नोएडा-ग्रेटर नोएडा में अक्सर प्राधिकरणों द्वारा यहां के गांवों के साथ सौतेला व्यवहार करने के आरोप लगाए जाते हैं अक्सर यह कहा जाता है कि नोएडा-ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण ने शहरों में सेक्टर को तो बहुत बढ़िया विकसित किया किंतु गांव में सड़क, नाली, खड़ंजे की सुविधा देने के समय अधिकारी सौतेला व्यवहार करते है । जिससे गांव में विकास नहीं हो पता है और नोएडा – ग्रेटर नोएडा के गांव विकास की दौड़ में पिछड़ जाते है ।

किंतु सिक्के का दूसरा पहलू इन दिनों शाहबेरी में देखने को मिल रहा है। शाहबेरी यूं तो इस क्षेत्र में अपनी बर्बादी की कहानी 2011 में ही लिख चुका है । जब ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण द्वारा यहां गांव के अतिक्रमण अधिग्रहण के समय उसने कोर्ट में जाकर इस अधिग्रहण को गांव के विकास का दुश्मन बताया और दावा किया कि अगर अधिग्रहण रद्द होता है तो वह इस गांव में इस जमीन पर खेती ही करेंगे । इसके बाद 2011 में गजराज वर्सेस स्टेट के साथ इस मामले में कोर्ट ने शाहबेरी और पतवारी गांव के अधिग्रहण को निरस्त कर दिया ।
कोर्ट में अधिग्रहण के खिलाफ गए लोगों ने मुकदमा तो जीत लिया किंतु उसके बाद से लगातार यह क्षेत्र स्लम बनता गया।गाँवों में पैसे के लालच में यहां एक के बाद एक अवैध बिल्डर फ्लोर खड़े होते गए और कथित किसान लोगो द्वारा ही अवैध कालोनियां काट दी गई और हालात यह हो गई कि गाजियाबाद से ग्रेटर नोएडा को जोड़ने वाले मार्ग की चौड़ाई मंत्र 3 मीटर तक रह गई । शाहबेरी के दोनों और बने कच्चे नाले अक्सर यहां बने अवैध बिल्डर फ्लोर से निकलने वाले पानी के कारण जाम रहते या फिर उसके पानी को सड़क पर देखा जाता है ।
ऐसे में ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के सीईओ रवि एनजी ने लोगों को परेशानी समझते हुए शाहबेरी के बीचो-बीच बनी इस सड़क के दोनों तरफ नाले को पक्का करने और सड़क को डेढ़ डेढ़ मीटर चौड़ा करने का भागीरथ कार्य हाथ में लिया। महीनों की मेहनत के बाद यह माना गया कि इस पूरे कार्य को 20 दिनों में पूर्ण कर लिया जाएगा किंतु 20 दिनों के बावजूद जब 50% कार्य ही हो पाया तो एनसीआर खबर की टीम ने वस्तु उसकी जानने के लिए ग्रेटर नोएडा से गाजियाबाद को जोड़ने वाली शाहबेरी गांव के इस बीच की सड़क को देखने का निश्चय किया ।
तमाम बातों के बाद यह कार्य 20 दिनों में पूर्ण क्यों नहीं हो पाया, इसका कारण जानकर आप हैरान रह जायेंगे। कार्य मैं लगातार हो रही देरी का एक प्रमुख कारण शाहबेरी गांव में दोनों तरफ अवैध अतिक्रमण कर रहे लोगों का असहयोग प्रमुख है । बताया जा रहा है कि शाहबेरी गांव को इस सड़क के दोनों तरफ आबादी की तरफ बनी दुकानों के दुकानदारों ने प्राधिकरण के मैनेजरो, ठेकेदारों को प्रलोभन, डर और दबाव दिखाकर दोनों तरफ डेढ़ मीटर सड़क और नाले को कम करने का दबाव बनाना शुरू कर जिसके कारण कार्य में शिथिलता आनी शुरू हुई मामला वरिष्ठ अधिकारियों तक पहुंचा तो स्वयं एसीईओ प्रेरणा सिंह को इसके लिए उतरना पड़ा और अब सड़क के दोनों तरफ नालियों को प्रॉपर बनाने की तैयारी की जा रही है।

ऐसे में अगर यह कहा जाए की शाहबेरी के लोग ही अपने गांव के विकास के लिए बना रही डेढ़ मीटर चौड़ी सड़क और नाले के विकास को रोकने के लिए स्वार्थ वश पलीता लगा रहे हैं तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी है ।
उससे भी बड़ा खेल यह है कि जहां-जहां सड़क बनाई गई है वहां पर गांव के दोनों तरफ बने अवैध मार्केट को रास्ता देने के लिए इन्हीं दुकानदारों ने नालों के ऊपर रैंप बनाने शुरू कर दिए । दुखत तथ्य यह है कि लगभग हर 300 मीटर पर बने दोनों तरफ बने यह रैंप नालों और डेढ़ मीटर चौड़ी की गई सड़क के आधे हिस्से को खा जा रहे हैं। वहीं जिन दुकानों के आगे नाले बन गए हैं वहां पर दुकानदारों ने उसे प्लाई से ढक कर दुकानों को सड़क तक लाने की पूरी तैयारी कर ली है। जिसके चलते सड़क को चौड़ा करने का उद्देश्य धूमिल हो रहा है । प्रश्न ये है की जैसे तैसे करके प्राधिकरण के सीईओ की पहल पर ये नाले और सड़क बन भी जायेगी तो अपने स्वार्थ वश क्या गाँव के लोग और दूकान दार इस रास्ते को फिर से नहीं कब्जा लेंगे इसकी क्या गारंटी है ? अगर दुकाने नाले से सटी हुई ही रहेंगी तो इनका कूड़ा इनमे जमा नहीं होगा , ये चोक नहीं होंगे ऐसा कैसे नहीं होगा ?


गांव में विकास को लेकर अधिकारियों की भूमिका को पर प्रश्न खड़ा करने वाले लोगों के लिए शाहबेरी एक उदाहरण मात्र है कि अगर नोएडा और ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के अधिकारी ईमानदारी से भी गांव के विकास की कोशिश करना शुरू करें तो यहां के गांव के लोग अपने स्वार्थ के लिए इन सड़कों और नालियों को नहीं बनने देंगे । और बिना गांव वालों के जमीनों के अवैध कब्जे का स्वार्थ छोड़े बिना किसी भी गांव का विकास संभव नहीं है ।