आशु भटनागर। राजनीति के गलियारों में पहली चर्चा उत्तर प्रदेश सरकार ने मुरादाबाद के कमिश्नर आञ्जनेय कुमार सिंह की प्रतिनियुक्ति की अवधि बढ़ाने से इनकार से शुरू हो रही है, जिससे प्रदेश में प्रशासनिक बदलावों की चर्चा एक बार फिर तेज हो गई है। मूलत: सिक्किम कैडर के अधिकारी आन्जनेय कुमार सिंह को अब रिलीव कर दिया गया है। इस निर्णय के बाद, कई अन्य अधिकारियों के भी आगामी भविष्य पर सवाल खड़े होने लगे हैं। पिछले कुछ समय में, यूपी सरकार ने कई प्रमुख अधिकारियों को एक्सटेंशन नहीं दिया है, जैसे पूर्व चीफ सेक्रेटरी मनोज कुमार सिंह और कार्यवाहक डीजीपी प्रशांत कुमार। इसके अतिरिक्त, मीडिया सलाहकार मृत्युंजय कुमार सिंह और सूचना निदेशक शिशिर कुमार सिंह भी पिछले कुछ महीनों में महत्वपूर्ण पदों से हटा दिए गए हैं। यह बदलाव दर्शाता है कि सरकार में निरंतरता की बजाए नई सोच और नई रणनीतियों को अपनाने की आवश्यकता महसूस की जा रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह घटनाएं यूपी सरकार में अंदरूनी बदलावों का संकेत हैं। राज्य सरकार की ये कार्रवाइयाँ इस बात को स्पष्ट करती हैं कि भरती और पदस्थापनाओं में नए-नए निर्णय लेने की प्रक्रिया को अपनाया जा रहा है। मुरादाबाद के कमिश्नर की प्रतिनियुक्ति के समय समाप्त होने के साथ ही, कयास लगाए जा रहे हैं कि अगली बारी यमुना प्राधिकरण के वर्तमान सीईओ राकेश कुमार सिंह और ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण की महाप्रबंधक लीनु सहगल की हो सकती है, माना जा रहा है कि 30 सितंबर को दोनों को भी बाय बाय कहने की तैयारी हो गई है। राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि मंत्री नन्द गोपाल नंदी और चीफ सेक्रेटरी एस पी गोयल की जुगलबंदी में आगे क्या निर्णय लिए जाते हैं। प्रशासनिक हलचल के इस दौर में मुरादाबाद का घटनाक्रम एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है।
राजनीति के गलियारों में दूसरी चर्चा अखिलेश यादव के एक मास्टर स्ट्रोक से गौतम बुद्ध नगर जिले के भाजपा के गुर्जरों में भगदड़ को लेकर है । दरअसल मुलायम सिंह यादव ने जिले के दो बड़े गुर्जर नेताओं को सपा से लगातार वह सब दिया जिसकी हर नेता अपेक्षा करता है किंतु भाजपा की सरकार बनने के दौर में दोनों ही नेता भाजपा में चले गए । बरसों से दोनों से खार खाए अखिलेश यादव ने लंबे इंतजार के बाद इस क्षेत्र में गुर्जर चौपाल के जरिये प्यादे से वजीर को पीटने का बड़ा दांव चल दिया है। चर्चा है की क्षेत्र के बड़े नेताओं के होते हुए भी कभी चुनाव ना जीत पाए एक राष्ट्रीय प्रवक्ता के माध्यम से राष्ट्रीय कार्यालय पर हुई “गुर्जर चौपाल” और उसके बाद वहां पर अखिलेश यादव का गुर्जरों को सत्ता में मजबूत भागीदारी का आश्वासन कमाल दिखा गया है । जानकारी के अनुसार गुर्जर चौपाल का असर क्षेत्र के स्थानीय गुर्जर नेताओं में तीखा चला गया। इसके बाद जिले के गुर्जर नेताओं में भाजपा में अपनी उपेक्षा को लेकर कसमसाहट शुरू हो गई है। लंबे समय से जिले में गुर्जर नेताओं को अपनी उपेक्षा का मलाल पहले ही था और जिला संगठन में भाजपा जिला अध्यक्ष का पद गुर्जरों से लेकर ब्राह्मण को देने पर असंतोष और भी बढ़ गया था। अब “गुर्जर चौपाल” के परिणाम स्वरूप क्षेत्र के ही एक गुर्जर नेता और किसान मोर्चा के क्षेत्रीय अध्यक्ष तेजा गुर्जर ने भाजपा के पूर्व अध्यक्ष और कैबिनेट मंत्री स्वतंत्र देव सिंह के सामने मोर्चा खोल दिया और कहा 2014 से गुर्जर भाजपा को वोटर है, अगर ऐसे ही उपेक्षा हुई तो गुर्जर समाज सपा की ओर रुख कर देगा और हम इसे सपा में जाने से रोक नहीं पाएंगे। भाजपा में इन बयानों के कई मायने निकाले जा रहे हैं इन बयानों के चलते जहां एक और जिले की गुर्जर राजनीति में हड़कंप मच गया है वहीं सपा छोड़कर भाजपा में आए दो कद्दावर नेताओं की गुर्जरों पर पकड़ को लेकर कई प्रश्न उठ खड़े हुए हैं ऐसे में अखिलेश यादव का “गुर्जर चौपाल” का दांव आने वाले दिनों में क्या रंग दिखाएगा ये देखने की बात होगी ।
राजनीति के गलियारों में तीसरी चर्चा भी “गुर्जर चौपाल ” से ही है । अखिलेश यादव के मास्टर स्ट्रोक से जहां सपा छोड़ कर भाजपा में गए जिले के दो बड़े गुर्जर नेताओं के समक्ष चुनौती खड़ी हो गई है और भाजपा के कई गुर्जर नेता सपा की और रुख करने लग गए है, वही जिले की विधानसभा से चार बार चुनाव हार चुके इस कथित गुर्जर नेता की महत्वाकांक्षाएं भी चरम पर है। जानकारी के अनुसार इस नेता पर अपने आसपास के क्षेत्र के नेताओं को आगे न बढने देने के आरोप लगाते रहे ऐसे में गुर्जर चौपाल में ही जिले से निकले और अब पास के क्षेत्र के सपा विधायक बिना बुलाने कार्यक्रम में जाने या मंच पर जबरदस्ती चले जाने की चर्चाओं ने नया खेल कर दिया है । चर्चा तो यहां तक है की अखिलेश यादव के सपा छोड़कर गए दो प्रमुख नेताओं को धूल चटाने की रणनीति में इस नेता ने अपना बड़ा फायदा देख लिया है दावा किया जा रहा है कि यह नेता अपनी विधानसभा छोड़कर पास की विधानसभाओं से 2027 के चुनाव में टिकट की दावेदारी कर सकते हैं या फिर आने वाले समय में एमएलसी की तीन सीटों में किसी एक पर दावेदारी का सपना देख रहे हैं । किंतु जीते हुए विधायक के समक्ष अपनी लाइन बड़ी करने के प्रयास में नेताजी की स्थिति ‘आधी छोड़ सारी को धावे, आधी रहे न सारी पावे’ वाली ना हो जाए इसका फैसला आने वाला समय बताएगा