हें देख नहीं पाया था लेकिन उनके संबोधन से प्रभावित हुए बिना भी नहीं रह सका था।

चंद्रशेखर जी से मेरी औपचारिक मुलाकात 1984 में सारनाथ सम्मेलन के दौरान बनारस में हुई थी तत्कालीन समाजवादी जनता पार्टी के नेता रघुनंदन सिंह काका ने चंद्रशेखर जी से दोपहर के भोज के दौरान मेरी मुलाकात कराई थी। मुझे देखते ही श्री शेखर ने कहा था कि काका इन्हें भोजन कराओ और फिर मेरी तरफ देखते हुए इशारा किया था कि अरे, इन्होंने तो पैंट पहन रखी है इसलिए इन्हें जमीन पर मत बैठाओ, इनके लिए मेज कुर्सी का इंतजाम करो तभी ये भोजन कर पाएंगे उस दिन से ही मैं उनके व्यक्तित्व का कायल हो गया था। उस दौरान मैं नेशनल हेराल्ड में कार्यरत था।

नेशनल हेराल्ड का कार्यालय समाजवादी जनता पार्टी के समीप ही था इसलिए अक्सर सजपा नेताओं के साथ मेरा उठना बैठना लगा रहता था उसी दौरान मेरी मुलाकात सपा के वरिष्ठ नेताओं ओम प्रकाश श्रीवास्तव, रामगोविंद चौधरी,एम ए लारी,ओमप्रकाश सिंह, यशवंत सिंह, सूर्यकुमार, रघुनंदन सिंह काका व जगदीप यादव से हुई, जिनकी गिनती चंद्रशेखर जी के करीबियों में हुआ करती थी। इन नेताओं की वजह से जब भी चंद्रशेखर जी लखनऊ आते थे उन से मेरी मुलाकात हो जाया करती थी। कभी-कभी ऐसा अवसर भी आता था जब चंद्रशेखर जी अकेले पार्टी कार्यालय में बैठे रहते थे और मैं उनके साथ विचारों का आदान प्रदान किया करता था इस दौरान मैंने देखा कि चंद्रशेखर जी में सुनने की क्षमता अजीब क्षमता थी। वह सामने वाले की बात इतने धैर्य से सुनते थे कि जैसे लगता था कि उन्हें उस घटना के बारे में कोई जानकारी नहीं है धीरे धीरे मेरी उनसे निकटता बढती गई।जैसे-जैसे मैं उनके नजदीक आता गया वैसे उनके व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं बारे में जानकारी होती गई। स्वर्गीय शेखर जमीन से जुड़े नेता थे और उन्हें अपनी जमीन से बड़ा लगाव था एक यात्रा के दौरान जब एक रेलवे क्रॉसिंग पर उनकी गाड़ी रुकी तो उन्होंने मुझसे पास ही खड़े ठेले से भुजा व गुड़ की मिठाई लाने को कहा और बड़े ही चाव से उस यात्रा के दौरान वह उसे खाते रहे ।

यह था उनका देसी चीजों से आत्मीय लगाव। स्वर्गीय शेखर बहुत ही बेवाक और स्पष्टवादी थे उन्होंने अपने संबंधों को कभी छुपाया नहीं उन्होंने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया कि बिहार के माफिया सूर्यदेव सिंह उनके मित्र और गोरखपुर के माफिया वीरेंद्र शाही उनके छोटे भाई हैं हालांकि उनकी उस स्पष्टवादिता पर कई बार उनको आलोचनाओं का शिकार भी होना पड़ा लेकिन वह उससे डिगे नहीं। स्वर्गीय चंद्रशेखर जी ने कभी भी दबाव में किसी तरह की कोई बयान बाजी नहीं की।

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