आशु भटनागर । उत्तर प्रदेश के औद्योगिक विकास की धुरी बन चुके यमुना एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण (YEIDA) में वर्तमान में एक महत्वपूर्ण प्रशासनिक अंतर्विरोध पर गहन विचार-विमर्श चल रहा है। राज्य सरकार द्वारा पदस्थ ‘ब्लू आईड’ अधिकारी राकेश कुमार सिंह, जिन्हें हाल ही में सीईओ का पदभार सौंपा गया है, जिलाधिकारी और औद्योगिक प्राधिकरण के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) की भूमिकाओं के बीच के सूक्ष्म किन्तु महत्वपूर्ण अंतर को समझने तथा उन पर प्रभावी ढंग से कार्य करने की चुनौती से जूझ रहे हैं। यह स्थिति न केवल श्री सिंह के प्रशासनिक कौशल की परीक्षा है, बल्कि यह भी निर्धारित करेगी कि यमुना प्राधिकरण एक वास्तविक औद्योगिक और निवेश-अनुकूल गंतव्य के रूप में अपनी दीर्घकालिक पहचान को कितनी दृढ़ता से स्थापित कर पाता है।
भूमिकाओं का मौलिक अंतर: जिलाधिकारी बनाम सीईओ
प्रशासनिक जानकारों का मत है कि जिलाधिकारी का कार्यक्षेत्र मुख्यतः कानून और व्यवस्था बनाए रखने, स्थानीय शासन का संचालन करने तथा विकास योजनाओं के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने पर केंद्रित होता है। इसके विपरीत, एक औद्योगिक प्राधिकरण के सीईओ की भूमिका का स्वरूप मौलिक रूप से भिन्न होता है। सीईओ का प्राथमिक कार्य औद्योगिक विकास के लिए रणनीतिक योजनाएं बनाना, निवेश को आकर्षित करना, भूमि अधिग्रहण और आवंटन प्रक्रियाओं को सुचारु बनाना, तथा बड़े पैमाने की औद्योगिक परियोजनाओं का प्रबंधन और निगरानी करना होता है।
राकेश कुमार सिंह, जिनकी प्रशासनिक पृष्ठभूमि में विभिन्न महत्वपूर्ण जिलाधिकारी पद शामिल रहे हैं, के लिए यह संक्रमण काल अत्यंत महत्वपूर्ण है। जिलाधिकारी के रूप में उनकी पहचान एक ईमानदार सख्त प्रशासक की रही है, जबकि अब उन्हें औद्योगिक विकास और निवेश के लिए वृहद रणनीतिक योजनाएं बनानी हैं। इस प्रक्रिया में, प्रशासनिक तंत्र और औद्योगिक क्षेत्र के बीच एक सुदृढ़ समन्वय स्थापित करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य हो सकता है।
राकेश कुमार सिंह के समक्ष चुनौतियाँ: आंतरिक एवं बाह्य दबाव
1 जुलाई को सीईओ पद पर ज्वाइन करने वाले राकेश सिंह के समक्ष भूमिका-अंतर को समझने की चुनौती नहीं है, बल्कि प्राधिकरण में व्याप्त आंतरिक और बाहरी दबावों को साधने की भी है। बताया जाता है कि सीईओ के रूप में उनके सख्त कार्यशैली से प्राधिकरण के अधिकारी से लेकर कर्मचारी तक असहज महसूस कर रहे हैं। अनुशासन और दक्षता लाने की उनकी पहल, जो किसी भी नए नेतृत्व के लिए स्वाभाविक है, तत्काल आत्मसात नहीं हो पा रही है।
इससे भी बड़ी चुनौती बाहरी तत्वों से निपटने की है। स्थानीय जन प्रतिनिधि, जो 2027 के चुनावी रण के लिए तैयार हो चुके है अक्सर स्थानीय मुद्दों के नाम पर सीईओ कार्यालय में दस्तक देते हैं, अभी भी एक समस्या बने हुए हैं। वे अपने मतदाताओं के हितों का हवाला देकर सीईओ के समक्ष अपनी बात रखते हैं, जिससे एक औद्योगिक निकाय के फोकस पर प्रभाव पड़ सकता है। इसी प्रकार, किसान नेताओं का निरंतर आगमन और उनकी मांगों का समाधान निकालना भी सीईओ के लिए एक जटिल कार्य है। एक औद्योगिक प्राधिकरण के लिए यह आवश्यक है कि वह नीतिगत निर्णयों पर अडिग रहे और बाहरी दबावों के कारण परियोजनाओं के कार्यान्वयन में अनावश्यक देरी न हो।
लक्ष्य साधने के लिए तय तिमाही या सेवानिवृत्ति का दबाव!
