आशु भटनागर I नोएडा, ग्रेटर नोएडा, यमुना और यूपीएसआईडीसी जैसे साढ़े तीन औधोगिक प्राधिकरणों के दिन प्रतिदिन होते विस्तार से गौतम बुध नगर जैसे औद्योगिक जिले में मात्र 5 सदस्यों वाली जिला पंचायत यहाँ कितनी प्रासंगिक रह गई है और इसको कितने दिनों तक यहां बनाए रखना संभव होगा । इस प्रश्न पर हम चर्चा करें इससे पहले यह समझने की जरूरत है कि यहां पर जिला पंचायत की वर्तमान स्थिति क्या है ?
मात्र 5 सदस्यों वाली गौतम बुध नगर जिला पंचायत के अंतर्गत वर्तमान में 82 गांव आते हैं । 2021 के चुनाव के समय इसमें 86 गांव आते थे । वर्तमान में अमित चौधरी इसके जिला अध्यक्ष हैं और हाल ही में गाजियाबाद की अपर मुख्य अधिकारी प्रियंका चतुर्वेदी ने गौतम बुद्ध नगर में भी अपर मुख्य अधिकारी का भी अतिरिक्त भार संभाला है । प्रश्न उठता है कि क्या योगी सरकार इस बार चुनी गई जिला पंचायत को अंतिम जिला पंचायत मान रही है इसलिए यहां पर ध्यान नहीं दे रही है या फिर सरकार के पास वाकई अधिकारियों की कमी है इसलिए गाजियाबाद के साथ गौतम बुद्ध नगर का अतिरिक्त प्रभार प्रियंका चतुर्वेदी को सौंप दिया गया है, पर इस पर चर्चा थोड़े देर में करेंगे I
उत्तर प्रदेश क्षेत्र पंचायत जिला पंचायत अधिनियम 1961 के अनुसार इनका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय शासन को सुनिश्चित करना है । इस व्यवस्था में मुख्य अधिकारी, अपर मुख्य अधिकारी, वित्त अधिकारी, कार्य अधिकारी और अभियंताओ की नियुक्ति शासकीय संचालन के लिए की जाती है । ये वयवस्था ग्रामीण सुविधाओ को बनाये रखने के लिए ही संभव होती है किसी बड़े निर्माण पर प्लानिंग और कार्य इसके कार्य क्षेत्र में नहीं होता है
गौतम बुध नगर के मामले में जिला पंचायत का सालाना बजट 5 से 6 करोड रुपए बताया जाता है जबकि कर्मचारियों और अधिकारियों की सैलरी पर भी लगभग इतना ही खर्च हो जाता है । ऐसे में बढ़ते शहरीकरण के बाद बचे मात्र 82 गांव में भी विकास कार्यों के लिए इन पंचायत के पास क्या बचता है यह सहज ही सोचा जा सकता है । जिला पंचायत अध्यक्ष अमित चौधरी के अपने गाँव चिपियाना बुजुर्ग तक अगर रास्ता नहीं बन पाया तो ऐसे प्रश्न उठते ही हैं I
जिला पंचायत के लगातार खत्म होते कार्य क्षेत्र का गौतम बुद्ध नगर जैसी बढ़ती शहरी व्यवस्था में जहां एक ग्रामीण विकास के सपने धूमिल होते हैं वही भू माफियाओं के संपर्क में आने के बाद यहां अवैध कालोनिया काटी जाना आम बात हो गई है । कई बार ऐसा लगता है कि इन अवैध कालोनियों के लिए रास्ते निकालने के काम ही जिला पंचायत का मुख्य काम रह गया है ।
2016 में समाजवादी पार्टी की सरकार के समय गांव की प्रधानी को समाप्त करके सर्वाधिकार उनके क्षेत्र के प्राधिकरणों को ही सौंप दिए गए इसके बाद यहां की नालियां, सड़कों, पानी, बिजली समेत नक्शे पास करने के अधिकार प्राधिकरणों के पास चले गए । प्रधानमंत्री की स्मार्ट गांव योजना के तहत ग्रामों के सर्वांगीण विकास के लिए प्राधिकरण लगातार काम भी कर रहे हैं यद्धपि लेखपालो, जूनियर इंजीनयर और अन्य स्टाफ की कमी से जूझ रहे प्राधिकरणों से उतना भी नहीं हो पाता है जितना यहाँ होना चाहिए ।
2016 में ग्रामों को प्राधिकरण के अंतर्गत लाने के पीछे तर्क भी यही था कि यहां प्रधानों की सहमति से बड़ी संख्या में अवैध निर्माण हो रहे थे। अवैध निर्माण के बाद ग्राम प्रधान हाथ झाडकर खड़े हो जाते थे और बिजली पानी नाली सीवर जैसे समस्याओं के लिए अवैध कॉलोनी के लोग प्राधिकरण के पास ही जाते थे ।
2018 में शाहबेरी में अवैध बिल्डर फ्लोर के गिरने कारण हुई 9 लोगो की दुख मृत्यु के बाद जहां एक और शाहबेरी में किसी भी प्रकार के निर्माण पर कोर्ट द्वारा रोक लगा दी गई वहीं उसके बाद इन ग्रामों में नए नक्शे पास न होने के चलते अवैध निर्माण पर पूरी तरह रोक तो नहीं लग सकी किंतु बड़ी संख्या में कमी आई। आज भी बिसरख, एयमनाबाद, जलपुरा,शाहबेरी, हैबतपुर, रोजा जलालपुर, चिपियाना बुजुर्ग, गुलिस्तानपुर सुनपुरा तुशियाना सूतयाना कुलेसरा, खैर पुर गुर्जर, खेड़ा चौगनपुर जैसे गांवों में अवैध कॉलोनी की भरमार है । डूब क्षेत्र से लगे होने के कारण इन कॉलोनी में बरसात में पानी भर जाने की बातें आम है।
ऐसे में बताया जा रहा है कि इन ग्रामों में अवैध निर्माण के रुकते ही स्थानीय राजनेताओ और भू माफियाओं की गुटबंदी ने जिला पंचायत के माध्यम से शासन से मार्गदर्शन मांगा गया कि प्राधिकरण में ग्रामीणों को नक्शे पास करने में बड़ी समस्या आती है ऐसे में जिला पंचायत की क्या भूमिका हो सकती है ?
