शारदा यूनिवर्सिटी में विरोध कर रहे परिजनों व आक्रोशित छात्रों पर आईएसओ प्रमाणित कमिश्नरेट पुलिस का लाठीचार्ज, पुलिस को दमन की जगह हिंसा करने का अधिकार कब तक!

आशु भटनागर
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आशु भटनागर। शारदा विश्वविद्यालय में शनिवार को तनाव बढ़ गया, जब एक छात्रा की आत्महत्या और लंबे समय से चली आ रही शिकायतों से आक्रोशित छात्रों पर आईएसओ-प्रमाणित कमिश्नरेट पुलिस ने लाठीचार्ज किया। इस घटना ने पुलिस की कार्यशैली पर बहस छेड़ दी है और विश्वविद्यालय प्रशासन के भीतर व्यवस्थित उत्पीड़न के आरोपों को उजागर किया है। यह अशांति शारदा विश्वविद्यालय की 21 वर्षीय छात्रा ज्योति शर्मा की दुखद मौत के बाद शुरू हुई, जो शुक्रवार शाम मृत पाई गई थी। उसका शव विश्वविद्यालय के गर्ल्स हॉस्टल की 12वीं मंजिल पर पंखे से लटका हुआ मिला। रिपोर्टों के अनुसार, जब यह भयावह घटना हुई, तब शर्मा अपने कमरे में अकेली थीं, और उनकी सहेलियाँ बाहर गई हुई थीं।

छात्रों ने उत्पीड़न और अत्यधिक जुर्माने का आरोप लगाया

शर्मा की मौत के बाद, गुस्साए परिजन और छात्र विरोध प्रदर्शन करने के लिए एकत्र हुए, जिम्मेदार लोगों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई की मांग की और विश्वविद्यालय प्रबंधन के खिलाफ शिकायतों की झड़ी लगा दी। छात्रों ने आरोप लगाया कि उन्हें “विभिन्न प्रकार के उत्पीड़न” का सामना करना पड़ा और प्रशासन ने “अपनी जेब भरने के लिए जुर्माने” का इस्तेमाल किया, जिनकी राशि 2,000 रुपये से लेकर 25,000 रुपये तक थी। उन्होंने आगे दावा किया कि जिस भी छात्र ने शिकायत करने या मुद्दे उठाने की हिम्मत की, उसे अधिकारियों ने “सीधे निशाना” बनाया।

आईएसओ प्रमाणित कमिश्नरेट की लाठी वाली पुलिस कार्रवाई की आलोचना

दावा है कि कल मृत्यु के बाद शनिवार को जैसे-जैसे छात्र विरोध पर उतरे होते गए, तीखी बहस और टकराव की स्थिति पैदा हुई, छात्रों ने पुलिस पर हिंसा का सहारा लेने का आरोप लगाया। प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया कि पुलिसकर्मियों ने उन्हें “पीटा” और लाठीचार्ज किया। सोशल मीडिया पर जारी कई विडियो में इन वृत्तांतों में अफरा-तफरी का माहौल देखा जा सकता है

इस घटना ने उत्तेजित भीड़ के प्रति भारतीय पुलिस की विशिष्ट प्रतिक्रिया की आलोचना को फिर से हवा दे दी है, जहाँ अक्सर तनाव कम करने की रणनीति के बजाय बल का सहारा लिया जाता है, जो दुनिया भर में देखी जाने वाली प्रथाओं के विपरीत है जहाँ पुलिस का उद्देश्य भीड़ को शांत और बेअसर करना होता है।

बीते वर्ष जब नोएडा पुलिस कमिश्नर ने गौतम बुद्ध नगर कमिश्नरेट के आईएसओ प्रमाणित की जानकारी दी थी तब लगा था कि यूरोप की तरह यहाँ भी पुलिस प्रशसन की आन्तरिक कार्यवाही के साथ साथ जनता के वयवहार कोलेकर परिवर्तन देखने को मिलेंगे, ख़ास तोर पर जहाँ आक्रोशित या उत्तेजित भीड़ वहां नोएडा पुलिस भी यूरोपियन पुलिस की तरह प्रोफेशनल तरीके से कार्य करने लगेगी I

