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ये “इमरजेंसी” है जिससे आप, भाजपा और कांग्रेस तीनों डरी हुई है पर मात्र कंगना विरोध के लिए इस फिल्म को न देखने वाले ऐतिहासिक सच के अनुभव से अछूते रह जाएंगे

आशु भटनागर । रामायण में एक प्रसंग आता है अशोक वाटिका में लाख प्रयत्न करने के बाद भी जब रावण माता सीता को नहीं अपना पाता है तब एक रात परेशानी में उसकी पटरानी मंदोदरी रावण से कहती है कि तुम तो रूप धरने में माहिर हो तो राम का रूप लेकर क्यों नहीं चले जाते इस पर रावण मंदोदरी से कहता है मैंने कोशिश तो की थी राम का रूप लेने की पर किंतु राम का रूप लेते ही मुझे हर स्त्री में अपनी मां नजर आने लगी ।

कमोवेश कुछ ऐसा ही इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) को लेकर इमरजेंसी फिल्म बनाते समय कंगना रनौत (Kangna Ranaut) के साथ हुआ है । 2022 में 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए  “इमरजेंसी” (Emergency) फिल्म निश्चित तौर पर देश में आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी के कमियों को बताने के लिए शुरू की गई थी । कंगना और भाजपा दोनों शुरू ही से उत्साहित थे । किंतु फिल्म देखने पर ऐसा लगा कि जैसे-जैसे कंगना इंदिरा गांधी के व्यक्तित्व और जानकारी से जुड़ती गई है वैसे-वैसे इमरजेंसी फिल्म में इमरजेंसी को लेकर सिर्फ टाइटल ही बचा। फिल्म मे कंगना के मन मस्तिष्क पर इंदिरा गांधी का चरित्र ऐसा हावी होता गया कि फिल्म इमरजेंसी यानी आपातकाल की कहानी की जगह इंदिरा गांधी का सच्चा चित्रण यानी बायोग्राफी बन गई जिसे हिंदी सिनेमा में कल्ट क्लासिक कहे जाने वाली बेन किंग्सले (Sir Ben Kingsley) की “गांधी” (Gandhi) के समकक्ष माना जा सकता है या फिर उसके बाद भारत में दूसरी सर्वश्रेष्ठ राजनीतिक आत्मकथा कहीं जा सकती है।

फिल्म की कहानीकार, मुख्य कलाकार और निर्देशक कंगना ने इंदिरा गांधी के चरित्र के साथ जो तपस्या की है वह फिल्म में स्पष्ट नजर आती है फिल्म कहीं से भी कमजोर नजर नहीं आती है । कलाकारों का चयन से लेकर समकालीन दृश्य को दिखाने के लिए तैयार की गई पृष्ठभूमि और भाषा का चुनाव बेहद सावधानी के साथ किया गया है फिल्म देखते हुए आपको कहीं भी ऐसा नहीं लगेगा कि यह दृश्य जबरदस्ती तैयार किए गए है, यहाँ हर चरित्र अपने आप को उसके मूल चरित्र से जोड़ते दिखाई देते हैं । खासतौर पर इंदिरा गांधी से जुड़ी तमाम भ्रांतियां मानने वाले लोग इस फिल्म के जरिए इंदिरा गांधी के चरित्र की खूबियां देख सकते हैं ऐतिहासिक तथ्यों को एक ही फिल्म में समेटने के लिए कंगना की तारीफ करनी होगी।

यद्यपि किसी की जीवनी में किन तथ्यों को रखा जाए और किन को हटा दिया जाए उसको लेकर बहस की जा सकती है किंतु यह निर्देशक का अधिकार है कि वह किन को रखती और जितने भी पहलू इंदिरा गांधी से जुड़े दिखाए गए हैं वह इंदिरा गांधी को कहीं से भी कमजोर साबित नहीं करते हैं अंत तक आते-आते फिल्म दर्शकों के मन में इंदिरा गांधी की “इंडिया इज इंदिरा इंदिरा इज इंडिया” वाली छवि को मजबूत कर जाती है ।

