आशु भटनागर । वर्ष 2011 में जब इंडिया अगेंस्ट करप्शन की अलख जगाने की तैयारी चल रही थी तो भले ही उसका केंद्र दिल्ली को बनाया गया किंतु इस आंदोलन के सभी प्रमुख सूत्रधार अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, कुमार विश्वाश के साथ ने कई प्रमुख नाम गाजियाबाद और नोएडा में निवास करने वाले थे। आंदोलन आगे बढ़ा तो सहमति और असहमति के बीच 2013 में आम आदमी पार्टी के गठन की तैयारी भी शुरू हुई। अरविंद केजरीवाल उसके संयोजक बने पार्टी दिल्ली के चुनाव में उतरी किंतु उसकी शक्तिकेंद्र नोएडा और गाजियाबाद के तमाम प्रमुख रणनीतिकारों के बीच रहा ।
नोएडा से ही देश के सभी इलेक्ट्रॉनिक चैनल के कार्यालय के सहयोग से आदमी पार्टी लगातार देश भर के जनमानस पर छा रही थी। एक प्रमुख चैनल के क्रांतिकारी एंकर का अरविंद केजरीवाल के साथ इंटरव्यू के किस हिस्से को कैसे हाईलाइट करने हैं वाला अनकट वीडियो रिलीज होने से इसकी पुष्टि भी हुई ।
ऐसे में 2014 के लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी एक बड़ी दावेदार बनकर देश की राजनीति में कूदी तो दिल्ली के बाद नोएडा और गाजियाबाद समेत दिल्ली एनसीआर की 7 लोकसभा सीटों को भी बेहद महत्वपूर्ण माना गया। 2014 के लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी का असर यह था कि इसके प्रत्याशी केपी सिंह राघव को बीजेपी की आंधी के बाबजूद को लगभग 50000 वोट मिले ।
मात्र 2 वर्ष पूर्व खड़ी हुई एक पार्टी के लिए है यह बेहद उत्साह जनक परिणाम थे। माना जा रहा था कि दिल्ली में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने वाली आम आदमी पार्टी का आने वाले समय में नोएडा यानी गौतम बुद्ध नगर और गाजियाबाद दोनों ही जगह आम आदमी पार्टी का कैडर मजबूत होता जाएगा। ऐसे में आज 10 वर्ष बाद इस बात की समीक्षा आवश्यक है कि क्या नोएडा में आम आदमी पार्टी उन अपेक्षाओं के अनुरूप अपने आप को नोएडा जैसे शहर में मजबूत कर पाई या अब इस शहर में बस नाम के लिए पार्टी का संगठन बचा है ।
शुरुआत 14 अप्रैल 2025 को अंबेडकर जयंती के कार्यक्रम के लिए आम आदमी पार्टी की तैयारी और इच्छा शक्ति से करते हैं। आम आदमी पार्टी राजनीति में पारंपरिक गांधी वादी राजनीति की जगह भगत सिंह और डॉ भीमराव अंबेडकर को अपना आदर्श बता कर राजनीति करने के लिए सामने आई थी ।

दिल्ली विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद जब भगत सिंह और अंबेडकर के फोटो दिल्ली सरकार ने दूसरी दीवार पर लगाए तो इसे उन्होंने दोनों का अपमान बढ़कर हंगामा भी किया किंतु 14 अप्रैल 2025 को डॉ आंबेडकर के जन्म दिवस के भव्य कार्यक्रम की जगह जब 13 अप्रैल 2025 को एक दिन पूर्व पार्टी के मात्र 40 से 50 कार्यकर्ताओं के साथ सफाई कार्यक्रम की प्रेस विज्ञप्ति मीडिया में गई तो यह प्रश्न उठने लगा कि क्या आम आदमी पार्टी नोएडा में कहीं मौजूद है या फिर अब बस इसकी प्रतीकात्मक उपस्थिति रह गयी है और अगर यही कटु सत्य है तो क्या मात्र 10 वर्ष में लोग आम आदमी पार्टी छोड़कर चले गए है या फिर पार्टी के संगठन की गलत नीतियों और जिले में गलत चयन के चलते उदासीन होकर घरों में बैठ गए है।
