आशु भटनागर । 2 दिन पहले नोएडा में पुलिस कमिश्नरेट में हुए कार्यक्रम के दौरान उत्तर प्रदेश के डीजीपी प्रशांत कुमार ने पिंक बूथ समेत कई पुलिस परियोजनाओं को नागरिकों को समर्पित किया । जब इस दौरान डीजीपी प्रशांत कुमार गौतम बुध नगर समेत उत्तर प्रदेश के कई जिलों में राजनैतिक संरक्षण में पनप रहे नए तरीके के अपराधो और उनके निवारण का जिक्र कर रहे थे । तब जिले के ही कुछ समाजसेवी किसी चर्चा में डीजीपी द्वारा नोएडा के समाजसेवी और राजनेताओं से मुख्यमंत्री की तरह मिलने की इच्छा जता रहे थे ।

मैं आश्चर्यचकित था कि आखिर प्रदेश के डीजीपी को जनप्रतिनिधियों या मुख्यमंत्री की तरह किसी भी शहर के समाजसेवियों या नेताओं से मिलने की आवश्यकता क्यों होनी चाहिए । गौतम बुध नगर पुलिस कमिश्नरेट में बेहतर काम कर रही कमिश्नर लक्ष्मी सिंह और उनके साथ उनकी टीम प्रतिदिन लोगों से अलग-अलग लेवल पर मुलाकात करती है और समस्याओं के समाधान के साथ साथ शहर में कानून व्यवस्था बनाए रखने में मदद करती है ।

उसके साथ ही मेरा ध्यान सोशल मीडिया पर ग्रेटर नोएडा के सीईओ के कार्यालय में बैठकर काम करने की जगह सड़कों पर घूम कर लोगों से मिलकर समाधान की अपेक्षाओ वाले कई पोस्ट पर भी गया । सीईओ को लगभग निकम्मा साबित करने वाले लोगों का दावा था कि पिछले कई सीईओ मुकाबले नए सीईओ सड़क पर उतर कर ना तो लोगों से मिलते हैं न सोशल मीडिया या मीडिया में अपनी चर्चा करते दीखते हैं ।
लगभग एक ही समय पर हुई इन दो घटनाओं ने मेरे मन में यह प्रश्न पैदा किया कि आखिर सोशल मीडिया के बदलते दौर में लोगों को कार्य के लिए किसी अधिकारी के व्यक्तिगत तौर पर उनसे मिलने या उनसे सांत्वना लेने या उनके काम को प्राथमिकता करने का वादा करने की चाहत क्यों है ?
आखिर हमें एक बेह्टर सिस्टम की जगह किसी व्यक्ति विशेष या संस्था के शीर्ष अधिकारी से मिलकर खुश होने की चाहत क्यों है? बिना यह जाने कि वह अधिकारी आपसे मिले बिना अपनी पूरी टीम के साथ दिन रात लगकर आपके शहर के लिए व्यवस्था अपग्रेडेशन के कामों में दिन-रात लगा है ।
ग्रेटर नोएडा के सीईओ रवि एनजी को लेकर उठ रहे इन विवादों से मैं इसलिए भी चकित था कि ऐसे कमेंट सोशल मीडिया पर उस अधिकारी के लिए हैं जिसने महज 2 वर्ष के कार्यकाल में न सिर्फ़ बरसो से कर्ज में दबे ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण को घाटे से निकलकर अपने पैरों पर खड़ा करने का अभूतपूर्व कार्य किया । बल्कि ग्रेटर नॉएडा में दशक भर से रुकी आधारभूत संरचना (infrastruchture) और विकास की परियोजनाओं को फिर से शुरू किया । यही नहीं अमिताभ कांत की सिफारिश पर शहर के रुके हुए हुए 98 प्रोजेक्ट्स में 78 प्रोजेक्ट्स में 25% अमाउंट (एक हजार चौदह करोड़ )जमा करा कर उनके 42000 फ्लैट बायर्स की रजिस्ट्री का रास्ता खोल दिया और बाकी बचा एक हजार छ सौ अड़सठ करोड़ अगली दो किश्तों में लाने का लक्ष्य बनाया है । तुलनात्मक सच ये है कि जिस ग्रेटर नोएडा में बीते ७ वर्षो में मात्र 20000 रजिस्ट्री हुई थी वहीं बीत एक वर्ष में रिकार्ड 15400 फ्लैट की रजिस्ट्री हुई है I इसके अलावा शाह्बेरी पर एलिवेटेड रोड के साथ ग्रेटर नोएडा वेस्ट में स्टेडियम, ईएसआई अस्पताल और अंतिम निवास जैसी परियोजनाओं पर कार्य शुरू किया जा रहा है I हवेल्स, हायर और अवाडा जैसे बड़े औधोगिक प्रोजेक्ट्स शुरू हुए हैI
