आशु भटनागर । 15 अगस्त 2024 को दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में झंडा फहराते हुए मंत्री कैलाश गहलोत ने कहा कि ‘लोकतंत्र विरोधी ताक़तों’ ने केजरीवाल को जेल भेजकर उन्हें रोकने की साज़िश की है । निश्चित तौर पर उनका सीधा आरोप केंद्र में भाजपा नीत मोदी सरकार पर था । इस बयान के तीन महीने बाद रविवार को कैलाश ने ना सिर्फ मंत्री पद छोड़ा बल्कि आप की प्राथमिक सदस्यता से भी त्यागपत्र दे दिया और दिल्ली की राजनीति में चल रही चर्चाओं के अपेक्षाओं के अनुरूप सोमवार को भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए ।
आम आदमी पार्टी के मंत्री रहते इन्हीं कैलाश गहलोत से जुड़ी संपत्तियों पर 2018 में आयकर विभाग ने छापा मारा था और 100 करोड़ रुपये से ज़्यादा की कर चोरी का दावा किया था। 2019 में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने कैलाश गहलोत के भाई हरीश गहलोत की 1.46 करोड़ की संपत्ति कुर्क की थी, तो 2021 में बीजेपी ने 1000 लो-फ़्लोर एसी बसों के रखरखाव के लिए दिए गए ठेकों में अनियमितता का आरोप लगाया था। तब गहलोत के पास परिवहन मंत्री का प्रभार था।
कभी केजरीवाल के बेहद विश्वास पात्र रहे कैलाश गहलोत के भाजपा में जाने से दिल्ली की राजनीति पर क्या असर पड़ेगा किसको फायदा किसको नुकसान होगा इस पर चर्चा करें उससे पहले यह महत्वपूर्ण है की कैलाश गहलोत में पार्टी क्यों छोड़ी ?
गहलोत के त्यागपत्र के पीछे की असली कहानी
रविवार को प्रेस कॉन्फ़्रेंस में अरविंद केजरीवाल से जब कैलाश गहलोत पर सवाल पूछा गया तो उनकी जगह बगल में बैठे विधायक दुर्गेश पाठक ने उत्तर देते हुए कहा, “बीते कुछ महीनों से कैलाश जी को ईडी हर दिन बुलाती थी, उनको आईटी और ईडी की रेड का सामना करना पड़ रहा था. तो उनके पास कोई रास्ता नहीं था, उन्हें भारतीय जनता पार्टी में ही जाना था।”
ऐसे में बड़ा प्रश्न यह है कि क्या कैलाश गहलोत सिर्फ ईडी के दर से अपना त्यागपत्र देकर भाजपा में शामिल हो गए या फिर इसके पीछे की असली कहानी का आरंभ 15 अगस्त 2024 को होता है । जब केजरीवाल जेल से एल जी वी के सक्सेना को पत्र लिखते हैं कि मैं चूंकि जेल में हूं,मेरी जगह आतिशी जी को झंडा फहराने की इजाज़त दी जाए । आरोप है कि वो चिट्ठी एलजी साहब तक नहीं पहुंचाई गई और उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने झंडा फहराने के लिए कैलाश गहलोत को नामित किया और गहलोत गए भी थे ।
इससे तोड़ा ओर पहले देखा जाए तो फरवरी 2023 में शराब घोटाले में जेल गए आरोपी मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन ने दिल्ली की कैबिनेट से त्यागपत्र के बाद आतिशी और सौरभ भारद्वाज को कैबिनेट में शामिल किया गया। जून, 2023 में आतिशी को राजस्व, प्लानिंग और वित्त विभाग की ज़िम्मेदारी दे दी गई, जिसे इससे पहले कैलाश गहलोत संभाल रहे थे। दिसंबर 2023 में आतिशी को क़ानून विभाग की भी ज़िम्मेदारी मिल गई जिसकी ज़िम्मेदारी भी कैलाश गहलोत के पास थी और इस साल आतिशी को मुख्यमंत्री बना दिया गया। इन घटनाक्रमों को सियासी गलियारों में कैलाश गहलोत की नाराज़गी के रूप में देखा गया था। यह माना गया कि आम आदमी पार्टी में वरिष्ठता और कैडर की नहीं केजरीवाल की पसंद को महत्व दिया जा रहा है। संभवतः बीजेपी में शामिल होते समय इसी लिए कैलाश गहलोत ने भी कहा है कि यह कोई एक दिन का फ़ैसला नहीं है।
कैलाश गहलोत से भाजपा को कितना लाभ कितनी हानि ?
