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सत्यम शिवम् सुन्दरम : सोशल मीडिया पर फेमस होने, फॉलोवर्स और लाइक की चाह में कुछ भी करने को आतुर लोगों की भीड़ कहां रुकेगी ?

आशु भटनागर । संभल के सीओ अनुज चौधरी के पास मुरादाबाद जिले के रहने वाले मूसा दादा नामक एक युवक का फोन आता है और वह उनसे अपने यूट्यूब चैनल के लिए इंटरव्यू देने की मांग करता है। उनके द्वारा मना करने के बावजूद कि वह उच्च अधिकारियों की परमिशन के बिना इंटरव्यू नहीं दे सकते वह लगातार उन्हें फोन करता है और उकसाने की कोशिश करता है यहां तक की मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का नाम लेकर दबाव बनाने की कोशिश करता है जिसके बाद पुलिस अपना एक्शन लेती है और उसको गिरफ्तार करती है ।

दूसरे केस में गाजियाबाद में फेसबुक पेज चलाने वाले रोहित नाम के एक युवक ने अपने पेज पर लाइक और फॉलोअर बनाने की होड़ में गृहमंत्री अमित शाह की मृत्यु का समाचार बनाकर डाल दिया जिसके बाद गाजियाबाद के भाजपा नेता अनिल कुमार की शिकायत पर इस लड़के को गिरफ्तार कर लिया जाता है दोनों ही घटनाओं में गिरफ्तार युवकों ने जल्दी फेमस होने और अधिक फॉलोअर्स और लाइक की बात कही यह भी मात्र एक संयोग है कि दोनों ही युवकों का संबंध उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले से पाया गया है।

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बीते दो दिवसों में हुई इन दोनों घटनाओं के यह प्रश्न उठने लगा है कि आखिर यह होड़ कहां जाकर रुकेगी ? सोशल मीडिया पर फेसबुक पेज ट्विटर अकाउंट या यूट्यूब चैनल बनाकर खुद को सेलिब्रिटी समझना कोई नई बात नहीं है। इससे पहले टिकटोक नमक प्लेटफार्म पर भी लोग ऐसे ही सेलिब्रिटी बन गए थे जिसको जब सरकार ने बंद किया तो कई लोगों ने अपनी जान तक लेने की कोशिश की क्योंकि वह एक दिन में ही अर्श से फर्श पर आ गए थे।

दरअसल ज्यादा फॉलोअर्स और लाइक के बाद सोशल मीडिया कंपनियों द्वारा पैसे दिए जाने की योजना ने इस खेल को अब किसी भी कीमत पर कुछ भी लिखने का खेल बना दिया है सोशल मीडिया पर ऐसे छोटे नेताओं के अलावा बड़े-बड़े राजनेता भी अब प्रतिदिन खुद के सोशल मीडिया हैंडल्स पर लगातार इंगेजमेंट बनाए रखने के लिए तमाम विवादित मुद्दों को अपने-अपने तरीके से डालकर इस पैसे की होड़ में लगे रहते हैं ।

आज से एक दशक पूर्व जब स्मार्टफोन और सोशल मीडिया का कॉन्बिनेशन आम लोगों के हाथ में आया था तो यह अपनी आवाज उठाने का एक साधन बन गया था किंतु अब यह अफवाहें फैलाने और एजेंडा सेट करने का बड़ा तरीका बनता जा रहा है । इसका दूप्योग और कहां जाकर रुकेगा अब इसको कोई नहीं कह सकता है ।

इसका एक अन्य उदाहरण ग्रेटर नोएडा में भी देखने को मिला जब 2024 में निर्दलीय सांसद का चुनाव लड़ने वाले स्वयंभू समाजसेवी से नेता बने व्यक्ति ने एक अखबार के साथ मिलकर ऐसे समाचार को छपवा दिया, जो तथ्यहीन था। दिलचस्प तथ्य ये है कि जिन अधिकारियों के रेफरेंस से उसने खबर में चर्चा की उन दोनों ही अधिकारियों का ट्रांसफर महीनों पहले हो चुका था । गौतम बुद्ध नगर जिले में विपक्ष की एक बड़े राजनीतिक दल के राष्ट्रीय प्रवक्ता तो अपने अकाउंट पर चर्चा बनाए रखने के लिए लगातार लोगों को उकसाते दिखाई देते हैं । यहां भी बात वही है कि पूरे दिन में किसी भी मुद्दे को लेकर खुद को सही साबित करते हुए अपने फॉलोअर्स के लिए सत्य से परे, स्तरहीन, विवादित कंटेंट परोसना है जिससे उनके सोशल मीडिया अकाउंट पर प्रतिदिन लाखों व्यू और कमेंट आ सके ।

