उत्तर प्रदेश के शो विंडो कहे जाने वाले गौतम बुद्ध नगर जिले के अंतर्गत आने वाले नोएडा से महज 35 किलोमीटर दूर दनकौर नाम का एक छोटा सा कस्बा है । पांडवों और कौरवों के गुरु द्रोणाचार्य की धरती कहे जाने के बाबजूद सरकारी उपेक्षा के शिकार इस कस्बे की कहानी यूँ तो ऐतिहासिक है, किंतु अब यह वर्ष में एक बार जन्माष्टमी से यहां पर लगने वाले द्रोण मेले के लिए जाना जाता है । सदियों से इस स्थान पर द्रोणाचार्य मंदिर के साथ बने पुराने प्रांगण में धार्मिक मेला आयोजित होता है इसमें मेले के अनुरूप तमाम गतिविधियों की जाती रही है इनमें पारसी थिएटर के नाम से स्थानीय युवक भारतीय पुरातन कथाओं के नाटको मंचन करते रहे ।
शनिवार को यह मेल एक बार अचानक चर्चा में आ गया जब वहां मौजूद पुलिसकर्मियों द्वारा आम जनता पर लाठी चार्ज करते हुए एक वीडियो जारी हुआ जिसके बाद एनसीआर खबर में फैसला किया कि वह ग्राउंड जीरो पर जाकर यहां की स्थिति देखेगा ऐसे में दोपहर को हम अपनी टीम के साथ द्रोणाचार्य मेल पर पहुंचे दनकौर की तंग गलियों के साथ मेला अपनी अपेक्षा और दुर्दशा की कहानी बता रहा था। नौचंदी से लेकर मेरठ तक नुमाइश में जिस तरीके से प्रशासन का इंवॉल्वमेंट होता है वह यहां गायब था।
मेला क्षेत्र तक पहुंचाने के लिए कार्यक्रम के आयोजकों ने ना तो कोई मैप बनाया हुआ है ना ही प्रशासन ने उसके लिए अपने स्तर से कोई प्रयास किए हैं जगह-जगह जेवर विधायक धीरेंद्र सिंह के स्वागत के बैनर जरूर लगे दिखे किंतु मंदिर और मंदिर के आसपास बने तालाबों की स्थिति बेहद दयनीय हैं दनकौर के आंतरिक शहर की स्थिति पर फिर कभी लिखेंगे किंतु मेले के आसपास के क्षेत्र की सड़कों की स्थिति और वहां सफाई ना करवा पाना प्रशासन की नाकामी है ।
यूं तो एनसीआर खबर को मिली प्रेस व्यक्तियों की विज्ञप्तियों के आर्काइव में इसके उद्घाटन में पूर्व संस्कृति मंत्री डॉ महेश शर्मा द्वारा उद्घाटित बताया गया है किंतु इस साल सबसे बड़ा आरोप यहां पारसी थिएटर चलाने वाले मनोज त्यागी ने लगाया जिन्होंने कहा कि बीते 101 साल में पहली बार पारसी थिएटर को बंद कर दिया गया । और उसकी जगह मेले में सूफियाना नाइट का कार्यक्रम रख दिया गया है अब प्रश्न यह है कि विशुद्ध रूप से द्रोणाचार्य को समर्पित कृष्ण जन्माष्टमी पर होने वाले इस धार्मिक मेले में गैर हिंदू धर्म के धार्मिक सूफियाना नाइट का क्या मतलब है?
आपको बता दें सूफी संगीत इस्लाम की एक परंपरा रही है जिसमें इस्लाम में संगीत के हराम होने के बावजूद एक वर्ग द्वारा गीत संगीत के माध्यम से वह अपने ईस्ट की पूजा करते हैंI ऐसे में स्थानीय निवासियों से बातचीत के बाद उनका गुस्सा समझ में आया कि आखिर जिस मेले का उद्घाटन भाजपा के पूर्व संस्कृति मंत्री डॉ महेश शर्मा कर रहे हो उसमें सूफियाना नाइट की जरूरत क्या है क्या भाजपा और भाजपा सांसद का हिंदुत्व सब एक दिखावा है ?
ऐसे में बड़ा प्रश्न यह है कि क्या प्रशासनिक उपेक्षा और भाजपा की सांस्कृतिक दुहाई के बावजूद दनकौर का द्रोणाचार्य की नगरी के नाम से प्रसिद्ध दनकौर का द्रोण मेला अपनी चमक होता जा रहा है/ क्या बनारस से लेकर अयोध्या तक हिंदुओं के के प्राचीन स्थलों का संरक्षण कर उन्हें सवारने वाली भाजपा सरकार और उनके नाम पर वोट पाने वाले क्षेत्रीय विधायक धीरेंद्र सिंह सिर्फ वोट लेने तक और छवि निर्माण के लिए इस मेले का उपयोग कर रहे हैं या फिर वाकई सरकार के पास द्रोणाचार्य मंदिर और मेले के लिए आगामी कोई बड़ी योजना भी है ।
मेले में स्थानीय लोगों की शिकायत थी कि सिर्फ द्रोणाचार्य के नाम पर एक दिन की छुट्टी कर देने से द्रोणाचार्य को सम्मान नहीं मिलेगा बल्कि इस मेले के लिए मंदिर तक सड़कों के सही निर्माण और मंदिर के उत्थान के बिना द्रोणाचार्य के लिए सांसद डा महेश शर्मा और विधायक धीरेंद्र सिंह समेत उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार की जिम्मेदारी समाप्त नहीं होगी।