अपेक्षाओं के अनुरूप सोमवार को कैलाश गहलोत ने जब बीजेपी ऑफिस में जाकर सदस्यता ली तो एक बार फिर से भाजपा पर ये आरोप लगा कि बार बार अलग अलग राज्यों में चुनाव जीतने के नाम पर किसी को भी पार्टी में जगह दे देना बीजेपी का पैटर्न बन गया है । राष्ट्रवादी और हिंदूवादी सोच रखने वाले लोगों की भी मजबूरी है और अगर कभी लोगों को भाजपा का विकल्प मिलेगा तो वह उसे बदल देंगे ।
लोग खुल कर पूछ रहे है कि अब करप्शन का मुद्दा कहां गया? इसका सीधा मतलब तो ये हुआ कि दिल्ली चुनाव में बीजेपी फिल्हाल केजरीवाल से पीछे चल रही है वरना कोई मतलब नहीं था कि जिस पूरी पार्टी को करप्ट बताया उसी के नेता को पार्टी ज्वाइन कराते। सोचिए पिछले 2 चुनाव तक विरोध करते रहे बीजेपी के कार्यकर्ताओं पर क्या बीतेगी जब वो कैलाश गहलोत के लिए वोट मांगने निकलेंगे।
यही नहीं आम आदमी पार्टी ने कैलाश गहलोत के भाजपा में जाने को ईडी का डर बताते हुए भाजपा पर दबाव की राजनीति करने का आरोप लगाया तो सोशल मीडिया पर इसे दिल्ली चुनाव में एक बार फिर से आम आदमी पार्टी से पीछे रहने के भी आरोप लगाए जा रहे है ।
ऐसे में चुनाव से मात्र 2 माह पहले आम आदमी पार्टी को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर घेरने वाली भारतीय जनता पार्टी क्या खुद के जाल में फंसती नजर आ रही है या फिर भारतीय जनता पार्टी के चुनाव मैनेजर को यह लगने लगा है कि जनता इस तरीके की बातों को अक्सर भूल जाती है और चुनाव में उन्हें वोट देता है। किंतु उन्हें समझना पड़ेगा कि उनका संघर्ष दिल्ली में कांग्रेस की जगह आम आदमी पार्टी के साथ है ।
वही कैलाश गहलोत भले ही आम आदमी पार्टी के सीनियर नेताओं में आते हैं किंतु वह लोकप्रिय नेताओं में भी आते हैं ऐसा कोई तथ्य दिखाई नहीं देता है । 2020 में भी कैलाश गहलोत इसी सीट से चुनाव लड़े और बीजेपी के अजीत सिंह को मात्र 6,231 वोट के अंतर से हराया था । यद्यपि ऐसे आरोपों पर बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने कहा कि जो नेता पार्टी छोड़ता है या सवाल पूछता है, केजरीवाल की टीम इसी तरह चरित्र हनन करती है।
किंतु क्या मात्र ऐसा कह देने से भारतीय जनता पार्टी अपने कैडर को कैलाश गहलोत को भाजपा में लाने की घटना को सही ठहरा पाएगी ? कैडर के साथ-साथ क्या वह दिल्ली के उन वोटर को समझा पाएगी जो बीते तीन चुनाव से आम आदमी पार्टी पर ही भरोसा करते आ रहे हैं ।
महत्वपूर्ण तथ्य ये भी है कि चुनावी दांवपेंच, परसेप्शन और लोकप्रियता के मामले में दिल्ली जैसे राज्य में फिलहाल वह भारतीय जनता पार्टी पर भारी पड़ती है ऐसे में भ्रष्टाचार के आरोपी को अपने यहां लेकर अपनी वाशिंग मशीन से उसे ईमानदार बना देने का खेल बीजेपी को आने वाले दिनों में भारी नहीं पड़ेगा इसकी कोई राह फिलहाल तो दिखाई नहीं दे रही है ।