राकेश सिंह के कार्यकाल पर एक और महत्वपूर्ण कारक हावी है – उनकी सितंबर में संभावित सेवानिवृत्ति। मात्र तीन माह की यह छोटी अवधि, उन्हें बीते दस वर्षों में पूर्व सीईओ द्वारा खींची गई रेखा से एक “नई और बड़ी रेखा” खींचने के लिए गहन दबाव में रखती है। यह दबाव न केवल राज्य सरकार और उद्योग जगत की अपेक्षाओं से उपजा है, बल्कि प्राधिकरण के भीतर भी इसका एक विशिष्ट निहितार्थ है। एक अधिकारी ने आंतरिक रूप से कहा कि सितंबर के बाद यह सख्त रुख बदल जाएगा, क्योंकि उसके बाद नए सीईओ भी पूर्व सीईओ की तरह एक्सटेंशन पर आ सकते हैं। यह धारणा, यदि व्यापक है, तो उनके वर्तमान कार्यकाल की प्रभावशीलता को कम कर सकती है, क्योंकि कर्मचारियों और संबंधित पक्षों के बीच यह विश्वास पनप सकता है कि वर्तमान सख्ती केवल एक अस्थायी चरण है।
प्रश्न यह है कि क्या पूर्ण सीईओ से एक्सटेंशन सीईओ तक आने तक, राकेश कुमार सिंह यमुना प्राधिकरण में कुछ ठोस और अभूतपूर्व कार्यों को अंजाम दे पाएंगे? यह स्थिति उनके लिए एक प्रकार की ‘अग्नि-परीक्षा’ है, जहाँ उन्हें कम समय में अधिकतम परिणाम देने होंगे, साथ ही यह भी सुनिश्चित करना होगा कि उनके निर्णय दीर्घकालिक हों और किसी अस्थायी प्रभाव के अधीन न हों।
प्रमुख परियोजनाओं पर अनिश्चितता का बादल
यमुना प्राधिकरण की साख बीते कुछ समय से कुछ महत्वपूर्ण परियोजनाओं पर टिकी है, जिनमें श्री सिंह के कार्यकाल में प्रगति अपेक्षित है:
- नोएडा अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा: बार बार डेडलाइन बदल रही इस बहुप्रतीक्षित परियोजना का संभावित लक्ष्य सितंबर तक उड़ानें शुरू करने का है। हालांकि, मानसून की संभावित बाधा एक बार फिर निर्माण कार्यों में देरी का कारण बन सकती है। सीईओ के रूप में श्री सिंह पर यह सुनिश्चित करने का भारी दबाव है कि इस प्रमुख बुनियादी ढांचा परियोजना में कोई और विलंब न हो, क्योंकि यह पूरे क्षेत्र के औद्योगिक और आर्थिक विकास का इंजन सिद्ध होगी।
- औद्योगिक क्लस्टरों का धरातलीय कार्य: पूर्व सीईओ के कार्यकाल में प्राधिकरण ने विभिन्न औद्योगिक क्लस्टरों की सफल परिकल्पना की है, लेकिन उनका धरातलीय कार्यान्वयन अभी भी शुरुआती चरणों में है। क्या श्री सिंह इन क्लस्टरों में भूमि आवंटन, बुनियादी ढांचे के विकास और औद्योगिक इकाइयों की स्थापना के लिए ठोस कदम उठा पाएंगे? यह औद्योगिक निवेश को धरातल पर उतारने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
- फिल्मसिटी परियोजना: 5 वर्ष पूर्व सोची गयी और एक वर्ष से शुरू होने की बात जोह रही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का सपना कहीं जाने वाली फिल्मसिटी एक और महत्वाकांक्षी परियोजना है जिसे यमुना प्राधिकरण क्षेत्र में विकसित किया जाना है। हाल ही में शुक्रवार को हुई फिल्मसिटी की बोर्ड मीटिंग में श्री सिंह को पूर्व सीईओ की जगह विधिवत नामित कर दिया गया है, लेकिन अभी तक इसको लेकर कोई ठोस निर्णय या प्रगति सामने नहीं आई है। ऐसे में इसको लेकर फिर से तमाम चर्चाये जिले और प्रदेश में चल रही है जिनके प्रति स्वयं सीईओ को ही जबाब देना होगा।
आगे की राह: दूरदर्शिता के साथ दृढ़ता और समन्वय की आवश्यकता
यमुना प्राधिकरण एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है। सीईओ राकेश कुमार सिंह के समक्ष न केवल एक अनुभवी प्रशासक के रूप में अपनी क्षमता साबित करने की चुनौती है, बल्कि एक औद्योगिक दूरदर्शी के रूप में अपनी पहचान स्थापित करने की भी है। यह केवल एक अधिकारी का व्यक्तिगत संघर्ष नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश की औद्योगिक आकांक्षाओं का भविष्य है। सीईओ पद की प्रकृति मांग करती है कि नेतृत्व न केवल प्रशासनिक रूप से कुशल हो, बल्कि औद्योगिक सूक्ष्मताओं को भी गहनता से समझता हो और एक स्पष्ट रणनीतिक दृष्टि के साथ निवेश एवं विकास को नई गति दे।