आशु भटनागर। बीते 15 वर्षों से ग्रेटर नोएडा वेस्ट और ग्रेटर नोएडा को जोड़ने वाली लाइफ लाइन कही जाने वाली 130 मीटर सड़क का 200 मीटर हिस्सा तिलपता चौक के पास आते आते किसी पिछड़े हुए गांव से भी बदतर हो जाती है । असल में वहां कभी सड़क बनी ही नहीं है I लोगो का दावा है कि बरसों से सड़क से गुजरते प्रतिदिन 50000 वाहनों और वाहन चालकों की समस्या पर एक पूंजीपति के लालच और जिद के आगे कानून, सरकार, प्राधिकरण सब बेबस है ।
बीते 14 वर्षों से प्रतिदिन शहर के नागरिक सड़क से जब-जब गुजरते हैं तब तक इसके लिए प्राधिकरण, सरकार और तोशा इंडस्ट्रीज लिमिटेड के मालिको को कोसते है । लोगों के अनुसार कानून अंधा है पर ऐसा लगता है जजों ने भी इस कंपनी के आगे अपनी आंखें बंद कर ली और प्राधिकरण के भ्रष्ट अधिकारियो ने वर्षों से इस सड़क को बनाए जाने के कुछ नहीं किया।
एक वर्ष पूर्व ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के सीईओ रवि एन जी ने तोशा कंपनी के मालिकों और प्रतिनिधियों के साथ सेटलमेंट की बातें शुरू करी, ऐसा लगा कि अबकी बात लोगो को इसकी समस्या से मुक्ति मिल जायेगी। किंतु कंपनी के प्रतिनिधियों की अव्यावहारिक मांग के आगे एक बार फिर से समस्या वही की वही रह गई । मंगलवार को इसका पता लोगों को तब चला जब तोशा कंपनी के मालिकों ने तिलपता के पास टूटी इस सड़क के हिस्से के पास टेंट लगाकर एक गार्ड बैठा दिया और एक नोटिस बोर्ड लगा दिया कि यह जमीन विवादित है यहां पर प्राधिकरण क्या कोई भी कुछ कर नहीं सकता है।


ऐसे में एनसीआर खबर की टीम ने इस पूरे घटनाक्रम और इस पूरे विवाद को शुरू से जांचना शुरू किया जिसके बाद आप समझेंगे कि भारत में कैसे एक कंपनी हजारों लोगों को बंधक बना सकती है I आज इस पूरे घटनाक्रम और समस्या को एक-एक करके समझते हैं ।
तोशा कंपनी की कहानी
हिंदी में तोशा का अर्थ होता है संतुष्टि या तृप्ति, पर लगता है नाम के अनुरूप कम्पनी की पालिसी में ऐसा नहीं है । 80 या 90 के दशक में पिक्चर ट्यूब बनाने वाली एक कंपनी तोशा इंटरनेशनल लिमिटेड ( TOSHA INTERNATIONAL LTD previously TOSHA PICTURE TUBES LIMITED ) को उत्तर प्रदेश सरकार ने उद्योग लगाने के लिए भूमि दी थी । बरसों तक की भूमि कंपनी के पास ऐसे ही खाली पड़ी रही इस पर कोई प्लांट या यूनिट स्थापित नहीं की गई, आज भी इस पर कोई व्यवसायिक गतिविधि नहीं है । 2008 के आसपास ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण ने जब ग्रेटर नोएडा वेस्ट को बसाने के लिए यहां अधिग्रहण शुरू किया और इस 130 मी सड़क को बनाना शुरू किया तब शाहबेरी और पतवारी के किसानो साथ-साथ तोशा इंटरनेशनल कंपनी भी कोर्ट चली गई । जहां एक और किसान अपनी जमीन के अधिग्रहण के खिलाफ कोर्ट में केस लड़ रहे थे वही तोशा कंपनी किसानों के आड़ में अपनी 25 एकड़ जमीन के अधिग्रहण के बदले बेहतर अवसर की तलाश के लिए कोर्ट चली गई । कोर्ट में जहां हाई कोर्ट के फैसलों में कंपनी और प्राधिकरण को इस जमीन के लिए सेटलमेंट का ऑप्शन दिया गया जिसमें कहा गया कि प्राधिकरण या तो कंपनी से उतने हिस्से की जमीन ले ले या फिर उसे जगह को कंपनी को वापस कर दे।

