‘घर में आवारा कुत्तों की समस्या के साथ वैश्विक शक्ति नहीं बन सकते’: कार्ति चिदंबरम

NCR Khabar Internet Desk
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शिवगंगा, तमिलनाडु । शिवगंगा के सांसद कार्ति चिदंबरम ने स्थानीय और शहरी भारत में आवारा कुत्तों की बढ़ती संख्या को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की है, और इसे एक गंभीर समस्या करार दिया है। एक न्यूज़ चैनल एनडीटीवी से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा, “यह कोई हंसी-मज़ाक की बात नहीं है। यह एक वास्तविक मुद्दा है जो हर दिन भारत के हर कोने में घटित हो रहा है।”

उनकी यह टिप्पणी उत्तर प्रदेश के नोएडा में एक निवासी को सुप्रीम कोर्ट द्वारा आवारा कुत्तों को खाना खिलाने के आरोप में फटकार लगाए जाने के अगले दिन आई है। इस मामले ने आवारा कुत्तों की समस्या को और अधिक उजागर कर दिया है, जिससे देश भर में वयस्कों और बच्चों पर होने वाले हमलों की चिंताएँ बढ़ गई हैं।

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चिदंबरम ने बताया कि आवारा कुत्तों द्वारा काटे जाने वाले लोगों की संख्या हर दिन बढ़ रही है। उन्होंने कहा, “भारत में रेबीज़ से होने वाली मौतों की संख्या सबसे ज़्यादा है।” उनका यह भी मानना है कि स्थानीय निकायों के पास इस समस्या से निपटने के लिए न तो पर्याप्त धन है और न ही विशेषज्ञता। उनके अनुसार, एक राष्ट्रीय नीति बनानी चाहिए जो कुत्तों के लिए आश्रय स्थल बनाने और नसबंदी की प्रक्रिया को व्यवस्थित करने पर केंद्रित हो।

सांसद ने अत्यधिक चिंता व्यक्त करते हुए कहा, “हम दुनिया की शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं में से एक बनने की आकांक्षा नहीं कर सकते अगर हमारे यहाँ आवारा कुत्तों की समस्या बढ़ती रही।” उन्होंने इस विषय को उठाने के लिए निचले तबके के नागरिकों की आवाज़ बनना आवश्यक समझा, यह कहते हुए कि यह मुद्दा केवल उस वर्ग को प्रभावित करता है जो सीधे सड़कों पर आते-जाते हैं।

चिदंबरम ने यह भी बताया कि कई लोग इस समस्या पर ध्यान नहीं देते क्योंकि यह केवल पैदल चलने वालों को प्रभावित करती है। “वह लोग जो कार में हैं या गेटेड समुदायों में रहते हैं, उन्हें इस समस्या का सामना नहीं करना पड़ता। हमें एक नैतिक और मानवीय नीति की ज़रूरत है। इससे न सिर्फ आवारा कुत्तों की स्थिति में सुधार होगा, बल्कि इससे रेबीज़ के मामलों को भी कम किया जा सकेगा।”

सांसद ने अंत में कहा, “मैं ऐसे मुद्दे उठाना पसंद करता हूँ जो वोट बैंक का हिस्सा नहीं हैं, लेकिन जो आम लोगों को प्रभावित करते हैं।” उनकी यह टिप्पणी आने वाले समय में स्थानीय निकायों और नागरिकों के लिए एक जागरूकता का आह्वान हो सकती है, जिससे आवारा कुत्तों की समस्या को गंभीरता से लिया जा सके और उसके समाधान के लिए एक ठोस नीति बनाई जा सके।

आवारा कुत्तों की समस्या एक जटिल सामाजिक मुद्दा है, और इसके प्रति जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है, ताकि इसे एक स्थायी समाधान के तहत लाया जा सके। चिदंबरम के विचार निश्चित रूप से इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकते हैं।

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