दशकों पहले भाजपा के एक राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा था पैसा भगवान तो नही पर भगवान से कम भी नहीं । तब इस बात को लेकर बड़ा हो हल्ला मचा और बेचारे नेता को पार्टी से त्यागपत्र देना पड़ गया था । किंतु अब ३० साल बाद ये सब बातें प्रासंगिक नहीं रही है और ना ही नैतिकिता पर कोई चर्चा होती हैं I गौतम बुध नगर में गली-गली सोसाइटी-सोसाइटी और कुछ गिनी चुनी बड़ी रामलीलाओं के माध्यम से बीते 10 दिनों से भगवान राम का गुणगान का दावा किया जा रहा है । तो कई जगह मां दुर्गा के आराधना के लिए दुर्गा पूजा पंडाल और डांडिया के आयोजन किये जा रहे है ।
इन आयोजनों में जहां एक और आधुनिकता के नाम पर तमाम ऐसी बातें की जा रही हैं जिनको रोका जाना बेहद आवश्यक है तो वहीं दूसरी ओर इन महंगे भव्य आयोजनों को करने के नाम पर अब वैध और अवैध तरीके अपनाकर उनके खर्चों को पूरा करने की भी एक नई परिपाटी में जन्म ले लिया है । शहर के एक समाजसेवी शैलेंद्र बरनवाल के अनुसार सोसाइटियों, सेक्टरों और शहर में इस तरीके के कार्यक्रमों के आयोजन दरअसल आयोजको द्वारा अपनी राजनीतिक पृष्ठभूमि को मजबूत करने का माध्यम बन चुका है । लोगों के दान के बाद मिले पैसे से इन कार्यक्रमों को बेहद आराम से किया जा सकता है किंतु उसके बाद स्पॉन्सरशिप और अन्य माध्यमों के उगाही किस लिए होती है यह सब जानते हैं ।
दान नही , अब आया स्पॉन्सर शिप का दौर
बदलते दौर में महंगी होती तकनीक, शहरी भागदौड़ भरी जिंदगी और शहर में सबसे बड़ी रामलीला और सबसे अच्छी रामलीला करने की होड़ ने आयोजकों को आम जनता के त्यौहार को बड़े कोऑपरेटिव के लिए बाजार बनाने का खेल बना दिया है । जानकारों की माने तो शहर भर में हो रही रामलीलाओं के पीछे बड़े-बड़े बिल्डर, भूमाफिया तंबाकू बेचने वाले कंपनियां के विज्ञापनों से ही रामलीला आपको चलती मिल जाएंगे ।
दुखद तथ्य ये है कि इस शहर का लगभग हर तीसरा आदमी बिल्डर द्वारा फ्लैट न दिए जाने से परेशान है तो वही हर पांचवा बार व्यक्ति अवैध कॉलोनी में भूमाफियाओं द्वारा कॉलोनी काट के भाग जाने से परेशान है । तो वही शहर के कैंसर को बढ़ावा देने तंबाकू बेचने वाले बड़े-बड़े दानी उद्योगपति और ऐसे बिल्डर या भुमाफिया ही इनमें कई रामलीलाओं के बड़े स्पॉन्सर हैं ।
ऐसे में धर्म के नाम पर रामलीला में आकर आम जनता जाकर फिर से इन्हीं के जाल में फंस जाती है । बड़े-बड़े विज्ञापनों से वह भ्रमित होकर यह मान लेती है की इतना ज्यादा दान पुण्य करने वाला व्यक्ति कुछ गलत तो नहीं करता होगा ? या फिर ऐसे विज्ञापनो में कुछ गलत तो नहीं होगा I
एनसीआर खबर ने ऐसी कई रामलीलाओं का भ्रमण किया तो पाया कि यह सब एक सुनियोजित तरीके से होने वाला खेल बन चुका है नोएडा के बड़े समाजसेवी और राजनेता ने एनसीआर खबर को बताया कि 30 साल पहले रामलीलाओं का स्वरूप ऐसा नहीं था तब लोग रामलीला में सहयोग तो करते थे किंतु उसके जरिए विज्ञापन नहीं किए जाते थे किंतु वैश्वीकरण के दौर में अब इन रामलीलाओं को 10 – 20 लाख रुपए के स्पॉन्सरशिप देने के बाद उसकी वसूली भी बेहद आवश्यक है ऐसे में बिल्डर भूमाफिया और तंबाकू के प्रोडक्ट बेचने वाले सभी व्यापारी इन में बढ़-चढ़कर अपने विज्ञापन लगाते हैं ।
शहर में चुनाव लड़ चुके एक निर्दलीय सांसद प्रत्याशी और समाजसेवी नरेश नौटियाल ने बताया कि ग्रेटर नोएडा वेस्ट में बीते साल ऐसे ही एक तंबाकू के स्पॉन्सर को एक धार्मिक इवेंट ऑर्गेनाइजर ने ले तो लिया था। किंतु इवेंट स्कूल में होने के कारण स्कूल प्रबंधन ने तंबाकू की कंपनी का विज्ञापन स्कूल में लगवाने से मना कर दिया जिसके बाद स्पॉन्सर और इवेंट करने वाली संस्था के बीच काफी विवाद भी हुआ ।
रामलीलाओं में शोषण और अपराध करने वाले से ही पैसे लेकर आनंद लेने का खेल सिर्फ बड़ी रामलीलाओं तक सीमित नहीं है बल्कि ग्रेटर नोएडा और नोएडा की सोसाइटी में प्रतिदिन बिल्डर को गाली देने वाले लोगों के नेता इन त्योहारों पर इस बिल्डर मेंटेनेंस कंपनी और सिक्योरिटी कंपनी से स्पॉन्सर लेने स्पॉन्सरशिप लेने से नहीं चूकते हैं जिनको वह बाकायदा पूरे साल फ्लैट ना देने के लिए सुविधाएं न देने के लिए और तमाम मुकदमों के माध्यम से लड़ाई लड़ते रहते हैं ऐसे में बड़ा प्रश्न यह है कि क्या इन बड़े बिल्डर तंबाकू बेचने वाली कंपनियों और वह माफियाओं के साथ-साथ समाज में भी ऐसे लाइजनर मौजूद हो गए हैं जो इनके माध्यम से दोनों के बीच धर्म की पवित्र भावना का दोहन करने में लगे हैं।
ऐसे में बड़ा प्रश्न यह है कि शनिवार को हम सब भगवान राम का नाम लेकर रावण को तो मारेंगे किंतु उत्तर भारत के सबसे पवित्र त्यौहार में बाजार में जिस तरीके से अपनी सेंड लगाई है उसके बाद भ्रष्टाचार का रावण इन रामलीलाओं को कराकर ऐसे ही अट्टहास करता रहेगा या आने वाले समय में रामलीला के आयोजन पवित्र मन से पवित्र उद्देश्य के साथ ऊपरी चमक दमक के बिना धर्म के असली स्वरूप को आम जनता को बताने में रुचि लेंगे या फिर जो जैसा है वैसा ही चलता रहेगा ।