नोएडा के सेक्टर 142 में 5 फरवरी 2023 को एक 5 वर्षीय UKG की छात्रा के साथ हुई घिनौनी वारदात के मामले में जिला न्यायालय ने आरोपी नारायण प्रभु को 20 साल की सजा सुनाई है। नारायण प्रभु, जो बिहार के सुपौल का रहने वाला है, नोएडा में एक फैक्ट्री में काम करता था। अदालत ने उसे 50,000 का जुर्माना भी लगाया है।
यह घटना तब हुई जब बच्ची के पिता अपनी ड्यूटी पर गए थे और उसकी माँ बाजार गई थीं। इसी दौरान, नारायण प्रभु, जो बच्ची के पड़ोस में किराए पर रहता था, ने उसे गिफ्ट दिलाने का बहाना बनाकर अपने कमरे में ले गया। यही पर उसने बच्ची के साथ डिजिटल रेप की वारदात को अंजाम दिया।
वारदात का विवरण
घटना के दिन, नारायण प्रभु ने बच्ची को अपने कमरे में ले जाकर उसके साथ आपराधिक कृत्य किया। जब बच्ची रोने लगी, तो आरोपी उसे बाजार ले गया और वहां पेंसिल बॉक्स तथा अन्य गिफ्ट दिलाने के बाद उसे उसके घर छोड़ दिया।
बच्ची की माँ ने जब लौटकर उसे रोते हुए देखा, तो उन्होंने कारण पूछा। बच्ची ने कहा कि उसके प्राइवेट पार्ट में दर्द हो रहा है। माँ उसे तत्काल डॉक्टर के पास ले गई, जहां डॉक्टर ने बच्ची को बताया कि उसके साथ डिजिटल रेप हुआ है। बच्ची ने अपनी माँ को बताया कि यह सब उसके पड़ोसी नारायण अंकल ने किया है।
पुलिस की कार्रवाई
इस जानकारी के बाद, बच्ची की माँ ने मामले की सूचना पुलिस को दी। पुलिस ने तुरंत मामला दर्ज कर आरोपी नारायण प्रभु को गिरफ्तार किया। न्यायालय में सुनवाई के दौरान, कुल 6 गवाह पेश हुए। गवाही में मेडिकल परीक्षण रिपोर्ट को महत्वपूर्ण साक्ष्य के रूप में माना गया।
पुलिस ने घटनास्थल से पर्याप्त साक्ष्य एकत्र किए, जिससे आरोपी की culpability स्पष्ट हुई। अंततः न्यायालय ने नारायण प्रभु को डिजिटल रेप का दोषी मानते हुए 20 साल की सजा सुनाई। यह निर्णय स्थानीय समुदाय में इस तरह के अपराधों के प्रति चेतना और सुरक्षा को और बढ़ाने का प्रयास है।
समाज में सख्ती की आवश्यकता
इस घटना ने स्थानीय निवासियों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि बच्चों की सुरक्षा के लिए सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है। कई निवासियों ने मांग की है कि ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए प्रभावी कानूनी और सामाजिक उपाय किए जाने चाहिए।
समाज में इस तरह की घटनाओं के प्रति संवेदनशीलता बढ़ाने के लिए जागरूकता अभियानों की भी आवश्यकता है। स्थानीय समुदाय को एकजुट होकर बच्चों की सुरक्षा के लिए आवाज उठाने की आवश्यकता है, जिससे भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों।
इस प्रकार की घटनाएँ यह दर्शाती हैं कि हमें अपने पड़ोस और परिवेश में बच्चों के प्रति संवेदनशील रहने की आवश्यकता है। बच्चों की सुरक्षा और उनके विकास के लिए हर नागरिक का यह कर्तव्य है कि वे ऐसे खतरों का सामना करने में सक्षम हों।
इस मामले ने एक बार फिर से यह सिद्ध कर दिया है कि सामूहिक प्रयासों और कानूनी सख्ती के माध्यम से हम अपने बच्चों को सुरक्षित रख सकते हैं। स्थानीय न्यायालय का यह निर्णय सामाजिक न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।