तब से आज तक उसे जजमेंट की आड़ में कंपनी प्राधिकरण से सौदेबाजी कर रही है और हजारों लोगों की जिंदगियों से रोज खेल रहे हैं। कंपनी के अधिकारी के अनुसार उन्होंने प्राधिकरण को अपने कंसर्न भेजे हुए हैं हालांकि वह अपने भेजे हुए कंसर्न एनसीआर खबर के साथ शेयर करने को तैयार नहीं थे। उनकी बातो में जनहित का कोई सरोकार नहीं था बल्कि ऐसा लगा जैसे वो जनता के दर्द के नाम पर प्राधिकरण या सरकार से अपनी मनमाफिक डील होने की प्रतीक्षा कर रहे है। एनसीआर खबर को उनके सोशल मीडिया प्रोफाइल पर उनके साथ संघ और भाजपा के कई नेताओं के फोटोग्राफ्स भी दिखे जिससे यह माना जा रहा है कि कहीं ना कहीं कंपनी इस गुमान में है कि वह सत्ता के साथ संबंधों का फायदा उठाकर लोगों की भावनाओं और पैसे का शोषण कर लेगी।
उनके वकील के साथ बात हुई बातचीत में एनसीआर खबर को कोर्ट से में से दिए गए उस जजमेंट की कॉपी जरूर मिली जिससे कई चीजे सामने निकल कर आई जिसकी चर्चा हम आगे करेंगे।

ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण की कहानी
2007-8 में जब ग्रेटर नोएडा वेस्ट के औद्योगिक लैंड युज को ग्रुप हाउसिंग के लिए बदल दिया गया । तो यहां विकास की नई संभावनाओं में जन्म लिया । कहा जाता है कि 130 मीटर सड़क के तोशा कंपनी के जमीन पर से निकलने के बाद ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के ही कुछ भ्रष्ट अधिकारियों ने कंपनी को यह सुझाव दिया कि वह कोर्ट जाए ताकि कंपलसरी एक्विजिशन से बचकर प्राधिकरण के बड़े अधिकारियों पर दबाव बनाकर कुछ बड़ा खेल किया जा सके और कंपनी कोर्ट चली गई अदालत ने प्राधिकरण के अधिकारियों को कंपनी के साथ सेटलमेंट करने का निर्देश दिया किंतु अधिकारियों ने तोशा कंपनी की गैर जरूरी मांगों को मारने से इनकार कर दिया। फल स्वरुप 14 वर्षों से लगातार ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण और तोशा कंपनी पलक झपकाने का खेल खेल रहे हैं । तोशा कंपनी को लगता रहा कि एक दिन प्राधिकरण लोगों के दबाव में आकर उसकी सारी नाजायज मांगे मान लेगा वही प्राधिकरण को लगता रहा कि एक दिन कंपनी इस हाल में होगी कि उसके पास प्राधिकरण की बात मानने के अलावा कोई चारा नहीं होगा ।
इस पूरे गतिरोध को ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के सीईओ रवि एनजी ने 1 वर्ष पूर्व समाप्त करने के लिए पहल की और प्राधिकरण की अधिकारी लीनू सहगल ने तोशा कंपनी को बातचीत करने के लिए बुलाया। बताया जा रहा है कि 6 महीने लंबी बातचीत के बाद एक बार फिर से प्राधिकरण उसी जगह पर आ गया है । सूत्रों की माने तो तोशा कंपनी अपनी पूरी 25 एकड़ जमीन के बदले मुआवजा चाहती है जबकि प्राधिकरण 130 मी रास्ते को बनाए जाने वाले जमीन के लिए मुआवजा देने को तैयार है । यही से तोशा कंपनी के लालच का खेल आरम्भ होता है ।

