राजेश बैरागी । मैंने कल नोएडा प्राधिकरण मुख्यालय में भ्रमण के दौरान एक महिला कर्मचारी को अर्से बाद देखा। कभी उसके चेहरे पर यौवन का नूर और उसके स्वभाव में न सहे जाने वाला गुरूर रहता था। यह दस बारह बरस पहले प्राधिकरण के विशेष कार्याधिकारी रहे रविन्द्र सिंह यादव का समय था। उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की सरकार थी और प्राधिकरण में रविन्द्र सिंह यादव की। स्वयं तीन तीन विभागों (आवासीय भूखण्ड, आवासीय भवन और उद्योग) के विभागाध्यक्ष होने के अलावा दूसरे विभागों में भी उनकी ही बादशाहत चलती थी।
प्राधिकरण के एसीईओ, सीईओ के लिए उनकी इच्छा का विरोध किया जाना संभव नहीं था।ओएसडी का कक्ष कुछ स्थानीय गुंडे नुमा लोगों की चौपाल बना रहता था। ऐसा 2017 तक चला। राज्य में सत्ता परिवर्तन हुआ तो रविन्द्र सिंह यादव का साम्राज्य भी उजड़ गया। गुंडे नुमा लोग अचानक से गायब हो गए। यह कर्मचारी जिसके चेहरे से ओएसडी रविन्द्र सिंह यादव की हनक टपकती थी, अचानक अनाथ हो गयी।कल मैंने देखा कि उसके चेहरे पर नूर नहीं था बल्कि हवाइयां उड़ रही थीं।
रविन्द्र सिंह यादव को ईडी ने घेर लिया है।उसके घर और बैंक लॉकर से करोड़ों रुपए की नकदी, आभूषण और संपत्तियों के दस्तावेज निकल रहे हैं। नोएडा और पैतृक निवास पर काली कमाई की इमारतें खड़ी पाई गई हैं। यह सब लोगों की गर्दन दबा कर हासिल किया गया था। नोएडा प्राधिकरण धन कुबेर अधिकारियों की जननी रहा है।
दो दिन पहले मुख्य कार्यपालक अधिकारी लोकेश एम ने एक बुजुर्ग को उसी आवासीय भूखण्ड विभाग में पौन घंटा खड़े पाया था जिसमें रविन्द्र सिंह यादव कभी ओएसडी था। मुख्य कार्यपालक अधिकारी ने इस बात पर विभाग के कर्मचारियों को बीस मिनट अपनी सीट पर खड़े रहने की सजा दी थी। यह उनका सौभाग्य है कि रविन्द्र सिंह यादव अब वहां नहीं है अन्यथा सीईओ उस विभाग में जाने की संभवतः जुर्रत भी नहीं करते। उनसे पहले सीईओ ऐसी जुर्रत नहीं कर सके थे नहीं तो रविन्द्र सिंह यादव के घर और बैंक लॉकर में काली कमाई के इतने सुबूत इकट्ठे नहीं होते। मैं प्राधिकरण भ्रमण के लिए आगे बढ़ गया।वह वहीं खड़ी रही। संभवतः उसे उस समय की गई काली कमाई के उजागर होने की चिंता सता रही थी।