आशु भटनागर । बात 2003 की है, उत्तर प्रदेश में तब बसपा और भाजपा गठबंधन की सरकार थी। मुख्यमंत्री मायावती की रैली होने वाली थी। रैली से एक दिन पहले उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस में पत्रकारों से हंसते हुए कहा कि आप लोग कल रैली में जरूर आइएगा। वहां आपको बहुत मसाला मिलेगा अगले दिन रैली में कार्यकर्ताओं के बीच में उन्होंने भाजपा से गठबंधन तोड़ने की घोषणा कर दी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
मायावती के चरित्र, राजनीतिक सोच और स्पष्ट फैसले लेने की आदत को आप इस घटना से समझ सकते हैं। इस घटना का जिक्र आज इसलिए जरूरी है क्योंकि रविवार को मायावती ने एक बार फिर से आकाश आनंद को बहुजन समाज पार्टी के सभी पदों से हटाते हुए उनकी जगह उनके पिता और पार्टी महासचिव आनंद कुमार और राज्यसभा सांसद राम जी गौतम को बीएसपी का नेशनल को-ऑर्डिनेटर बनाया गया है । इसके साथ ही उन्होंने यह भी घोषणा की की जीते जी उनका उत्तराधिकारी कोई नहीं होगा । आकाश को मायावती 2024 के लोकसभा चुनाव के समय भी एक बार उत्तराधिकारी के पद से हटा चुकी और फिर चुनाव के बाद दोबारा उसे बहाल कर दिया था ।
राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि मायावती दिल्ली चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के कुछ ना कर पाने के कारण आकाश आनंद के ससुर अशोक सिद्धार्थ को मान रही थी और अब अशोक सिद्धार्थ का नाम लेते हुए उन्होंने आकाश आनंद को बसपा से के सभी पदों से हटाया । उन्होंने बाकायदा आकाश पर उनकी पत्नी प्रज्ञा के प्रभाव में होने के आरोप लगाए है ।
मान्यवर काशीराम के पदचिन्हों पर चलकर मैंने भी उनकी एक ईमानदार व निष्ठावान शिष्या एवं उत्तराधिकारी होने के नाते अशोक सिद्धार्थ और आकाश आनंद को पार्टी और आंदोलन के हित में पार्टी से निकाल कर बाहर किया है, जिसने उत्तर प्रदेश सहित पूरे देश में पार्टी को दो गुटों में बांटकर इसे कमजोर करने का घिनौना कार्य किया है। ये कतई बर्दास्त करने लायक नहीं है और यह सब उनकी लड़के की शादी में भी देखने के लिए मिला है।
जहां तक इस मामले में आकाश आनंद का सवाल है, तो आपको यह मालूम है कि अशोक सिद्धार्थ की लड़की के साथ इनकी शादी हुई है और अब अशोक सिद्धार्थ को पार्टी से निकालने के बाद उस लड़की पर अपने पिता का कितना प्रभाव पड़ता है और आकाश पर भी उसकी लड़की का कितना प्रभाव पडता है। यह सब भी अब हमें काफी गंभीरता से देखना होगा, जो अभी तक कतई भी पॉजिटिव नहीं लग रहा है।
मायावती, पूर्व मुख्यमंत्री और बसपा प्रमुख
तो क्या मायावती अब 2003 वाली मायावती नहीं रही है या फिर मायावती एक बार फिर से उसी रो में फैसला लेकर बड़ी वापसी की तैयारी कर रही है । लगभग 12 वर्षों से सत्ता से बाहर बसपा अपने राजनीतिक अस्तित्व के लिए छटपटा रही है तो इस जनवरी में 59 वर्ष की हो चुकी मायावती भी उत्तर प्रदेश में होने 2027 के चुनाव अपने अस्तित्व को बचाने की आखिरी लड़ाई लड़ने और जीतने की जल्दबाजी में दिखाई दे रही है ।
ऐसे में मुद्दा विचारधारा से ज्यादा राजनीतिक वजूद और हारी हुई बाजी को एक आखिरी बार जीत लेने की चाहत का हो गया है जिसके चलते मायावती लगातार प्रयोग करती जा रही है । इसी चाहत का परिणाम है आकाश को बार-बार अपना उत्तराधिकारी बनाना और फिर हटा देना ।
मायावती के अप्रत्याशित फैसला को बहुजन समाज पार्टी का बुजुर्ग किंतु हाशिए पर जा चुका कैडर तो सम्मान दे रहा है किंतु इस फैसले के खिलाफ बसपा के युवा वोटर में आवाज़ उठने लगी है इससे पहले ऐसा कभी नहीं देखा गया किंतु सोशल मीडिया पर एक्टिव युवाओं ने आकाश आनंद को हटाने का विरोध करना शुरू कर दिया है ।
युवा कंधों पर पार्टी का भारी बोझ या मायावती की महत्वाकांक्षा नहीं संभाल पा रहे आकाश आनंद!
आकाश को 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद पार्टी में शामिल किया गया था, लेकिन वे पार्टी को पटरी पर लाने में विफल रहे। हाल ही में हुए दिल्ली विधानसभा चुनावों में उन्हें प्रभारी बनाया गया था लेकिन वे कोई खास प्रभाव नहीं दिखा सके थे। पार्टी राजस्थान, मध्य प्रदेश और तेलंगाना जैसे राज्यों में भी ज्यादा प्रगति करने में विफल रही, जहां उन्होंने पार्टी के प्रयासों की देखरेख की।
ऐसे मे आकाश आनंद को लेकर मायावती लगातार चिंतित दिखाई दे रही है आकाश की तुलना समाजवादी पार्टी में अखिलेश यादव से भी की जाने लगी जहां अखिलेश यादव ने 2007 में समाजवादी पार्टी की बुरी हार के बाद पार्टी को फिर से 2012 में पूर्ण बहुमत के साथ वापसी दिला दी । मायावती आकाश में अखिलेश का वही स्पार्क देखना चाहती थी किंतु वह स्वयं यह भूल गई कि अखिलेश यादव को उनके पिता मुलायम सिंह यादव ने पार्टी में फ्री हैंड दे दिया था और 2012 में पार्टी की वापसी के बाद तमाम अंतर विरोध के बावजूद अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री भी बनाया था । ऐसे में मायावती के चौंकाने वाले अल्पकालिक फैसलों की अनिश्चितता के भंवर में फंसे आकाश आनंद के अखिलेश यादव की तरह राजनेता बनने की तुलना या अपेक्षा करना मायावती के लिए बेमानी है ।
वस्तुत: मायावती को भी अब ये समझना पड़ेगा कि पार्टी के हित में उनकी भूमिका एक्टिव राजनेता से ज्यादा मार्गदर्शन के तौर पर बेहतर रहेगी । पारिवारिक झगड़ों से अलग मायावती को आकाश पर काबिलियत दिखाने के लिए समय और पूर्ण स्वतंत्रता देनी पड़ेगी, वह स्वतंत्रता जो काशीराम ने मायावती पर भरोसा करके उनको दी थी । उत्तर प्रदेश में ही चंद्रशेखर रावण जैसे दलित नेता का उभार मायावती के लिए चिंता का विषय है और उनके विरुद्ध बसपा के कैडर को अपने साथ बनाए रखने के लिए नितांत आवश्यक है कि मायावती बसपा के के स्वर्णिम भविष्य के लिए आकाश आनंद या फिर अन्य किसी सक्षम युवा को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर आगे की राह तय करें नहीं तो आने वाले विधानसभा चुनाव के बाद बसपा और मायावती दोनों की राजनीति का पतन निश्चित है ।
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