संपादकीय : उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार में संगठन, कार्यकर्ता को कितना मान और वो कितना निराश, दो समाचारों से समझिए

NCRKhabar Mobile Desk
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मंगलवार को आए भाजपा से संबंधित दो समाचारों से लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में हुई दुर्दशा का कारण स्पष्ट समझ आता है । पहला समाचार उत्तर प्रदेश के शो विंडो कहे जाने वाले गौतम बुध नगर से है जहां चुनाव के समय सांसद और भाजपा प्रत्याशी डॉक्टर महेश शर्मा के समर्थन में सपा बसपा और आम आदमी पार्टी के कई नेता अमित शाह की रैली के दौरान भाजपा में शामिल हुए नेताओ में से एक नेता वापस अपने साथ राजनीतिक साजिश के आरोप लगाते हुए सपा में चला गया । इस पर पलटवार करते हुए भाजपा के नोएडा महानगर जिला अध्यक्ष मनोज गुप्ता ने कहा कि जिनको मलाई नहीं मिल रही वह भाजपा छोड़ कर जा रहे हैं ।

वहीं दूसरा समाचार प्रदेश के सभी मार्गों का योजना के तहत विकास कराने के लिए बनाई गई प्रदेश स्तरीय समिति में 6 जनप्रतिनिधियों (विधायक, सांसदों,जिला पंचायत अध्यक्ष) के मनोनीत करने का है । इसमें कुशीनगर से सांसद विजय कुमार दूबे, हरदोई के सांसद जयप्रकाश, चुनार से विधायक अनुराग सिंह, दादरी विधायक तेजपाल नागर, चित्रकूट के जिला पंचायत अध्यक्ष अशोक कुमार व मुरादाबाद की जिला पंचायत अध्यक्ष शेफाली सिंह शामिल हैं।

इन दोनों समाचारों से उत्तर प्रदेश में संगठन को सरकार में महत्व और भाजपा कार्यकर्ता की उपेक्षा को आसानी से समझा जा सकता है । ऐसे में अगर समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी जैसे राजनीतिक दलों जहां संगठन के कार्यकर्ता को हमेशा सरकारों ने जनप्रतिनिधियों से ज्यादा महत्व दिया गया हो वहां से कोई भाजपा में आता है तो उसका निराश होना स्वाभाविक है।

किंतु क्या इस निराशा का असर भाजपा के अपने कैडर पर भी पढ़ रहा है? 2024 लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में आए परिणाम इसी का दर्शाते हैं । मंगलवार को जनप्रतिनिधियों को ही ऐसी कमेटी में स्थान देने के प्रश्न पर भाजपा से जुड़े संगठन से जुड़े एक कार्यकर्ता ने कहा कि क्या प्रदेश भर में जिला स्तर पर काम कर रहे संगठन के कार्यकर्ताओं का कार्य सिर्फ झंडे बांटना, सदस्य बनाना और दरी बिछाना रह गया है ।

अब तक चंदा देने वाले वैश्य समाज की पार्टी कहीं जाने वाली भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को ये समझना होगा कि अब तक वैश्य समाज अपने व्यापार में लगे होने के कारण भले ही ऐसी कमेटियो में कोई अपेक्षा नहीं रखता रहा हो किन्तु हाल के दशको में पार्टी वैश्य समाज से सर्व समाज की पार्टी में परिवर्तित हुई है। 90 के दशक की जगह अब सर्व समाज ही नहीं वैश्य समाज के कार्यकर्ता भी सरकारी समितियों में अपना स्थान और महत्त्व देखना चाहता है। ऐसे में पार्टी विथ डीफ्फ्रेंस का नारा देने वाली भाजपा को विधायको सांसदों की जगह ज़मीनी कार्यकर्ताओं को महत्त्व देने की आवश्यकता है।

भाजपा के कार्यकर्ता पहले ही पुलिस प्रशासन समेत सरकार में अपनी सुनवाई न होने के कारण हताश दिखाई देते हैं तो अब सरकारी कमेटियों में संगठन को स्थान न मिलने के बाद यह प्रश्न धीरे-धीरे विद्रोह में बदलता न बदल जाए इसकी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता ।

वस्तुत देखा जाए तो भाजपा कार्यकर्ताओं का दर्द सही भी है आखिर एक व्यक्ति जो सांसद विधायक या जिला पंचायत अध्यक्ष बन चुका है उसके पास अपने क्षेत्र के लिए काम करने के लिए ही समय कम होता है ऐसे में विधायक सांसद या जिला पंचायत अध्यक्ष बनने के बावजूद उसको ऐसी समितियां में अध्यक्ष बनने से भाजपा सरकार क्या हासिल करना चाहती है और वह अपने कार्यकर्ता को सम्मान क्यों नहीं देना चाहती है । इसको उपचुनावों में कार्यकर्ता को “बटेंगे तो कटेंगे” का ज्ञान देते फिर रहे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को समझना पड़ेगा ।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को एक बात समझ लेनी पड़ेगी कि कार्यकर्ताओं की भी अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं होती हैं । भले वह किसी समिति के अध्यक्ष या सदस्य बनकर ही खुश हो किंतु उनके खुश होने का कारण आपकी सरकारों को देना पड़ेगा विधायकों सांसदों या जिला पंचायत अध्यक्षों को ऐसी कमेटियों के अध्यक्ष बनने से आप सिर्फ पार्टी के अंदर हताशा और विद्रोह की भावना को आगे ही बढ़ा सकेंगे।

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