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नोएडा प्राधिकरण से आया बड़ा समाचार : सुप्रीम कोर्ट ने पलटा फैसला, रेड्डी रवन्ना को 350 करोड़ का मुआवजा रद्द

नोएडा प्राधिकरण के लिए एक महत्वपूर्ण कानूनी मोड़ सामने आया है जब सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा जारी किए गए 350 करोड़ रुपये के मुआवजे के आदेश को पलट दिया है। यह मामला चार साल पूर्व शुरू हुआ था जब छलेरा गांव की 15 बीघा भूमि के मालिक के रूप में रेड्डी रवन्ना ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 28 अक्टूबर 2021 को एक विवादास्पद आदेश जारी किया, जिसमें रेड्डी रवन्ना को भूमि का एकमात्र स्वामी मानते हुए उसे 359 करोड़ रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया था। यह भूमि सेक्टर 18 नोएडा में प्रसिद्ध डीएलएफ मॉल के निर्माण के लिए उपयोग की गई है। उच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार, मुआवजा दर को एक लाख दस हजार रुपये प्रति वर्ग मीटर निर्धारित किया गया था।

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सुप्रीम कोर्ट ने 23 जुलाई को इस मामले की सुनवाई की और उच्च न्यायालय के आदेश को न केवल खारिज किया, बल्कि इस मामले में भूमि के वास्तविक मालिक और मुआवजे की उचित दर निर्धारण के लिए उच्च न्यायालय को पुनः सुनवाई करने का आदेश भी दिया। इस निर्णय के आगे, रेड्डी रवन्ना द्वारा मुआवजा राशि से खरीदी गई सभी संपत्तियों को फ्रीज करने का भी निर्देश दिया गया है।

इस पूरे घटनाक्रम के पीछे, प्राधिकरण ने अंशधारकों के पूर्व दावे को लेकर दलील पेश की थी कि रेड्डी रवन्ना को मुआवजा देने के आदेश में बुनियादी न्याय का उल्लंघन हुआ था। हालांकि, उच्च न्यायालय ने उन दावों को ठुकरा दिया।

उल्लेखनीय है कि हाईकोर्ट के आदेश के संदर्भ में, नोएडा प्राधिकरण ने सरकार से सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की अनुमति मांगी थी। लेकिन सरकार ने मामले को सुलझाने के लिए वार्ता की सलाह दी। नतीजतन, प्राधिकरण ने अक्टूबर 2022 में रेड्डी रवन्ना को 295 करोड़ रुपये की राशि का भुगतान किया।

बाद में, मामले में एक और दावेदार विष्णु ने सुप्रीम कोर्ट में उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अपील की, जिसे पहले खारिज कर दिया गया था। विष्णु ने पुनः एक क्यूरेटिव पिटीशन दाखिल की, जिसका निपटारा करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए इस मामले को दोबारा सुनवाई के लिए भेज दिया।

इस बीच, सवाल उठता है कि क्या यह मामला एक बड़े भ्रष्टाचार की ओर इशारा करता है? प्राधिकरण की विधि विभाग की टीम ने सुप्रीम कोर्ट में इस निर्णय को पलटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, हालांकि प्राधिकरण और उत्तर प्रदेश सरकार को यहाँ केवल औपचारिक पक्ष के तौर पर बुलाया गया था।

यह मामला केवल कानूनी लड़ाई तक सीमित नहीं है; यह पूरे नोएडा क्षेत्र के विकास और संपत्ति के अधिकारों की सुरक्षा पर भी एक गहरा प्रभाव डालेगा। आने वाले दिनों में सबकी निगाहें इस मामले के आगामी चरणों पर होंगी, विशेषकर यह जानने के लिए कि क्या इस फैसले का कोई व्यापक प्रभाव पड़ेगा या नहीं।

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