जानकारों की माने तो तोशा कंपनी को ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के स्थापना से पहले उत्तर प्रदेश सरकार ने उद्योग लगाने के लिए जमीन दी थी और इसी के चलते उत्तर प्रदेश ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण कंपनी से जनहित में जमीन का जबरन अधिकरण नहीं कर पा रहा है । कंपनी के 25 एकड़ जमीन का एक दूसरा पहलू यह भी है इस कंपनी के 25 एकड़ जमीन के मात्र 8 एकड़ जमीन कंपनी को ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के बनने से पहले उत्तर प्रदेश सरकार ने दी थी जबकि बाकी 17 एकड़ जमीन कंपनी को ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण बनने के बाद दी गई जिसके कारण प्राधिकरण अधिकरण के समय सड़क निर्माण के बीच में आ रही जमीन को ही लेना चाहता है । कुछ जानकारों का कहना है कि कंपनी पूरी 25 एकड़ जमीन के बदले ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण से अच्छे सेक्टर में इंडस्ट्रियल प्लॉट चाहती है जबकि प्राधिकरण सड़क के लिए आवश्यक ज़मीन को अधिग्रहण कर वर्तमान दरो पर मुआवजा देकर बात करना चाहते हैं ।
कंपनी के विरुद्ध एक पक्ष ये है कि इस रास्ते को बने हुए 10 वर्ष से ज्यादा हो चुके हैं। गाँव देहात में भी अगर कोई रास्ता किसी के खेत से इतने वर्षो तक जाता है तो उसे रास्ता मान लिया जाता है । दूसरी तरफ कंपनी बीते 20 वर्षों से पूरी जमीन पर कोई भी एक्टिविटी नहीं कर रही है। ऐसे में उत्तर प्रदेश सरकार अगर कैबिनेट से इसके लिए जनहित में कोई फैसला ले तो भी समस्या हल हो सकती हैं।
हाईकोर्ट के फैसले की कहानी, तोशा कंपनी के वकील का पक्ष
फिल्म जॉली एलएलबी में जज बने सौरभ शुक्ला अंत में निर्णय देते समय कहते हैं कि अक्सर अदालत में कैसे आते ही उन्हें पता लग जाता है कि दोषी कौन है वह कहते हैं कि कानून अंधा होता है मगर जज अंधा नहीं होता, उसका विवेक उन सबूत को ढूंढता रहता है जिसके बलबूते वो न्याय दे सके ।
जाली एलएलबीकी तरह इस पूरे प्रकरण में हाई कोर्ट के फैसले की कहानी भी नाटकीय है। 90 के दशक में पिक्चर ट्यूब बनाने वाली कंपनी तोशा इंटरनेशनल 2011 में किसानों के अधिग्रहण के विरुद्ध याचिकाओं के साथ अपनी याचिका हाई कोर्ट में लगती है ध्यान देने वाला तथ्य यह है कि जहां एक और किसान अपनी पुश्तैनी जमीन को बचाने के लिए हाईकोर्ट में याचिका लगा रहे थे वहीं तोशा कंपनी भी पुश्तैनी जमीन की आड़ में अपनी कंपनी की जमीन को बचाने के लिए हाईकोर्ट में याचिका लगा रही थी जिसमें बरसो तक उसने कोई उद्योग लगाया ही नहीं । सच ये भी है दिल्ली के पास बने औद्योगिक शहरों नोएडा ग्रेटर नोएडा और यमुना प्राधिकरण में कंपनियों का मूल उद्देश्य उद्योग लगाने से ज्यादा जमीनों पर कब्जा करना जायदा रहा है, संभवत: तोशा भी यही करती प्रतीत हो रही है ।
2014 में आए इसके सेटलमेंट के फैसले में अदालत ने ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण को कंपनी की जमीन लेने या उसको वापस करने के निर्देश दिए । अदालत के निर्णय की आलोचना अगर ना भी की जाए तब भी बड़ा प्रश्न यह है कि आखिर अदालत ने 130 मी हाईवे के लिए जनहित को सर्वोपरि ना रखते हुए किसी एक कंपनी के हित को सर्वोपरि कैसे रख दिया ।
वही इस पूरे प्रकरण पर तोशा कंपनी के वकील ने एनसीआर खबर को जो बताया वह तर्क की हास्यास्पद ज्यादा था । वकील साहब ने एनसीआर खबर से कहा कि अगर कोई आपके घर पर सड़क निकाल दे तो आप क्या करेंगे ? किंतु वह बताना भूल गए कि देश हित में किसी महत्वपूर्ण सड़क के लिए बीच में अगर कोई घर भी आ जाए तो उसको भी हटाया ही जाता है। एक गरीब व्यक्ति और किसान के लिए सरकारे एकदम निरंकुश तक हो जाती हैं। बस फर्क तब आ जाता है जब सामने कोई बहुत प्रभावशाली या बड़ी कंपनी खड़ी हो।