फिल्म में ईमानदारी से देश को यह भी बताने का प्रयास किया है कि इमरजेंसी लगाने के बाद इंदिरा गांधी उस भूखे शेर पर सवार हो गई जिसको हटाने के लिए उन्हें 2 साल का समय लग गया । फिल्म ये भी बताती है कि 15 अगस्त 1975 को ही इंदिरा गांधी आपातकाल को हटाना चाहती थी किंतु उसी दिन बांग्लादेश में शेख मुजीबुर्रहमान (Sheikh Mujibur Rahman) के परिवार को विद्रोहियों द्वारा मार देने के घटनाक्रम से उन्होंने तमाम अपेक्षा के बाद इमरजेंसी को नहीं हटाया । इमरजेंसी के द्वारा दौरान इंदिरा के अंदर की कशमकश  फिल्म में देखने लायक है । साथ ही अपने पिता अपने पति से समर्थन न पाई इंदिरा के अपने पुत्र संजय गांधी से वह समर्थन मिलने और उसके अंत  में  उसके दुष्परिणामों से चिंतित इंदिरा की स्थिति का चित्रण बेहद मार्मिक है । लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आंदोलनों के कारण देश में बढ़ते विरोध से आपातकाल की घोषणा, लोगों पर अत्याचार और बाद में उनसे मिलने जाने के साथ-साथ विभिन्न राष्ट्रों अध्यक्षों के समक्ष इंदिरा गांधी के चरित्र की खूबियां आपको  गूंगी गुड़िया से दुर्गा बनने की कहानी बताते हैं । इसके साथ ही शिमला समझौते पर पाकिस्तान के राष्ट्रपति के साथ इंदिरा गांधी के अदूरदर्शी फैसले को लेकर इंदिरा गांधी की उसे समय की मानसिकता का चित्रण बखूबी दर्शाता है कि किस तरीके से व्यक्ति जब देश या समाज की जगह स्वयं को ऊपर रखना लगता है तो कैसे उसके फैसले आत्म केंद्रित हो जाते हैं । वहीं अंत में पंजाब में आतंकवाद के बाद ऑपरेशन ब्लू स्टार को लेकर इंदिरा गांधी की देश को तो टूटने से बचने के लिए अपनी सुरक्षा से सिखों को न हटाने के लिए दिए गए तर्क उनके चरित्र की मजबूती को दिखाते है ।

ऐसे में फिल्म का ईमानदार होना इस फिल्म के लिए नुकसानदायक हो गया है । दिल्ली के चुनाव से पहले रिलीज हुई इस फिल्म से कांग्रेस ओर भाजपा दोनों ने हाथ खींच लिया है तो आप (AAP) यानी आम आदमी पार्टी पंजाब में सरकार के होने वाले डर से इससे दूर है । दरअसल कांग्रेस (Congress) फिल्म को भाजपा(BJP) नेत्री कंगना द्वारा बनाई गई फिल्म के चलते प्रमोट नहीं कर रही है तो भाजपा के लोग फिल्म के साथ फिल्म के कारण इंदिरा गांधी की मजबूत छवि से कांग्रेस को फायदा होते देखा इसे दूर होते दिख रहे हैं ।

बीते दिनों गोधरा पर बनी फिल्म साबरमती रिपोर्ट (The Sabarmati Report) को देशभर में भाजपा के कार्यकर्ताओं को बुला बुलाकर दिखाने वाली भाजपा इस फिल्म से का नाम लेने से भी बच रही है और यही पर राजनीतिक कंगना पर एक कलाकार कंगना कमजोर होती दिखाई दी है । भिंडरावाला के हिस्सों को दिखाए जाने पर पंजाब में फिल्म पर अघोषित बैन लगा है और आप, कांग्रेस, भाजपा तीनों ही दिल्ली चुनाव में अपने अपने पंजाबी सिख वोटो के नुकसान के डर से कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है ।

ऐसे में कमजोर ओपनिंग के बाद पहले ही हफ्ते में फिल्म को लेकर दर्शकों की अनुपस्थिति फिल्म को फ्लॉप की तरफ ले जा रही है किंतु यह फिल्म सिनेमा हॉल में जाकर एक बार देखने लायक फिल्म है और अगर लोग आप, कांग्रेस, भाजपा के प्रोपेगेंडा के कारण इस फिल्म को न देख पाए तो संभव है वह स्वयं और अपने आने वाली पीढ़ियों को एक समृद्ध फिल्म से अछूते रह जाएंगे ।

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आशु भटनागर

आशु भटनागर बीते 15 वर्षो से राजनतिक विश्लेषक के तोर पर सक्रिय हैं साथ ही दिल्ली एनसीआर की स्थानीय राजनीति को कवर करते रहे है I वर्तमान मे एनसीआर खबर के संपादक है I उनको आप एनसीआर खबर के prime time पर भी चर्चा मे सुन सकते है I Twitter : https://twitter.com/ashubhatnaagar हम आपके भरोसे ही स्वतंत्र ओर निर्भीक ओर दबाबमुक्त पत्रकारिता करते है I इसको जारी रखने के लिए हमे आपका सहयोग ज़रूरी है I एनसीआर खबर पर समाचार और विज्ञापन के लिए हमे संपर्क करे । हमारे लेख/समाचार ऐसे ही सीधे आपके व्हाट्सएप पर प्राप्त करने के लिए वार्षिक मूल्य(501) हमे 9654531723 पर PayTM/ GogglePay /PhonePe या फिर UPI : ashu.319@oksbi के जरिये देकर उसकी डिटेल हमे व्हाट्सएप अवश्य करे

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