ऐसे में अगर वह सीईओ सिर्फ चंद सोशल मीडिया पर एक्टिव कथित समाजसेवियों और इनफ्लुएंसर से मुलाकात में कर पाने के कारण निकम्मा है तो संभवत: यह शहर उनसे पूर्व सरकारों में रहे कथित एक्टिव सीईओ को ही डिजर्व करता है
लंबे समय के बाद गौतम बुध नगर में ऐसे जिलाधिकारी, पुलिस कमिश्नर ओर तीनों ही प्राधिकरणों में ऐसे सीईओ तैनात हुए हैं जो प्रतिदिन जिले के लोगों से अपने कार्यालय में समस्याओं के लिए लोगों से न सिर्फ मिलते हैं बल्कि उन पर एक्शन भी लेते है। किंतु सड़क पर किसी दिन सफाई न होने या जाम लगने या फिर कहीं कानून व्यवस्था के निरंकुश होने के मामले पर शीर्ष अधिकारियों के सड़कों पर उतरकर लोगों को भरोसा दिलाने जैसी सोच के बीच यह जानना आवश्यक है कि शीर्ष पद पर बैठा अधिकारी आपके हितो की योजनाओं बनाने और उसे सफलता से कार्यान्वित करने के लिए होता है ना कि जनमानस के बीच बैठकर नेता की तरह लोकप्रिय होने के लिए होता है ।
ठीक इसी तरीके से पुलिस कमिश्नर लक्ष्मी सिंह के कार्यकाल में जिले की कानून व्यवस्था बेहतर हुई है, चाहे वह गैंगस्टर एवं माफिया नेटवर्क पर कठोर कार्रवाई हो, साइबर अपराध के विरुद्ध विशेष अभियान, ड्रग्स और अवैध शराब के खिलाफ निर्णायक कदम, अवैध कॉल सेंटरों का पर्दाफाश, या फिर वैश्विक आयोजनों की उत्कृष्ट सुरक्षा व्यवस्था हो। इसके साथ-साथ महिला सुरक्षा हेतु पिंक बूथ्स की स्थापना, थानों में वीडियो वॉल्स की शुरुआत, त्वरित रिस्पॉन्स के लिए मॉडर्न वाहनों का समावेश, और जेवर एयरपोर्ट जैसी महत्वपूर्ण परियोजनाओं में भागीदारी ने नोएडा पुलिस को पूरे राज्य में एक मॉडल फोर्स के रूप में स्थापित किया है और कानून व्यवस्था में लोगों का विश्वास बढ़ा है। यद्यपि कुछ प्रकरणों में चौकी या थाने की शिकायत अभी भी कई बार सामने आती है। किंतु ये अब बेहद कम है। संभवतः कुछ मामलों में चौकी या थाने लेवल पर व्यवस्था के निरंकुश होने की बात अगर हो भी तो उसके लिए प्रतिदिन कमिश्नर से मिलकर लोग सीधा संवाद कर सकते हैं ।
किंतु डी एम, सीपी, डीजीपी या सीईओ की व्यक्तिगत तरफदारी से अधिक इन अपेक्षाओं में मेरे लिए समस्या यह थी कि क्या एक नागरिक के तौर पर हमारी अपेक्षा सिस्टम के सही होने से ज्यादा अधिकारियों से निकटता या फिर अधिकारियों के साथ फोटो खींच कर अपनी दुकानदारी चमकाने की रह गई है आखिर क्यों उत्तर प्रदेश के औद्योगिक राजधानी कहे जाने वाले शहर में लोगों को शीर्ष पदों पर बैठे व्यक्तियों से मिलने की चाह हो रही है ? या फिर शीर्ष अधिकारियों के कर्मठ होने के बावजूद आमजन प्राधिकरण, प्रशासन और पुलिस में निचले स्तर पर बैठे कर्मचारिओ के कारण परेशान है और हताशा में वो उसका ठीकड़ा इन अधिकारियों से मिलने की चाह के तौर पर रखते हैं।
ये भी सच है कि यह मनुष्य का स्वभाव भी है कि सिस्टम में दशकों के रुके हुए कार्य जब परिवर्तन के बाद होने लगते है तो उसे लगता है कि यह परिवर्तन कुछ मिनट में हो जाए किंतु दशकों से जंग लगी व्यवस्था को अगर सरकार और अधिकारी मिलकर आगे बढ़ने का प्रयास में लगे हैं तो अपने व्यक्तिगत अहम के लिए उनकी आलोचना की जगह लोगों को उनके साथ देना चाहिए ताकि ऐसे अधिकारियों का उत्साह वर्धन हो सके साथ शहर की कार्य योजनाओं में तेजी भी आ सके ।