राजेश बैरागी । उन दिनों मैं मात्र आठ-दस बरस का था। गाजियाबाद में हमारे घर से थोड़ी दूरी पर एक मामूली सी फैक्ट्री के मालिक ने अपने पुत्र को नई मोटरसाइकिल दिलाई जिसके आगे तकरीबन दो फुट ऊंचा शीशा भी लगा हुआ था। यह वह समय था जब सभी लोगों के पास साईकिल भी नहीं थी। वह फैक्ट्री मालिक पुत्र अपनी मोटरसाइकिल को हॉर्न बजाते हुए बहुत तेज रफ्तार में चलाता था। इससे दुर्घटना के भय के साथ साथ लोगों में ईर्ष्या और गुस्सा पैदा होता था।
कर्नाटक के बंगलूरू में इस 15 अगस्त को तुमकुरू राष्ट्रीय राजमार्ग पर वहां के निवासियों ने दो मोटरसाइकिलों पर स्टंट कर रहे युवकों को बहुत अच्छा सबक दिया। उन्होंने दोनों बाइकों पर सवार युवकों को रोककर उनकी बाइकें एक पुल से नीचे फेंक दीं।
इस घटना का वीडियो वायरल हो रहा है और वीडियो देखने वाले लोगों की अच्छी प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। इस घटना से सबक मिलता है कि हर गलत बात को रोकने के लिए केवल सरकार की प्रतीक्षा करना ही उचित नहीं है। कुछ अच्छे काम हमें स्वयं भी करने चाहिएं।
मैं आधी आयु बीतने के बाद जान पाया कि अब से लगभग चवालीस साल पहले वह पड़ोसी उद्यमी पुत्र अपनी मोटरसाइकिल से जो करता था, उसे स्टंट कहते हैं। एक दिन वह फिर आया। उसने तेज हॉर्न और तेज रफ्तार के साथ हमारे घर के सामने वाली सड़क पर मोटरसाइकिल दौड़ाई।लोग पहले से तैयार थे। किसी के हाथ में पत्थर तो किसी के हाथ में ईंट और डंडा। लोगों ने उसपर इन पाषाण कालीन अस्त्रों से हमला करने का नाटक किया। वह डरकर भाग गया और फिर कभी उधर अपनी मोटरसाइकिल के साथ नहीं आया।