मुद्दा : पत्रकारिता को लोग बाहर से जितना ग्लैमरस मानते हैं, परिस्थितियां उतनी ही विषम होती हैं

NCRKhabar Mobile Desk
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मनीष श्रीवास्तव। एक आम पत्रकार भी जान हथेली पर रखकर अपना काम करता है। पत्रकारिता को लोग बाहर से जितना ग्लैमरस मानते हैं। अंदर से परिस्थितियां उतनी ही विषम होती हैं। बीते वर्षों में न जाने कितने पत्रकारों ने देशभर में अपनी जान गंवा दी। कोरोना जैसी विकट महामारी में आम जनता तक खबरें पहुंचाते-पहुंचाते दम तोड़ दिया। जाकर उनके परिवारों का हाल देखिए।

पत्रकार को दलाल कहना बहुत आसान है। लेकिन किस पेशे में ऐसे कथित लोग नहीं हैं। क्या इसकी आड़ में उन समर्पित पत्रकारों का समाज के प्रति योगदान भुला दिया जाएगा, जिन्होंने देश की आजादी से लेकर आज तक आम जन के लिए अलख जगाए रखी है। कितनों ने इस कर्मभूमि में अपने प्राण त्याग दिए। न जाने कितनों को उनका असल हक दिलाने वाले एक आम पत्रकार को आज तक उसके हक से वंचित रखा गया। एक सैनिक देश की सीमाओं पर दुश्मनों से लड़ता है तो एक पत्रकार भी हाथ में कलम लिए देश के अंदर सिस्टम से लेकर अपराधियों और माफियाओं से लोहा लेता है। बदले में सराहना कम पत्रकारों को अक्सर मुकदमें और जान गंवाने जैसा तोहफा जरूर मिलता है।

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पत्रकारों के लिए सरकारों ने अलग से कोई सुरक्षा कानून बनाने की कोई जहमत कभी नहीं उठाई। @UNESCO की दो साल पहले की रिपोर्ट कहती है कि मारे गए पत्रकारों के 85 फीसदी मामलों में सजा नहीं मिल पाती है। हर चौथे दिन एक पत्रकार मारा जाता है। खैर पत्रकार कभी खनन माफियाओं से लड़ते लड़ते शहीद हो जाता है तो कभी अपराधियों की गोली का शिकार बनता है। शाहजहांपुर के पत्रकार जगेंद्र को जलाकर मार दिया गया था। आरोप पूर्व मंत्री पर लगा। कोई कार्रवाई नहीं। 2019 में लोकसभा में पेश नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो(NCRB) की रिपोर्ट कहती है, 2013 के बाद से पत्रकारों पर देश में सबसे ज्यादा हमले उत्तरप्रदेश में हुए हैं।

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Nitish kumar

देश भर में पत्रकारों के आर्थिक हालात और विषम परिस्थितियों के बीच काम करने की खाई लगातार चौड़ी होती जा रही है। इसलिए सरकारों से मेरा करबद्ध निवेदन है कि पत्रकारों के लिए सुरक्षा कानून और पेंशन जैसी मूलभूत जरूरतों पर तत्काल विचार करके अमलीजामा पहनाया जाए। खासतौर से उत्तरप्रदेश चूंकि देश का सबसे बड़ा राज्य है। इसलिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी अविलंब इस दिशा में विशेष नजीर स्थापित करें। बिहार सरकार के मुखिया नितीश कुमार का पत्रकारों की पेंशन बढ़ाने का फैसला अत्यंत सराहनीय है। हालांकि टाइमिंग जरूर गलत चुनी है। लेकिन एक आम पत्रकार के लिए उन्होंने जो कदम उठाया है, उसकी भूरी भूरी प्रशंसा जरूर होनी चाहिए। जब बिहार समेत कई राज्य इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं तो उत्तर प्रदेश को भी विशाल ह्रदय दिखाते हुए पत्रकारों की बेहद पुरानी बहुप्रतीक्षित मांग को अतिशीघ्र पूरा करना चाहिए।

मनीष श्रीवास्तव लखनऊ में वरिष्ठ पत्रकार है, सन्देशवाहक समाचार पत्र में ब्यूरो चीफ है  लेख उनके सोशल मीडिया से लिया गया है

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