पूरे देश में आयोजित “पौधा मां के नाम” कार्यक्रम ने लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। इस पहल का उद्देश्य न केवल पर्यावरण की रक्षा करना है, बल्कि इसके माध्यम से सामाजिक पहचान और व्यक्तिगत अस्तित्व के मुद्दों पर भी बातचीत को बढ़ावा देना है। लेकिन इस आयोजन में भाग लेने वाले लोगों के व्यवहार पर सवाल उठ रहे हैं।

कार्यक्रम के अंतर्गत, विभिन्न स्थानों पर कई लोगों द्वारा एक पौधा लगाने की तस्वीरें खींचकर सोशल मीडिया पर साझा किया। हालांकि, इन तस्वीरों की भारी दिखाई दे रही संख्या ने कहीं न कहीं यह सवाल उठाया है कि क्या यह केवल एक दिखावा है या वास्तव में समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास।
देश के साथ साथ गौतम बुद्ध नगर जिले में भी इस संपूर्ण गतिविधि के दौरान कार्य से जयादा दिखावे के विचार से मैंने मन में गुनगुनाया: “यहाँ मैं अजनबी हूँ, मैं जो हूँ बस वही हूँ।” यह वाक्य सामाजिक पहचान के मुद्दे पर गंभीर चर्चा को जन्म देता है। क्या हम वास्तव में अपने कार्यों के प्रति सचेत हैं या सिर्फ सामाजिक मीडिया पर दिखावे के लिए इसे कर रहे हैं?
विशेषज्ञ मानते हैं कि एक गंभीर उद्देश्य में इस प्रकार के प्रचार लोगों को सोचने पर मजबूर करते हैं। सोशल मीडिया पर प्रचार का मोह अब अपने चरम पर पहुंच रहा है और इसके चलते ऐसे कार्य भी प्रभावित हो रहे है । इससे बड़ा प्रश्न यह भी है कि ऐसे दिखावे के चलते सरकार के साथ-साथ समाजसेवियों और आम जनता द्वारा लगाए गए पौधों की संख्या के लक्ष्य पर भी संदेह उत्पन्न होता है ।
डॉ. अंजलि मेहरा, एक समाजशास्त्री, कहती हैं, “जब हम अपने अस्तित्व और सामाजिक पहचान के बारे में विचार करते हैं, तो यह हमें अपने कार्यों का मूल्यांकन करने की प्रेरणा देता है। हमें सोचना होगा कि क्या हम वाकई में बदलाव लाना चाहते हैं या सिर्फ तस्वीरें खींचकर दिखावा कर रहे हैं।”

इस अभियान में भाग लेने वालों की संख्या ने यह साबित कर दिया है कि लोगों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ रही है। लेकिन साथ ही, यह भी समझना आवश्यक है कि केवल सोशल मीडिया पर छवि बनाने से वास्तविक परिवर्तन नहीं आएगा।
इस पूरे मामले को देखकर यह स्पष्ट होता है कि “पौधा मां के नाम” जैसे अभियानों में भागीदारी केवल संख्या में नहीं गिनी जानी चाहिए, बल्कि इसके पीछे की सोच और उद्देश्य भी महत्वपूर्ण हैं। हमें अपनी पहचान को बेहतर बनाने और समाज में बदलाव लाने के लिए गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।
आखिरकार, यह एक ऐसा मुद्दा है जहां हमें यह समझने की जरूरत है कि हम वास्तव में क्या हैं और समाज में हमारे कार्यों का क्या प्रभाव पड़ता है।