आम आदमी के बजट और देश की कर प्रणाली को प्रभावित करने वाले एक बड़े कदम के तहत केंद्र सरकार वस्तु एवं सेवा कर (GST) की दरों में महत्वपूर्ण बदलाव करने पर विचार कर रही है। विश्वस्त सूत्रों के अनुसार, इस बदलाव का मुख्य केंद्र 12 प्रतिशत के टैक्स स्लैब को पूरी तरह से खत्म करना हो सकता है, जिससे स्थानीय बाजारों में कई उत्पादों की कीमतों में बड़ा उतार-चढ़ाव देखने को मिल सकता है।
इस महीने होने वाली जीएसटी परिषद की बैठक में इस प्रस्ताव पर गंभीरता से चर्चा होने की उम्मीद है। यदि यह प्रस्ताव पारित हो जाता है, तो यह 2017 में जीएसटी लागू होने के बाद से सबसे बड़े संरचनात्मक सुधारों में से एक होगा।
क्या हैं प्रस्तावित बदलाव?
सूत्रों का कहना है कि सरकार जीएसटी की जटिल बहु-स्तरीय प्रणाली को सरल बनाने का लक्ष्य रख रही है। वर्तमान में, जीएसटी के तहत 5%, 12%, 18% और 28% के चार मुख्य टैक्स स्लैब हैं। प्रस्तावित योजना के तहत 12% के स्लैब को समाप्त किया जा सकता है।
इस योजना के दो मुख्य पहलू हैं:
- जरूरी वस्तुएं होंगी सस्ती: 12% स्लैब में आने वाली कुछ आवश्यक और आम उपयोग की वस्तुओं को 5% के स्लैब में स्थानांतरित किया जा सकता है। इससे इन उत्पादों की कीमतों में कमी आएगी, जिससे आम नागरिकों को सीधी राहत मिलेगी।
- अन्य वस्तुएं हो सकती हैं महंगी: राजस्व तटस्थता बनाए रखने के लिए, 12% स्लैब की बाकी वस्तुओं को 18% के स्लैब में शामिल किया जा सकता है। इससे इन वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होगी।
आम नागरिक और स्थानीय व्यापारियों पर क्या होगा असर?
यह बदलाव सीधे तौर पर हर घर के मासिक बजट को प्रभावित करेगा। वर्तमान में 12% स्लैब में प्रोसेस्ड फूड (जैसे मक्खन, घी, पनीर), मोबाइल फोन के कुछ पार्ट्स, जूते-चप्पल (1000 रुपये से कम कीमत वाले), और कुछ परिधान जैसी वस्तुएं शामिल हैं।
यदि इनमें से कुछ जरूरी वस्तुओं को 5% स्लैब में लाया जाता है, तो वे निश्चित रूप से सस्ती हो जाएंगी। हालांकि, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि कौन सी वस्तुएं 18% के स्लैब में जाती हैं, क्योंकि इससे उन उत्पादों के लिए ग्राहकों को अधिक कीमत चुकानी पड़ सकती है।
स्थानीय व्यापारियों और छोटे दुकानदारों के लिए भी यह बदलाव महत्वपूर्ण होगा। एक तरफ जहां टैक्स प्रणाली सरल हो सकती है, वहीं दूसरी ओर उन्हें अपनी बिलिंग प्रणाली, सॉफ्टवेयर और स्टॉक की कीमतों को फिर से समायोजित करना होगा।
क्यों किया जा रहा है यह विचार?
इस बदलाव के पीछे सरकार के कई उद्देश्य हो सकते हैं। पहला, टैक्स प्रणाली को सरल बनाना ताकि कर अनुपालन आसान हो सके। दूसरा, कुछ वस्तुओं पर टैक्स कम करके खपत को बढ़ावा देना और महंगाई से राहत दिलाना। तीसरा, कर संरचना को तर्कसंगत बनाकर राजस्व संग्रह को स्थिर और प्रभावी बनाना।
विशेषज्ञों का मानना है कि 12% और 18% के स्लैब काफी करीब हैं, जिससे अक्सर वस्तुओं के वर्गीकरण को लेकर विवाद उत्पन्न होते हैं। इन दो स्लैब को मिलाकर एक स्लैब बनाने से ऐसे विवादों में कमी आ सकती है।
आगे क्या?
फिलहाल यह केवल एक प्रस्ताव है जिस पर जीएसटी परिषद में विचार किया जाएगा। जीएसटी परिषद, जिसमें केंद्र और सभी राज्यों के वित्त मंत्री शामिल होते हैं, इस पर अंतिम निर्णय लेगी। परिषद की आगामी बैठक में इस प्रस्ताव के सभी पहलुओं, इसके राजस्व प्रभाव और आम लोगों पर पड़ने वाले असर का गहन मूल्यांकन किया जाएगा। सभी की निगाहें अब इस बैठक पर टिकी हैं, क्योंकि इसका फैसला देश के हर नागरिक और कारोबारी को सीधे तौर पर प्रभावित करेगा।