इसी जिले में समस्याओं को लेकर ट्वीट करके ब्लैकमेल करने की कहानी अब आम हो चली है। कई लोगों का दावा है कि लोग ट्वीट करके उसे डिलीट कर देते है । प्राधिकरण, पुलिस और प्रशासन के अधिकारी इन ट्विटरबाजों को कई बार इग्नोर करते हैं तो कई बार समझौता भी कर लेते हैं और कुछ केसेस में छदम नामो से अकाउंट वाले लोग अब इनकी पोल खोलते दीखते है। ग्रेटर नोएडा वेस्ट में जाम को लेकर होने वाले ट्वीट्स, किसानों के आंदोलन के ट्वीट्स, फ्लैट बायर्स के समस्याओं के ट्वीट्स, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को धमकी देने या स्कुलो को बम से उड़ाने के सन्देश इसी कैटेगरी में आ गए हैं I

मनोवैज्ञानिक इसे सोशल मीडिया सिंड्रोम या सोशल मीडिया विकार (एसएमडी)  का विशेष नाम देते हुए कहते हैं कि यह बीमारी हर स्तर पर बढ़ रही है सोशल मीडिया की लत का एक और स्थायी कारक यह तथ्य है कि मस्तिष्क के इनाम केंद्र सबसे अधिक सक्रिय होते हैं जब लोग अपने बारे में बात कर रहे होते हैं। गैर-आभासी दुनिया में, यह अनुमान लगाया गया है कि लोग लगभग 30 से 40% समय अपने बारे में बात करते हैं; हालाँकि, सोशल मीडिया का मतलब है किसी के जीवन और उपलब्धियों को दिखाना – इसलिए लोग 80% समय अपने बारे में बात करते हैं। सोशल मीडिया का उपयोग तब समस्याग्रस्त हो जाता है जब कोई व्यक्ति सोशल नेटवर्किंग साइट्स को तनाव , अकेलेपन या अवसाद से राहत पाने के लिए एक महत्वपूर्ण मुकाबला तंत्र के रूप में देखता है। यह निरंतर उपयोग अंततः कई पारस्परिक समस्याओं की ओर ले जाता है, जैसे कि वास्तविक जीवन के रिश्तों, काम या स्कूल की जिम्मेदारियों और शारीरिक स्वास्थ्य की अनदेखी करना, जो तब किसी व्यक्ति के अवांछनीय मूड को बढ़ा सकता है। इसके बाद लोग डिस्फोरिक मूड स्थितियों से राहत पाने के तरीके के रूप में सोशल नेटवर्किंग व्यवहार में और भी अधिक संलग्न होते हैं। जब सोशल नेटवर्क उपयोगकर्ता सोशल मीडिया के उपयोग के साथ अवांछनीय मूड से राहत पाने के इस चक्रीय पैटर्न को दोहराते हैं, तो सोशल मीडिया पर मनोवैज्ञानिक निर्भरता का स्तर बढ़ जाता है।

अब हालत ये है कि स्वयं को बड़ा नेता या बड़ा सोशल मीडिया सेलिब्रिटी बनाने की चाहत और उससे पैसे कमाने की चाहत ने इसको बहुत बढ़ावा दिया है इस क्रम में राज्यों की सरकारी भी अब इस विकृति बनाने में योगदान देने में लग चुकी है इन दिनों उत्तर भारत की कमोबेश हर राज्य की सरकार सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर को उनके फॉलोअर्स की संख्या के आधार पर 10000 से लेकर 5 लाख रुपए तक प्रति माह देने का विज्ञापन निकाल रही हैं और इसके चलते यह विकृति आने वाले दिनों में और कितनी बढ़ेगी, और कितने लोग कुछ भी कर कर उन सीमाओं को पार करने की कोशिश करेंगे जिन्हें हमारा समाज अब तक गलत मानता आया है यह आने वाले वर्ष 2025 में दिखाई देगा ।

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आशु भटनागर

आशु भटनागर बीते 15 वर्षो से राजनतिक विश्लेषक के तोर पर सक्रिय हैं साथ ही दिल्ली एनसीआर की स्थानीय राजनीति को कवर करते रहे है I वर्तमान मे एनसीआर खबर के संपादक है I उनको आप एनसीआर खबर के prime time पर भी चर्चा मे सुन सकते है I Twitter : https://twitter.com/ashubhatnaagar हम आपके भरोसे ही स्वतंत्र ओर निर्भीक ओर दबाबमुक्त पत्रकारिता करते है I इसको जारी रखने के लिए हमे आपका सहयोग ज़रूरी है I एनसीआर खबर पर समाचार और विज्ञापन के लिए हमे संपर्क करे । हमारे लेख/समाचार ऐसे ही सीधे आपके व्हाट्सएप पर प्राप्त करने के लिए वार्षिक मूल्य(501) हमे 9654531723 पर PayTM/ GogglePay /PhonePe या फिर UPI : ashu.319@oksbi के जरिये देकर उसकी डिटेल हमे व्हाट्सएप अवश्य करे

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