किन्तु दुखद तथ्य ये है कि आज भी गौतम बुद्ध नगर पुलिस की प्रोफेशनल शैली की तो दूर की बात हैI हालात ये है कि कमिश्नरेट थानों में हाथापाई, मोबाइल या चेन स्नैचिंग की पुलिस एफआईआर का ना लिखना आम बात है I बीते दिनों पुलिस ने 100 से अधिक मोबाइल बरामद करने के बाद ये कहा कि सभी बाजारों में गिर गए थे या लोग शादी समारोह में रख कर भूल गए थे I ऐसे ही कई अन्य प्रकरण मे पुलिस तब जागी जब मामला सोशल मीडिया में आ गया I और गौड़ सिटी में नोएंट्री जोन में अनियंत्रित गति से आ रहे डंफर द्वारा महिला को रौंद देने की घटना पर पुलिस कमिश्नरेट पुलिस ने आज तक कोई एक्शन ही नहीं लिया है I अधिकांश जगह पुलिस के वयवहार को लेकर शिकायतों पर तो चर्चा ही बेमानी है I यधपि पुलिस पर स्थानीय राजनेताओ और उच्च अधिकारियो के दबाब भी इसके कारणों में एक है I किन्तु अधिकांश मामलो में पुलिस में नौकरी अधिकृत मनमानी का अधिकार बन कर रह गयी है I

प्रसिद्द वेबसाइट कोरा (Quora) पर संतोष शर्मा लिखते है कि यूरोपियन पुलिस और भारतीय पुलिस के बीच कई बुनियादी अंतर हैं, जिनमें प्रशिक्षण, कार्य संस्कृति, और संसाधन शामिल हैं। यूरोपीयन व्यवस्था “customer attractive प्रणाली” पर आधारित है जहां पुलिस व्यवस्था समान्य नागरिक को एक सुरक्षा की सेवा प्रदान करती है – पुलिस हर उस नागरिक को जो पुलिस के पास किसी सहायता के लिए जाता है उसे सुरक्षा और न्याय दिलाने के लिए तत्पर रहती है! यूरोपियन पुलिस बल आमतौर पर बेहतर प्रशिक्षित, बेहतर सुसज्जित और अधिक संसाधनों से लैस होते हैं। 

इसके विपरीत, भारतीय व्यवस्था “customer repulsive प्रणाली” पर आधारित है जहां पुलिस अपने पास आए नागरिक को पहले उसे ही अपराधी होने की नजर से देखते हुए अपने से दूर ढकेलती है! अपवाद को छोड़कर कई मामलों में पुलिस नागरिक को तभी entertain करती है जब उसपर कोई दबाब- किसी influenced व्यक्ती/ संस्था/ पैसे इत्यादि का हो!  भारतीय पुलिस बल अक्सर अधिक संख्या में होते हैं, लेकिन उन्हें अक्सर अपर्याप्त प्रशिक्षण, सीमित संसाधनों और भ्रष्टाचार जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। 

और यही आकर जब नोएडा पुलिस ने आईएसओ प्रमाण पत्र लेने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया तो लगा था कि उत्तर प्रदेश में गौतम बुद्ध नगर ऐसा प्रथम जिला हो सकता है जहाँ पुलिस अब प्रोफेशनल तरीके से कार्य करेगी I नोएडा पुलिस की कार्यप्रणाली पर कितना कार्य हुआ कितना अभी बाकी है इसकी समीक्षा उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और प्रदेश के उच्च अधिकारी ही करेंगे किन्तु पुलिस के लिए प्रति जनता का मन जीतना अभी दूर की कौड़ी है।

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आशु भटनागर बीते 15 वर्षो से राजनतिक विश्लेषक के तोर पर सक्रिय हैं साथ ही दिल्ली एनसीआर की स्थानीय राजनीति को कवर करते रहे है I वर्तमान मे एनसीआर खबर के संपादक है I उनको आप एनसीआर खबर के prime time पर भी चर्चा मे सुन सकते है I Twitter : https://twitter.com/ashubhatnaagar हम आपके भरोसे ही स्वतंत्र ओर निर्भीक ओर दबाबमुक्त पत्रकारिता करते है I इसको जारी रखने के लिए हमे आपका सहयोग ज़रूरी है I एनसीआर खबर पर समाचार और विज्ञापन के लिए हमे संपर्क करे । हमारे लेख/समाचार ऐसे ही सीधे आपके व्हाट्सएप पर प्राप्त करने के लिए वार्षिक मूल्य(रु999) हमे 9654531723 पर PayTM/ GogglePay /PhonePe या फिर UPI : ashu.319@oksbi के जरिये देकर उसकी डिटेल हमे व्हाट्सएप अवश्य करे