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क्या केजरीवाल और सिसोदिया हार रहे हैं? विवेक शुक्ला

विवेक शुक्ला I तो क्या दिल्ली में दस साल तक राज करने के बाद आम आदमी पार्टी (आप) सरकार की विदाई हो रही है? दिल्ली में 1996 के बाद फिर से भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने जा रही है? राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस बार का चुनावी मुकाबला पिछली बार की तुलना में काफी अलग रहा। इस बार आप के हक में पहले जैसा माहौल तो नहीं था। खैर, ये देखने वाली बात है कि आने वाले दिनों में दिल्ली में किसकी सरकार बनती है। कहने वाले कह रहे हैं कि अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया अपनी सीटें हार रहे हैं।

तमाम राजनीतिक विशलेषकों की भविष्यवाणियों के बीच देश के प्रख्यात लेखक और जाने-माने ज्योतिषी पंडित जे.पी. शर्मा ‘त्रिखा’ ने दिल्ली में मतदान से  करीब दस घंटे पहले  भविष्याणी कर दी कि दिल्ली में भाजपा की सरकार बनने जा रही है।  कई अंग्रेजी और हिन्दी के अखबारों के लिए साप्ताहिक भविष्यफल का कॉलम लिखने वाले  पंडित त्रिखा कहते हैं कि गृह नक्षत्र का योग आप के पक्ष में नहीं है। इसलिए आप के लिए लगातार तीसरी बार चुनाव जीतना नामुमकिन लग रहा है। हालांकि डॉ. त्रिखा यह तो साफ-साफ नहीं बताते कि भाजपा को 70 सदस्यीय दिल्ली विधानसभा में कितनी सीटें मिलेंगी, पर इतना अवश्य कहते हैं कि  दिल्ली में आठ फरवरी के बाद भाजपा सरकार बनाने की  स्थिति में होगी। मुंबई में रहने वाले डॉ. त्रिखा वास्तुशास्त्र के भी प्रकांड विद्वान हैं।

इस बीच, राजधानी दिल्ली ने नई सरकार को चुनने के लिए मतदान किया बुधवार को मतदान किया। पर मतदान के दौरान  वोटर का रुख ठंडा ही दिखाई दिया। इस बीच,  आम आदमी पार्टी (आप) ने सत्ता पर बने रहने के लिए अपने एकछत्र नेता अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में कसकर चुनाव प्रचार किया। उधर,भाजपा ने भी कोशिश तो पूरी की है कि दिल्ली में 1996 के बाद फिर से कमल का फूल खिले। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा कई अन्य नेता जनता से वोट मांगते रहे। पिछले दो चुनावों में सिफर रहने के बाद कांग्रेस इस बार बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद कर रही है। कांग्रेस को लगता है कि उसने कभी 15 साल तक दिल्ली पर शासन किया था और वह फिर से सरकार बनाने की ताकत रखती है।

वादों की बौछार

याद नहीं आता कि इस बार के चुनाव से पहले कभी पार्टियों ने जनता के सामने वादों की इतनी बौछार कर दी हो। सिर्फ आसमान से चांद-तारे लाने के अलावा इन्होंने सब वादे किए जनता से।  आप के जवाव में,  भाजपा  के लिए, यह चुनाव सिर्फ सीटें जीतने से कहीं अधिक है। पार्टी ने सघन चुनाव अभियान चलाया। आप  के शासन में  भ्रष्टाचार, घोटालों और दिल्ली और पंजाब में कथित अधूरे वादों को आक्रामक रूप से पेश किया। भाजपा के लिए प्रधानमंत्री मोदी के अलावा गृह मंत्री अमित शाह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और कम से कम एक दर्जन केन्द्रीय मंत्री चुनाव प्रचार करते रहे। धामी ने पटपड़गंज, नई दिल्ली, करोल बाग, पटेल नगर, संगम विहार में सभाएं और रोड शो किए। इन सब सीटों में मूल रूप से देवभूमि के हजारों मतदाता रहते हैं। ये कमोबेश भाजपा के साथ हैं।

चुनाव प्रचार करते रहे मोदी- अमित शाह

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के भाषणों में केजरीवाल के शासन के दौरान हुए  कथित घोटालों, वित्तीय कुप्रबंधन और रुकी हुई विकास परियोजनाओं पर फोकस था। भाजपा ने इस बार कई दिग्गज उम्मीदवारों को मैदान में उतारा – जिनमें पूर्व सांसद और प्रतिद्वंद्वी दलों से आए हाई-प्रोफाइल नेता हैं। जिनमें पार्टी के पूर्व सांसद प्रवेश वर्मा और आप सरकार में परिवहन मंत्री कैलाश गौतम शामिल हैं। पार्टी ने अपने बूथ-स्तरीय जुटाव को भी मजबूत किया और केजरीवाल और उनके प्रशासन पर अपने हमलों को बढ़ाने के लिए व्यापक रोड शो आयोजित किए और एक मजबूत सोशल मीडिया अभियान चलाया।

अलग रास्ता कांग्रेस का

आप और भाजपा  की हाई-वोल्टेज रैलियों से दूर, कांग्रेस ने एक अलग रास्ता बनाया। कांग्रेस के नेता महंगाई, प्रदूषण, बेरोजगारी और नागरिक कुप्रबंधन के बारे में बात करते रहे। दिल्ली में एक दशक से अधिक समय तक राजनीतिक बनवास झेल रही कांग्रेस के लिए राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने कई रैलियां की। कांग्रेस ने चुनाव से महीनों पहले दिल्ली न्याय यात्रा और  मतदाताओं के साथ फिर से जुड़ने का अभियान चलाया हुआ था। कांग्रेस का मुख्य संदेश रहा है – आप और भाजपा दोनों ने दिल्ली के साथ इंसाफ नहीं किया; वही दिल्ली में विकल्प है। पर कांग्रेस सारी दिल्ली में नजर नहीं आई। कांग्रेस ज्यादा से ज्यादा दो दर्जन सीटों में मजबूती से चुनाव लड़ी। इनमें नई दिल्ली, मुस्तफाबाद, चांदनी चौक, ओखला, कस्तूरबा नगर,जंगपुरा,मादीपुर सीटें शामिल हैं। विश्वास नगर, शाहदरा, कृष्णा नगर वगैरह में कांग्रेस के पोस्टर तक नजर नहीं आए। खैर, देखते है कि आगामी 8 फरवरी को दिल्ली में कौन से दल को बहुमत मिलता है।

विवेक शुक्ला बीते 35 सालों से साउथ एशिया, बिजनेस, दिल्ली तथा आर्किटेक्चर पर हिन्दी-अंग्रेजी में लिख-पढ़ रहे हैंI उन्होंने ‘गांधीज दिल्ली’ नाम से एक अंग्रेजी में किताब भी लिखी है

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