एनसीआर खबर में इस बात को लेकर जब आम आदमी पार्टी की प्रेस विज्ञप्ति को ध्यान से पढ़ तो उसमें 10 वर्ष पूर्व मौजूद किसी भी कार्यकर्ता का नाम मौजूद नहीं था इससे भी हैरानी करने वाली बात यह थी कि आम आदमी पार्टी में उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के रिश्तेदार और 2014 का चुनाव लड़ने वाले केपी सिंह राघव स्वयं इस कार्यक्रम से दूरी बनाए हुए थे।
प्रश्न यह है कि क्या केपी सिंह राघव आम आदमी पार्टी छोड़ चुके हैं या फिर आम आदमी पार्टी के संगठन में उन्होंने रुचि लेना बंद कर दिया एनसीआर खबर को मिली जानकारी के अनुसार वर्तमान में आम आदमी पार्टी के तीन प्रमुख चेहरे किसान प्रकोष्ठ प्रदेश अध्यक्ष अशोक कमांडो, जिलाध्यक्ष राकेश अवाना और युवा प्रकोष्ठ प्रदेश अध्यक्ष ओर पूर्व विधानसभा प्रत्याशी पंकज अवाना है । हैरत की बात यह है कि यह तीनों ही चेहरे ग्रामीण परिवेश से आते हैं। कभी शहरी समाज का प्रतिनिधित्व करने वाली आम आदमी पार्टी में इस समय कोई शहरी नाम नहीं जुड़ा है बताया जाता है कि पार्टी में नोएडा के कई प्रमुख चेहरे या तो पार्टी छोड़ चुके हैं या फिर शहर छोड़ कर जा चुके हैं ।
कहा जा रहा है कि नोएडा यानी गौतम बुध नगर में आम आदमी पार्टी का नोएडा संगठन अब अपने अंतिम सांसें गिन रहा है । पार्टी की मिडिल क्लास विरोधी राजनीति और ग्रामीण नेताओं द्वारा मिडिल क्लास को लगातार अपेक्षित किए जाने के परिणाम से पार्टी लगातार कुछ गांव या फिर बस कुछ घरों तक सीमित कर रह गई है। हालत यह है कि पार्टी पिछले 6 वर्षों में कोई चुनाव मजबूती से नहीं लड़ सकी है। पार्टी की जमीनी मजबूती आप इस बात से लगा सकते हैं कि 2024 के लोकसभा चुनाव में जब समाजवादी पार्टी में आम आदमी पार्टी को गौतम बुद्ध नगर सीट ऑफर की तो पार्टी को यहां एक अदद प्रत्याशी नहीं मिला था। दावा किया जाता है कि नोएडा के अधिकांश नेता जमीनी स्तर पर संगठन को मजबूत करने की जगह दिल्ली जाकर चेहरा चमकाने की कोशिश में लगे रहते हैं ।
यह बात इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि देश भर में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के भ्रष्टाचार के विरुद्ध खड़ी हुई मध्यम वर्ग की आम आदमी पार्टी आज किसी जिले में महज कुछ गांव या घरों की पार्टी बन कर रह जाए तो पार्टी के स्थानीय नेताओं की कार्यशैली और क्षमता पर प्रश्न खड़ा होता है ।
प्रश्न पार्टी के नेतृत्व सम्भल रहे प्रदेश प्रभारी ओर राज्यसभा सांसद संजय सिंह की कार्यक्षमता पर भी खड़ा होता है कि आखिर उत्तर प्रदेश में वह आम आदमी पार्टी को लेकर क्या रणनीति बना रहे हैं। क्या वह दिल्ली में राज्यसभा सांसद बनने के चलते उत्तर प्रदेश संगठन पर ध्यान नहीं दे पा रहे क्या उत्तर प्रदेश को अब एक नए ऊर्जावान नेता और नेतृत्व की आवश्यकता है?
ऐसे में अंतिम सत्य यही है कि उत्तर प्रदेश की आर्थिक राजधानी और दिल्ली से लगे हुए गौतम बुद्ध नगर में अगर आम आदमी पार्टी इस स्तर तक पहुंच गई है तो उसका जिम्मेदार स्थानीय संगठन भी है और उसका केंद्रीय नेतृत्व के बड़े नेताओं की पार्टी के स्थानीय नेताओं से सीधा संपर्क ना होना है । तो अगर पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व और स्थानीय नेताओं के बीच संपर्क में इतनी दूरी आ चुकी है तो इसके पुनर्जीवित होने की संभावना अब कम ही है ।