जनवरी 2021 में इसको लेकर यह कहा गया कि स्थानीय ग्रामीणों की मकान की आम जरूरत और सुविधाओं के लिए जिला पंचायत नक्शों को पास कर सकती है। बस इसी पत्र की आड़ में एक बार फिर से भू माफिया सक्रिय हो गए हैं और लगातार इस प्रयास में लग गए हैं कि जिले में ग्रेटर नोएडा पार्ट 2 और नए नोएडा के निर्माण में अधिगृहीत होने से पहले ही अवैध कालोनियों को किसी तरीके से जिला पंचायत से पास कर लिया जाए ।
बड़ी बात यह है कि किसी भी कॉलोनी सोसाइटी के निर्माण से पूर्व स्मार्ट गांव और शहरी दोनों ही मामलों में यह जरूरी है कि ऐसे प्रोजेक्ट अपना पंजीकरण रेरा (RERA) में कराये, अपनी नालियों, अपने कूड़े के निस्तारण, जल शोधन की पूरी योजना बनाएं किंतु अवैध कालोनी काटने वाले लोगों को इससे कोई मतलब नहीं होता है । पास में निकल रही हरनदी नदी उनके लिए अपने कूड़े और सीवर को निकालने का सबसे अच्छा साधन होती है। ऐसे में इस आदेश की आड़ में अब कितनी कॉलोनियो को निर्माण होने की आड़ में नक्शा पास करके उनके सही होने का प्रमाण पत्र जारी कर दिया जाएगा यह एक बड़ा प्रश्न खड़ा हो गया है ।
आपको बता दें कि शहर के बीचो-बीच तिलपता गांव के पास गुलिस्तानपुर में बना रहे “त्रिलोकपुरम ग्रीन” भी इसी तरह बिना नक्शे के कालोनी है । यूपीएसआईडीसी और ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के अधिसूचित क्षेत्र में आने वाले इस पूरे प्रोजेक्ट के पास अभी तक कोई नक्शा पास नहीं है फिर भी लगातार प्राधिकरण से किसी भी तरीके की सहायता न मिलने के बाद इसके पास भी जिला पंचायत की शरण में जाने के अलावा कोई चारा नहीं है ।
दुखद तथ्य यह है कि ऐसे कई त्रिलोक पुरम गौतम बुध नगर जिले में मौजूद कई गांवों की जमीनों पर बन रहे है । जनवरी में ही दादरी विधायक मास्टर तेजपाल नागर में नए नोएडा के अंतर्गत आने वाले समतल और सहारा कम्पनियों की ज़मीन पर बस रही अवैध कलानियों का मुद्दा जोर शोर से उठाया था आरएलडी नेता मदन भैया ने तो इसको विधानसभा तक में उठा दिया था किंतु ऐसा लगता है कि भू माफियाओं की बड़ी लाबी के आगे सरकार बेबस नजर आई । दोनों जनप्रतिनिधि ना जाने क्यूँ शांत हो गये और अवैध कालोनियां बसती जा रही हैं I
वहीं पूरे उत्तर प्रदेश में अवैध कॉलोनी पर बुलडोजर चला रहे उत्तर प्रदेश शासन और उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गौतम बुद्ध नगर जैसे जिले में जिला पंचायत के माध्यम से गांव में बढ़ते अतिक्रमण पर कब ध्यान देंगे यह प्रश्न सरकारों के समक्ष खड़ा रहेगा । प्रश्न यह भी रहेगा की देर सवेर जब इन 82 गांव की का अधिकरण भी नोएडा और ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण द्वारा किया जाना है तो फिर कितने दिनों तक और क्यों जिला पंचायत व्यवस्था को यहां ढोया जाएगा ? आखिर प्राधिकरणों को ग्रामीण व्यवस्था को देने के बावजूद उनके समानांतर एक अन्य बॉडी बनाए रखने का अब औचित्य क्या है ?