राष्ट्रपति ने वक्फ संशोधन बिल को दी मंजूरी दे दी है जिसके बाद नया कानून अस्तित्व में आ गया है। विधेयक को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु के पास भेजा गया था और उनकी मंजूरी से वक्फ संपत्तियों को नियंत्रित करने वाले 1995 के कानूनों में संशोधन का रास्ता साफ हो गया। एनडीए सरकार, वक्फ संशोधन विधेयक को मोदी 3.0 के पहले वर्ष में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर के रूप में पेश कर रही है। अब राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के तुरंत बाद इसे कार्यान्वयन के लिए अधिसूचित करने की उम्मीद है।
आपको बता दें किवक्फ (संशोधन) विधेयक को शुक्रवार की सुबह राज्य सभा में लंबी बहस के बाद पारित कर दिया गया, जिसमें सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच तीखी नोकझोंक हुई। उच्च सदन में विधेयक पर करीब 14 घंटे तक बहस की गई और फिर 128 मत पक्ष में और 95 मत विरोध में होने पर इसे पारित कर दिया। बताना चाहेंगे कि इस विधेयक को इससे पहले लोकसभा ने करीब 12 घंटे की बहस के बाद मंजूरी दी थी, जिसमें 288 मत पक्ष में और 232 मत विपक्ष में पड़े थे।
इससे पहले ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने विधेयक के प्रावधानों पर अपनी चिंता से अवगत कराने के लिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से जल्द से जल्द मुलाकात का समय देने का अनुरोध किया था, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता डॉ. एस.क्यू.आर. इलियास ने महासचिव मौलाना फजलुर रहिम मुजद्ददी द्वारा लिखे गए पत्र की सामग्री का खुलासा करते हुए कहा कि इस अधिनियम में किए गए संशोधन में वक्फ संस्थाओं के प्रशासन और स्वायत्तता से संबंधित महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं, जो ऐतिहासिक रूप से धार्मिक और धर्मार्थ गतिविधियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते आए हैं। राष्ट्रपति से मिलने का उद्देश्य हाल ही में पारित विधेयक पर अपनी गहरी चिंता व्यक्त करना है और इसके देशभर में मुस्लिम समुदाय पर पड़ने वाले प्रभावों पर चर्चा करना है।
वक्फ संशोधन बिल के कानून बनते ही होंगे बड़े बदलाव
ऑनलाइन होगा वक्फ का डेटाबेस
वक्फ बोर्ड संशोधन बिल के पारित होते ही वक्फ कानून में बड़े बदलाव होंगे। कानून के लागू होने के 6 महीने के भीतर हर वक्फ संपत्ति को सेंट्रल डेटाबेस पर रजिस्टर्ड करना अनिवार्य होगा। वक्फ में दी गई जमीन का पूरा ब्यौरा ऑनलाइन पोर्टल पर 6 महीने के अंदर अपलोड करना होगा और कुछ मामलों में इस टाइम लिमिट को बढ़ाया भी जा सकेगा।
गैर-मुस्लिमों को वक्फ बोर्ड में शामिल करना अनिवार्य
एक बड़ा बदलाव यह भी आएगा कि गैर-मुस्लिमों को वक्फ बोर्ड में शामिल करना जरूरी होगा। वक्फ बोर्ड में दो महिलाओं के साथ दूसरे धर्म से जुड़े दो लोग शामिल होंगे। वक्फ बोर्ड में नियुक्त किए गए सांसद और पूर्व जजों का भी मुस्लिम होना जरूरी नहीं होगा। सरकार के मुताबिक इस प्रावधान से वक्फ में पिछड़े और गरीब मुस्लिमों को भी जगह मिलेगी और वक्फ में मुस्लिम महिलाओं की भी हिस्सेदारी होगी।
वक्फ बोर्ड में दो मुस्लिम महिलाएं भी होंगी
राज्यों के वक्फ बोर्ड में भी दो मुस्लिम महिलाएं और दो गैर-मुस्लिम सदस्य जरूर होंगे। साथ ही शिया, सुन्नी और पिछड़े मुस्लिमों से भी एक-एक सदस्य को जगह देना अनिवार्य होगा। इनमें बोहरा और आगाखानी समुदायों से भी एक-एक सदस्य होना चाहिए। इन दोनों मुस्लिम संप्रदायों के लिए अलग-अलग वक्फ बोर्ड बनाने का भी प्रावधान इस कानून में जोड़ा गया है।
सिविल कोर्ट या हाईकोर्ट में अपील करना मुमकिन
लोकसभा से पास बिल में कहा गया है कि अब डोनेशन में मिली प्रॉपर्टी ही वक्फ की होगी। जमीन पर दावा करने वाला ट्रिब्यूनल,रेवेन्यू कोर्ट में अपील कर सकेगा। साथ ही सिविल कोर्ट या हाईकोर्ट में अपील हो सकेगी। ट्रिब्यूनल के फैसले को चुनौती दी जा सकेगी। मामले में वक्फ ट्रिब्यूनल के फैसले के खिलाफ 90 दिनों में रेवेन्यू कोर्ट, सिविल कोर्ट और हाई कोर्ट में अपील दायर करने का लोगों के पास अधिकार होगा, जो मौजूदा कानून में नहीं है।
सरकार के पास होगा वक्फ के खातों का ऑडिट कराने का अधिकार
केंद्र और राज्य सरकारों के पास वक्फ के खातों का ऑडिट कराने का अधिकार होगा, जिससे किसी भी तरह के भ्रष्टाचार को रोका जा सकेगा। वक्फ बोर्ड सरकार को कोई भी जानकारी देने से मना नहीं कर सकता और वक्फ बोर्ड ये भी नहीं कह सकता कि कोई जमीन सैकड़ों साल पहले से किसी धार्मिक मकसद से इस्तेमाल हो रही थी तो वो जमीन उसकी है। बता दें कि वर्ष 1950 में पूरे देश में वक्फ बोर्ड के पास सिर्फ 52 हजार एकड़ जमीन थी, जो वर्ष 2009 में 4 लाख एकड़ हो गई। 2014 में 6 लाख एकड़ हो गई और अब वर्ष 2025 में वक्फ बोर्ड के पास देश की कुल 9 लाख 40 हजार एकड़ जमीन है।
अफसर के पास होगा विवाद निपटाने का अधिकार
किसी भी विवाद की स्थिति में स्टेट गवर्नमेंट के अफसर को यह सुनिश्चित करने का अधिकार होगा कि संपत्ति वक्फ की है या सरकार की। हालांकि बिल के प्रावधान को लेकर विपक्ष ने कड़ी आपत्ति जताई है। विपक्षी सांसदों का कहना है कि अफसर सरकार के पक्ष में फैसला करेंगे और यह भी तय नहीं है कि अफसर कितने दिन में किसी विवाद का निपटारा करेंगे।