लोकतंत्र के लोकतंत्र के चार स्तंभ विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया हैं। यह चारों स्तंभ मिलकर लोकतांत्रिक व्यवस्था का समर्थन करते हैं उसे सही तरीके से चलाते हैं। किंतु अगर यही स्तंभ निजी हितों को लेकर रिजिड होना शुरू हो जाए तो क्या व्यवस्था में दोष उत्पन्न नहीं होता है? क्या व्यवस्था में दोष उत्पन्न करने को आतुर किसी भी एक स्तंभ की जड़ता मानी जानी चाहिए? कम से कम लोकतंत्र में तो यह संभव नहीं होता है ।
आप सोचेंगे कि यह प्रश्न क्यों पूछा जा रहा है तो प्रश्न इससे अलग यह है कि क्या डूब क्षेत्र में रजिस्ट्री होने या नहीं होने से जिला बार एसोसिएशन का कोई सीधा संबंध होना चाहिए ? क्या जिला बार एसोसिएशन डूब क्षेत्र में हो रहे अवैध निर्माण पर किसी तरीके के फैसले को लेकर हड़ताल के रूप में अपनी प्रतिक्रिया दे सकते हैं जबकि सुप्रीम कोर्ट भी ऐसी हड़तालों को गलत बता चुका है ।
तो फिलहाल मामला यह है कि ग्रेटर नोएडा गौतम बुध नगर जिले में डूब क्षेत्र में जमीनों की रजिस्ट्री को लेकर जिला अधिकारी मनीष कुमार वर्मा ने डूब क्षेत्र में हो रही अवैध रजिस्ट्री को लेकर आपदा प्रबंधन कमेटी की बैठक में फैसला लेने के बाद क्षेत्र की जमीनों की रजिस्ट्री पर रोक लगा दी थी जिसको लेकर और तय किया था कि जमीनों की रजिस्ट्री के लिए पहले संबंधित प्राधिकरण से अनापत्ति प्राधिक प्रमाण पत्र लाना पड़ेगा इसके बाद जुलाई 2024 में रजिस्ट्री के लिए एडीएम के पास आवेदन करना अनिवार्य कर दिया गया था । एडीएम स्तर से प्राधिकरण की रिपोर्ट के 30 दिन बाद ही आवेदक को निरस्त दिया सही माना जा सकता था ।
इस आदेश के खिलाफ कई लोग हाई कोर्ट चले गए और हाईकोर्ट ने इसे रद्द कर दिया । हाई कोर्ट के आदेश के रद्द करने के बाद डूब क्षेत्र में अवैध निर्माण कर रहे लोगों द्वारा लगातार प्रशासन पर इसको लागू करने का दबाव बनाया जा रहा है। हालांकि प्रशासन इसके लिए सुप्रीम कोर्ट में जाने का प्रयास कर रहा है या नहीं इसकी जानकारी नहीं है।
किंतु हाईकोर्ट के आदेश को लागू करने के लिए जिला बार एसोसिएशन की हड़ताल समझ से परे है क्या इसमें जिला बार एसोसिएशन के पदाधिकारी का कोई निजी हित है ? क्या डूब क्षेत्र में हो रही अवैध रजिस्ट्री में क्षेत्र के भूमाफियाओं के साथ कोई संबंध है ?
कानून के जानकार मानते हैं कि डूब क्षेत्र में अवैध रजिस्ट्री के इस फैसले को लागू करते ही पूरे जिले में भू माफियाओ को एक नया रास्ता मिल जाएगा। इसके बाद जिले में नेताओं की शह पर भूमाफियाओं द्वारा बनाए जा रहे तमाम अवैध कॉलोनियो पर प्रशासन कुछ नहीं कर पाएगा। ऐसे में क्प्रया इसे शासन के फैसले को लागू करने के लिए भूमाफिया के हित में हड़ताल के जरिए दबाव बनाने की कोशिश को कहा जा सकता है । क्या जिला बार एसोसिएशन को अपने अधिकार और अपनी जिम्मेदारियां एक बार पुन: रेखांकित करनी पड़ेगी या फिर लोकतंत्र में चारों स्तंभ अब अपनी अपनी सीमाएं लगने लगेंगे ।