उससे भी बड़ी बात वकील साहब यह नहीं बता पाए कि यह तोशा कंपनी की कोई पुश्तैनी जमीन नहीं थी जिसके ऊपर सड़क आ गई है इस जमीन को तोशा कंपनी ने उत्तर प्रदेश सरकार से उद्योग लगाने के लिए लिया था जिस पर हमारी जानकारी में बीते 20-25 वर्षों में ऐसा कोई सबूत नहीं कि वहां कंपनी चलाई गई हो या कंपनी का बीते 20 वर्षों में ऐसा कोई प्लान भी नहीं है जिस पर वह कोई कंपनी चलाने जा रहे हो । मुद्दा बस जमीन को अपने साथ रखने का है।
एनसीआर खबर को इस मामले में फैसले देने वाले जजों के नाम में एक नाम बीते दिनों चर्चा में आए यशवंत वर्मा का भी दिखा । जो दिल्ली में बीते दिनों लाखों रुपए के कैश कांड के बाद पुनः इलाहाबाद हाईकोर्ट भेज दिए गए । दूसरा नाम प्रमोद कुमार श्रीवास्तव का सामने आया जो संभवतः वर्तमान में एनजीटी कोर्ट के जज है ।
ऐसे में बड़ा प्रश्न यह है कि क्या एनजीटी के जज होने के बाद जज साहब ने कभी इस रास्ते पर निर्माण न होने के कारण उड़ती धूल के कारण हो रहे पर्यावरण प्रदूषण से पर्यावरण को पहुंचने वाली हानि पर कोई फैसला देने की कोशिश क्यों नहीं करी । क्या एनजीटी स्वत संज्ञान लेते हुए किसी भी तरीके से इस सड़क को बनाए जाने का आदेश नहीं दे सकती है । इसके सही गलत का निर्णय जज साहब और पाठकों पर छोड़ते है ।
क्षेत्र के नेताओं की भूमिका
कहते हैं कहीं किसी कार्य से प्रतिदिन 50000 लोगों को निवासियों को कष्ट हो रहा हो तो वहां के सत्ता या विपक्ष दोनों के नेता उसे मुद्दे पर अपनी राजनीति करने के लिए उतर जाते हैं । लेकिन ग्रेटर नोएडा वेस्ट और ग्रेटर नोएडा के बीच की लाइफ लाइन के लिए दादरी विधायक तेजपाल नागर, गौतम बुध नगर सांसद डॉक्टर महेश शर्मा, राज्यसभा सांसद सुरेंद्र सिंह नागर, विपक्ष के नेता और समाजवादी प्रवक्ता राजकुमार भाटी समेत तमाम नेताओं ने अपनी आंखें बंद कर ली या फिर उनको यह लगा कि संभवत जनहित यह मुद्दा इस लायक ही नहीं है कि इसके लिए कोई आंदोलन किया जाए । विपक्ष के लिए एक बहुत बड़ा मुद्दा हो सकता था किंतु सत्ता के साथ-साथ विपक्ष ने भी इसमें अपने हाथ खड़े कर दिए । हैरानी की बात यह है कि यह सभी नेता प्रतिदिन सड़क से ही होकर गुजरते हैं । हो सकता है बड़ी-बड़ी गाड़ियों में इन्हें जनता के दुख का एहसास ना होता हो या फिर तोशा कंपनी के कथित तोर पर सत्ता पक्ष के बड़े नेताओं तक पहुंच के कारण यह कुछ कह न पाते हो ।
ओर अंत में …
ऐसे में अंत में प्राधिकरण, अदालतों और नेताओं की मजबूरी भले ही कोई भी हो किंतु तोशा कंपनी के मालिकों की मजबूरी समझ से परे है यह इसलिए भी समझ से परे है कि जिस दौर में उद्योगपतियों में अपने आप को महान और दानवीर साबित करने की होड़ चलती हो वहां तोशा कंपनी महज 5 से 7 एकड़ जमीन के लिए प्रतिदिन 50000 व्यक्तियों की जिंदगी से खेलने के लिए बैठी है । कोविड के समय टाटा ने नोएडा में 500 बेड का अस्पताल स्वयं बना कर दिया जिसमें अब जिला अस्पताल चलाया जाता है जिले में डीएस ग्रुप वृद्धो के लिए कई आश्रम चल रहा है ऐतिहासिक तौर पर पहले बड़े-बड़े सेठ धर्मशालाएं, सड़के, लोगों के प्यास बुझाने के लिए तालाब खुदवाते थे किंतु ऐसा लगता है कि तोशा कंपनी इस सब से सहमत नहीं है ।