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संपादकीय: नोएडा – ग्रेटर नोएडा – यमुना प्राधिकरण में सैलरी की जरूरत किसे है ?

बृहस्पतिवार को हल्दौनी मोड़ पर बने गढ्ढे और पानी भराव की समस्या पर लापरवाही और तकनीकी अक्षमता का हवाला देते हुए प्राधिकरण ने 6 कर्मचारियों को उनकी चयन एजेंसी को वापस कर दिया तो 3 प्रबंधक स्तर के कर्मचारियों की नवंबर सैलरी रोकने के आदेश दे दिए ।

पर प्रश्न यह है कि क्या सैलरी रोकने मात्र से बाबू मानसिकता वाले इन प्रबंधकों की कार्यशैली पर कोई फर्क पड़ेगा? क्या वाकई नोएडा,  ग्रेटर नोएडा या यमुना प्राधिकरण में इस स्तर के अधिकारियों को सैलरी की आवश्यकता भी होती है ?

नोएडा प्राधिकरण में कहा जाता है कि सैलरी तो सिर्फ दिखाने वाले दांत हैं, प्राधिकरण के कर्मचारी कायदे में उनके लिए काम करने के लिए नहीं होते।  प्राधिकरण से जुड़े एक अधिकारी ने कुछ समय पहले ही बातचीत स्वीकार किया कि अगर सैलरी के अनुपात में सभी कर्मचारी के सिर्फ प्राधिकरण आने-जाने पर ही एक सर्वेक्षण कर लिया जाए तो द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी की सैलरी के अनुपात में उनके खर्चों से आप पता लगा सकते हैं कि उनका जीवन यापन कहां से आए पैसों से हो रहा है । ऐसे में जब-जब संविदा पर लगे इन कर्मचारियों की सैलरी रोकने के समाचार आते हैं तो बरबस मुझे बस वही बातें याद आ जाती है और यह सच है कि प्राधिकरण में काम करने वाले इन कर्मचारियों ने अपनी योग्यता और क्षमता से ज्यादा की संपत्तियां बना रखी है ।

ऐसे में सैलरी रोकने से ज्यादा दिन से कर्मचारियों की सेवाएं समाप्त करने का निर्णय बहुत समय बाद प्राधिकरण ने लिया है उसे निश्चित ही प्राधिकरण में कार्य करने वाले कर्मचारी पर पड़ेगा । संभवतः उन्हें भी अपने निकाले जाने का भय हुआ तो वह अपने कार्यशैली और जीवन शैली दोनों में बदलाव ला सकते हैं । प्राधिकरणों को लेकर आम जनमानस में जो भ्रष्टाचार की छवि बनी हुई है उसे सुधारने में मदद मिलेगी, किंतु यह सब हो इसके लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को यहां मौजूद तीनों प्राधिकरण के सीईओ को वह विश्वास भी दिलाना होगा जिसके चलते वैसे कठोर निर्णय लेने में दुविधा ना महसूस कर सके । साथ ही व्यापारिक मानसिकता वाले औद्योगिक विकास मंत्री के स्थान पर एक कठोर दूरदर्शी औद्योगिक विकास मंत्री की भी नितांत आवश्यकता है।

व्यवस्था परिवर्तन से ज्यादा व्यवस्था में मौजूद लोगों की कार्यशैली में परिवर्तन तभी हो सकता है जब उनको दंड का भय हो और प्राधिकरण में प्राधिकरण में सस्पेंशन या सैलरी रोके जाने से ज्यादा बड़ा दंड संविदा पर रखें इन कर्मचारियों अधिकारियों को बाहर करने का ही हो सकता है अन्यथा एक बार प्राधिकरण में आने के बाद वह तमाम तरीके के प्रपंचों से खुद को बचाए रखने में कामयाब होते रहते हैं ।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि तीनों ही प्राधिकरण के साथ-साथ नए बनने वाले प्राधिकरण में भी आवश्यकता के अनुरूप कर्मचारियों का समायोजन करने की प्रक्रिया को भी आरंभ करना बेहद आवश्यक है और इनको संविदा की जगह निश्चित प्रक्रिया के तहत लाया जाना भी आवश्यक है।

वर्षों से राजनैतिक संबंधों के आधार पर संविदा पर रखे जा रहे हैं इन कर्मचारियों प्रबंधको की जवाबदेही न होने की समस्या भ्रष्टाचार के लिए ऑक्सीजन का काम करती है क्योंकि जो व्यक्ति मात्र एक या दो वर्ष के लिए किसी पोस्ट पर आ रहा है उसका उद्देश्य सेवा करना नहीं सिर्फ अपने भविष्य को सुरक्षित करना होता है ।

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